Thursday, August 22, 2013

नाटक की रिहर्सल



दस बजे हैं, वर्षा है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही. आज सुबह समाचारों में सुना, आन्ध्र प्रदेश में लू से कुछ लोग मर गये, यहाँ उन्हें स्वेटर निकलने पड़ रहे हैं. दिल्ली में ओले पड़ते रहे पूरे बीस मिनट तक, सडक पर snow fall जैसा  दृश्य बन गया था प्रकृति के विभिन्न रूप एक साथ देखने को मिलते हैं भारत में. आज वह  लिखने में ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रही है, नन्हा भी यहीं है और एक के बाद एक सवाल पूछे जा रहा है, आलू इतने छोटे क्यों हैं ? इससे भी छोटे मिलते हैं ? कल शाम उसी परिचिता से बात हुई, वह दोपहर को तीन-चार बच्चों को लेकर आयेगी skit की प्रैक्टिस के लिए. केंद्र में बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रपति ने सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया है, सारे देश के लोगों की जो एक इच्छा थी कि एक बार बीजेपी को मौका मिलना ही चाहिए, पूरी हो गयी. असम विधान सभा में एजीपी की सरकार बनेगी, कहीं फिर से वह आतंक तारी न हो जाये जो ४-५ वर्ष पहले यहाँ छाया हुआ था.

आज सुबह वर्षा बहुत तेज हो रही थी जब बच्चे पढ़ने आये, children meet के कारण सुबह आते हैं आजकल, कल रात देर तक वह एक सवाल हल करती रही थी उनके लिये, पर उन्होंने वह स्वयं ही हल कर लिया था. नन्हा कम्प्यूटर क्लास से आकर खुश था, he is really enjoying this class. इस समय दोनों पिता-पुत्र क्लब गये हैं, वह बगीचे में काम कर रही थी. नैनी और उसके दो बच्चे भी उसके साथ बगीचे की सफाई कर रहे थे. बच्चे अपने घर की, घर में लगे आम, बेर के पेड़ों की, पिता की, नानी की बातें कर रहे थे, उन्हें सुनकर यही लगता है, उनका पहले का जीवन अच्छा बीता है, अब भी खुश रहते हैं ये लोग, कभी-कभी माँ परेशान रहती है जो स्वाभाविक है, पति ने दूसरी शादी कर ली है और वह तीन बच्चों को लेकर घर छोड़ आयी है. रोज सुबह ‘जागरण’ सुनने-देखने के बाद भी कभी-कभी वह भी अपने मन पर नियन्त्रण नहीं कर पाती है और न जाने क्या–क्या सोचने लगती है. गोयनका जी ठीक ही कहते हैं, यह मन अंदर से बड़ा बेचैन है, बड़ा अशांत है, कैसी-कैसी गांठें पड़ी हैं, कभी राग कभी द्वेष, कभी कामना के बंधन में जकड़ा न स्वयं सुखी होता है न दूसरों को सुखी करता है. यदि कोई प्रतिक्षण इस पर नजर न रखे तो मौका मिलते ही यह कहीं से कहीं भाग जाता है, मरकट राज की तरह इस डाल से उस डाल उछलता रहता है, कभी चोट खाता है तो कभी कोई मीठा फल मिल गया तो उछल पड़ता है. यह मन बड़ा ही चंचल है पर इसे बस में तो रखना ही होगा. अध्यात्म मार्ग पर चलने वाले को तो इसे साधना ही होगा.

मौसम आज भी वही है बादलों भरा. नन्हा कम्प्यूटर क्लास गया है, जून फील्ड गये हैं. उनके नाटक की रिहर्सल ठीक चल रही है पर अभी समूह गान के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है. बच्चों में भी उत्साह की कमी नहीं है. सुबह-सवेरे ‘जागरण’ में इतनी अच्छी बातें सुनीं कि उसका मन अभी तक उनमें डूबा हुआ है. बाहरी कर्मकांड को त्याग कर आन्तरिक प्रवृत्तियों की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है. मन जो सदा किसी न किसी जोड़-तोड़ में लगा रहता है उसको  स्थिर करने की, शांत चित्त होने की प्रक्रिया ही धर्म है. धर्म को आचरण में लाने का सबसे अच्छा उपाय है कि अपने मन पर नजर रखी जाये, सद्विचार हों, धार्मिकता स्वयंमेव आ जाएगी.

कल बंद था, उल्फा ने बंद कॉल किया था और इसीलिए बंद पूरी तरह सफल था. वे लोग अलबत्ता साइकिलों से घर से निकले, पर जिस कार्य के लिए गये वह  सफल नहीं हो पाया, अभी तक तो ऐसा लग रहा है जिस गाने का अभ्यास बच्चे कर रहे थे, वह शायद नहीं हो पायेगा. सुबह से शायद इसी कारण या मौसम के कारण वह कुछ झुंझला रही है पर उसी क्षण गोयनका जी के शब्द याद आ जाते हैं और मन को समझा लेती है. जून की फरमाइश पर साम्भर व नारियल चटनी बनाई है, इडली अभी बनानी है. दोपहर को एक जगह फिर रिहर्सल के लिए जाना है, कल की तरह सारी शाम भी उसी में जाएगी. उसने सोचा, अगले वर्ष से कम से कम वह तो इस रिहर्सल आदि से दूर ही रहेगी. इस हफ्ते खतों के जवाब भी नहीं दे सकी, और भी कई  काम इन पिछले दिनों नहीं हो पाए, और तो और इस वक्त भी मन में उन्हीं बातों की पुनरावृत्ति हो रही है, जो सुबह  से इस कार्यक्रम के सिलसिले में फोन पर की हैं. मन के आगे चारा है और जुगाली किये जा रहा है. परसों से कार्यक्रम शुरू हैं यह एक अच्छी बात है. इतवार को अंतिम दिन होगा, उस रात वे किसी नये सफर की कहानी सोचकर सोयेंगे. नन्हे का गृहकार्य जो बीच में ही रुक गया है शुरू हो जायेगा और शामों को उनका टीटी खेलना भी, लाइब्रेरी से किताबें बदलना और घर आकर एक साथ बैठकर कोई बोर्ड गेम खेलना भी. कितनी जल्दी इन्सान एक चीज से बोर हो जाता है. 










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