आज सरस्वती पूजा है, नन्हे
का स्कूल बंद है, कल शाम जब वह स्कूल से लौटा तो उसका एक जूता जो पहले से क्रैक था
ज्यादा फट गया था, उसने अपनी सखी से कहा है वे लोग उन्हें भी बाजार ले जायेंगे. कल
शाम जून का फोन आया, वे खुश थे, अपने मित्र के यहाँ से किया था फोन , जरुर उन्हें
भी उसकी आवाज ख़ुशी भरी लगी होगी, कभी-कभी उसे स्वयं पर आश्चर्य होता है कब वह धीरे
से मोह से बाहर निकल कर स्वयं पर आश्रित होना सीख गयी, उसे स्वयं ही पता नहीं चला.
जून का साथ अब मात्र उसके आश्रय के लिए नहीं चाहिए बल्कि इसलिए कि उसका साथ
जिन्दगी को और कई अर्थ देता है, और उसे सामान्य देखकर नन्हा भी पहले की तरह पापा
को याद नहीं करता है, पहले अक्सर उदास हो जाया करता था. कल उसे हिंदी
प्रतियोगिताओं में मिले पुरस्कार, हाथ में मिले और हिंदी पढ़ाने के लिए मानदेय भी.
जून के एक मित्र आकर दे गये.
४७वां गणतन्त्र दिवस ! सुबह टीवी पर परेड देखी, दोपहर को वे साइकिल से एक
मित्र के यहाँ गये, चार बजे लौटे. उनके साथ टीवी पर शोले फिल्म देखी, उसने सोचा
शायद जून ने भी देखी हो. पहले उसे लग रहा था शायद इस बार वह इस फिल्म को इतना पसंद
नहीं करेगी पर नहीं, हर बार देखने पर भी उतनी ही अच्छी लगती है., फिर छब्बीस जनवरी
का मूड और उसकी सखी ने खाना भी बहुत अच्छा बनाया था, टमाटर आलू की सब्जी, पूरी,
मटर-पुलाव और बेक्ड मिक्स्ड वेज ! नन्हे ने भी शौक से देखी, उसे एक सीन न देख पाने
का अफ़सोस था, कितने आदमी थे ? उस वक्त वे घर के रास्ते में थे. घर आकर उसने बाकी की फिल्म देखी. और अब रात हो
गयी है, कल नन्हे के दो टेस्ट हैं, जिनकी तैयारी वह कर चुका है, समाचारों में जयपुर
और मणिपुर में हुए बम विस्फोटों के बारे में सुना, जैसे किसी ने फूले हुए गुब्बारे
में पिन चुभा दिया हो. सुबह परेड देखते वक्त और देश भक्ति के तराने सुनते वक्त
धमाकों और विस्फोटों की बात कैसे भुला दी, सच्चाई यह भी है और सच्चाई वह भी थी.
आज यहाँ धूप में बैठे हुए उसे सन्नाटे से उपजी अनोखी शांति का अनुभव हो रहा है, ‘इंडिया२४ऑवर’ में सुना
था, जब मन शांत हो तो जिसका चित्रण करें या देखें उसमें सच्चाई होती है, जब
वस्तुओं के देखने का अर्थ मात्र उन्हें देखना नहीं बल्कि महसूस करना हो. आजकल एक
बूढ़ा व्यक्ति उनके यहाँ आकर पेड़ से आंवले ले जाता है, परसों वह बोरी भर के आंवले
ले गया था और आज फिर आ गया, उसने कहा पहले थोड़ा सा काम करो बगीचे में तब आंवले ले
जाओ. वह मान गया है. आज सुबह उसने ‘जागरण’ में सुना, ‘सुख लेने की वस्तु नहीं है
देने की है. और दुःख भोगने की वस्तु नहीं बल्कि विवेक का उपयोग करते हुए पार
निकलने की चीज है’. उसने सोचा जून इस समय बस में होंगे. घर तथा उनके बारे में सोचते
हुए..
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