‘दिल का मरहम कोई न जाने जो जाने सो
ज्ञानी’
दिल का प्याला कभी छलक
उठता है
और कभी खाली हो जाता है
दूर समुन्दर में कभी दिखते
कभी छिप जाते
जहाज के प्रकाश की तरह
वह एक जादूगर जो छिपा है
सात पर्दों के पीछे
चुपचाप हँसता रहता है
या शायद उसकी हँसी भी रूठ
जाती हो
दिल के टूटने की आवाज पर
जो वह हजार पर्दों के पीछे
भी सुन सकता है !
आज मौसम ठंडा है, कल दोपहर जब वे एक और मित्र के यहाँ
थे, वर्षा की मधुर झंकार सुनाई दी और तीन बजे तक बिजली भी आ गयी थी. आज शनिवार है,
पिछले दो शनिवारों को नन्हे ने कोई विशेष डिश बनाने में सहायता की थी, आज भी वह
तरला दलाल की किताब से कोई नई रेसिपी खोज रहा है.
टीवी पर खबरें सुनकर उसने
सोचा, राजनीति यानि राज करने की नीति, राज यानि शासन और नीति यानि कुछ नियम अथवा
आचार संहिता, जिसके अनुसार राज चलाया जाना चाहिए. पर राजनीति शब्द का गलत अर्थ निकाला
जाता है जब उसे आज के हालात में देखा जाये, राजनीति यानि जोड़-तोड़ करके पाई गयी
सत्ता का दुरूपयोग !
शाम के छह बजने को हैं,
जून क्लब गये हैं, नन्हा पढ़ाई कर रहा है. वह स्कूल से आकर तायकांडू देखने एक अन्य
स्कूल में गया था, आजकल वह सुबह साढ़े चार बजे उठकर क्लब तायकांडू सीखने जाता है.
उसके साथ वे भी उठ जाते हैं, कुछ देर टहलते हैं, फिर समाचार देखते हुए चाय, उसके
बाद जागरण. आज स्वीपर से घर का जाला आदि साफ करवाया, घर साफ-सुथरा, भला सा लग रहा
है. दोपहर को हिंदी पढ़ाने गयी, लौट कर नाश्ता बनाने के बाद एक घंटा बगीचे में काम
किया. कल उसने धूप की कामना की थी, जिससे आज गुलदाउदी के पौधे लगा सके, अब आज धूप
न निकलने की कामना है ताकि नन्हे पौधे धूप में कुम्हला न जाएँ. इन फूलों का जिक्र
आते ही उसे बंगाली सखी याद आया ही जाती है, पता नहीं वह उसे याद करती है या नहीं. सुबह
से वह व्यस्त रही है फिर भी एक खालीपन का अहसास मन पर छाया हुआ है. पिछले दो तीन
दिनों से जून कोई पत्रिका भी नहीं ला रहे हैं जिसे पलटकर दिल का खालीपन को भर लिया
जाये, पर यह खालीपन उस एक की प्रतीक्षा में है वह उसका खुदा जाने कहाँ है ? घर से
खत आया है, माँ ने लिखा है, उन्हें खुशी है कि उसकी दिनचर्या व्यस्त है. कल लेडीज
क्लब की मीटिंग में गयी थी, वहाँ कुछ खास नहीं हुआ पर घर आई तो नन्हे और जून ने
जिस तरह स्वागत किया वह मन को छू गया. फिर ‘हम पांच’, सैलाब और समाचार के बाद जब
आँख बंद कर लेटी तो मन में क्लब की बातें ही थीं.
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