Friday, August 2, 2013

नेता जी का सौवाँ जन्मदिन


जून इस समय ट्रेन में होंगे, और उसे यकीन है इस क्षण उनके बारे में ही सोच रहे होंगे. उसने अनजाने में ही आज वह पेन उठा लिया है जो इस बार वे लाये थे, उनके रहते एक बार भी नहीं  लिखा इससे, अच्छा लिखता है उसने मन ही मन उन्हें इसके लिए धन्यवाद दिया. नन्हे के मित्रगण आये हैं आज, क्रिकेट खेलने, वह व्यस्त है, आज उसे पुरस्कार भी मिला है स्कूल में. दोपहर को उसकी एक सखी आ गयी थी, उसे छोड़कर आयी तो नन्हा आ गया, कुछ देर उनके यहाँ रहने वाली बिल्ली से खेलता रहा.

आज एक बेहद ठंडा इतवार था, उन्होंने ज्यादा समय घर में ही चंदामामा पढ़ते, वीडियो गेम खेलते और टीवी देखते हुए बिताया, सुबह वर्षा भी हो रही थी. शाम को फिर वही शरारती बच्चा अपने माँ-पिता के साथ आया, नन्हा उस उम्र में कितना शांत था. उन्होंने २६ जनवरी को लंच पर बुलाया है, अच्छा रहेगा, उसने सोचा गणतन्त्र दिवस की भावना के साथ वे उस दिन को और भी अच्छी तरह बिता सकेंगे. जून अपने एक मित्र की छोटी बहन की शादी में सम्मिलित होने के बाद ही लौटेंगे.

और कोई दिन होता यानि जून घर पर होते तो इस वक्त वे दोपहर का भोजन कर चुके होते, पर आज उसे भूख ही नहीं लग रही है. सुबह सामान्य रही, ठंड बहुत है, खिड़की के शीशे से छन कर  आती रौशनी से पता चल रहा है, बाहर धूप निकल आई है, लंच के बाद कुछ देर धूप में ही विश्राम करेगी. कल नन्हा नहा-धोकर अच्छी तरह तैयार होकर अपने एक मित्र के यहाँ जाने के मूड में था, कॉमिक्स बदलने के लिए, पर उसने अपनी माँ से पूछ कर बताया, वे लोग कहीं जा रहे हैं, वह कुछ देर तो परेशान रहा जैसे उस दिन स्कूल से आकर था जब मैडम का कहा काम करना भूल गया था, फिर अपने आप ही ठीक हो गया. बच्चों जैसा स्वभाव यदि बड़ों का भी हो जाये तो कहीं कोई कड़वाहट न रहे.

आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का सौवाँ जन्मदिन है. बचपन में जोशोखरोश के साथ वे इस दिन देशभक्ति के गीत गाते थे. कल शाम पड़ोसिन के साथ वह नन्हे को लेकर पुस्तक मेले में गयी, बहुत खुश था वह, किताबों के प्रति उसका स्वाभाविक प्रेम देखकर अच्छा लगता है, उसका मित्र और वह एक स्टाल से दूसरे स्टाल तक घूम घूम कर किताबें देख रहे थे, जून होते तो वे दोनों भी साथ साथ देखते. उसने सोचा एक बार और आयेगी वह यहाँ. उसन असमिया-अंग्रेजी शब्दकोश लिया और एक पतली सी पुस्तक असमिया में ली जिसे पढ़ना अभी शुरू नहीं किया है. कल छोटे भाई का पत्र आया है, उसके पत्र के जवाब में, उसे ख़ुशी हुई कि वह उनकी भावनाओं को अच्छी तरह समझ गया है. देर रात तक वह घर के बारे में ही सोचती रही, माँ-पापा के बारे में, जीवन के प्रति उनके दार्शनिक रुख के बारे में और उनकी खुशियों के बारे में जो वे किसी भी स्थिति में खो नहीं सकते क्योंकि वे किसी बाहरी वस्तु पर आश्रित नहीं हैं, वे पूर्णतया आंतरिक हैं, नितांत उनकी अपनी, जिनपर कोई बाहरी वस्तु असर नहीं डाल सकती, उसे भी अपने अंदर ऐसी ही शांति की तलाश है जो किसी भी तरह के बाहरी प्रभाव से पूर्णतया मुक्त हो, नितांत व्यक्तिगत. लेकिन उस शक्ति भरी शांति का दर्शन सभी को हो... और कभी नन्हा भी कह सके कि उसके माँ-पापा कभी मुसीबत में घबराते नहीं हैं वे नाना-नानी की तरह बहादुर हैं.





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