सुबह सोकर उठी तो मन में फिर वही बातें
घूम गयीं, समूह गान तथा skit... कल दीदी का खत आया, बहुत अच्छा लगा उसे, बुआ जी के
बारे में उनके विचार पढकर और भी अच्छा..बचपन की यादें कभी-कभी वर्तमान पर भी हावी
हो जाती हैं.. सुबह गोयनका जी फिर समझा रहे थे, अनुभूति के स्तर पर किया गया दर्शन
ही मुक्ति की ओर ले जायेगा. मानव के कर्मों का फल ही उसे निरंतर सुख या दुःख के
रूप में मिलता है, दैहिक या वाचिक कर्मों का ही नहीं मानसिक कर्मों का भी क्यों कि
हर क्षण मानव जो भी है अपने मन का प्रतिबिम्ब ही है, मन में कोई दूषित विचार आया
नहीं कि दुःख का एक बीज रोपित हो गया. हमारे सारे सुख-दुःख परछाई की तरह हमारे साथ
चलते हैं और उनका उद्गम है मन. आँखें बंद करती है तो स्वयं को एक उहापोह में घिरा
पाती है, एक तनाव भी, जो इस कार्यक्रम की सफलता-असफलता को लेकर है और एक उलझन भी
कि इस टीम वर्क में उसका कितना योगदान होना चाहिए. एक क्षण को यही लगता है कि सारी
बागडोर अपने हाथों में संभाल लेना ही ठीक है या सिर्फ सुपरविजन ! देखें क्या होता
है, मूक भाव से सारी घटनाओं का निरिक्षण व दर्शन करना भी तो उसके मन का काम है.
और कल उनकी skit हो गयी,
उसकी एक भूल के कारण एक छोटा सा दृश्य नहीं हो पाया, जिसके लिए वह कल शाम से ही
परेशान है, लगता है इस बार उन्हें पुरस्कार वितरण समारोह में जाने की जरूरत नहीं
है, वैसे भी जून कल शाम को मोरान जा रहे हैं. नन्हा कम्प्यूटर क्लास में गया है.
और कल शाम से अचानक शुरू हुई वर्षा के कारण उसका मन भी शांत है, आज से उसने घर की
सफाई का काम भी शुरू किया है, खतों के जवाब भी देने हैं, आज बच्चे भी पढ़ने आएंगे
यानि सारा दिन व्यस्त रहेगी जो ठीक ही है, जून की कमी उतनी नहीं खलेगी. कल शाम से
एक विचार मन में यह भी आ रहा है कि प्रेम उसके जीवन से भाप बनकर उड़ गया है, जून के
लिए या संसार में किसी के लिए भी. दो दिनों के लिए जून दूर गये हैं तो इसकी भी
परीक्षा हो जाएगी.
जून का फोन आया तो वे सो
ही रहे थे, उनके बिना न तो वे खाना ही ठीक से खा सके और नींद भी रात को खुलती रही.
कल दिन भर की तरह आज भी टीवी पर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में हुई बहस
सुनी. बीजेपी और यूनाइटेड फ्रंट दोनों दो अलग-अलग ध्रुवों पर खड़े हैं और कोई भी दूसरे
को समझना नहीं चाहता सिर्फ राजनीति के लिए राजनीति कर रहे हैं ये लोग, देश के लिए
क्या अच्छा है यह नहीं सोचते. अब तक तो मतदान भी हो गया होगा और बीजेपी हार गयी
होगी. देश में बहुत सारे लोगों के चेहरे उतर गये होंगे. जगजीत सिंह का कैसेट बज
रहा है अभी तक एक साथ बैठकर पूरा नहीं सुन पाई है, उसने सोचा अब जून का इंतजार
करते-करते सुनना अच्छा लगेगा.
कल जून पूरे छह बजे आये,
INSIGHT पूरा सुन लिया सबसे अच्छे लगे दोहे और यह गजल, ‘’बदला न अपने आपको जो थे
वही रहे...’’जून आए तो घर जैसे उत्साह से भर गया. आज दोपहर को वह ढेर सारा सामान
ले आए उसके जन्मदिन के लिए और कल चप्पल भी लाये थे बहुत सुंदर चप्पल है अब उसके
पैर उन निशानों से बच जायेंगे जो हवाई चप्पल पहनने से पड़ने लगे हैं. कल आखिर अटल
बिहारी वाजपेयी जी को इस्तीफा देना पड़ा और अब देवगौड़ा जी को सरकार बनाने का
निमन्त्रण दिया गिया है. १२ जून तक उन्हें सरकार बनानी है इस बीच में न जाने कितने
मतभेद उभरेंगे. धर्मयुग में पढ़ा, इन्सान रोटी, पूजा और प्यार एक साथ चाहता है, सच
ही है भोजन इन्सान की सबसे बड़ी जरूरत है और प्यार के बिना वह अधूरा है. श्रद्धा या
पूजा इसे आदमी से इन्सान बनती है. श्रद्धा यानि अच्छाई के प्रति आस्था, उस परम
शक्ति के प्रति आस्था जिसने इस सुंदर ब्रह्मांड की रचना की है. कल उसका जन्मदिन है
पर जाने क्यों इस बार पहले की सी उत्सुकता या उछाह नहीं है, शायद बढ़ती हुई उम्र का
तकाजा या..भय. उम्र मन की गिनी जाये तो अभी मन इतना तो बड़ा हुआ नहीं कि जन्मदिन की
ख़ुशी मनाना ही भूल जाये.
भारतीय राजनीति का वह काल भी याद है जब किसान (इसे जमींदार पढ़ा जा सकता है) का बेटा होना इकलौती और सबसे बड़ी क्वालिफ़िकेशन बनकर सामने आया था। इससे आगे के विनाश का दोष धर्मभीरु नागरों पर नहीं थोपा जा सकता।
ReplyDeleteहाँ, याद है वह समय भी, भारतीय राजनीति अभी तक परिपक्वता को प्राप्त नहीं हो पाई है, अभी तक ऐसे नेता नहीं आये हैं जो देश को एक स्वच्छ प्रशासन दे सकें..एक दिन ऐसा होगा, यही उम्मीद है
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