आज वर्षा के कारण ठंड बढ़ गयी
है कल शाम वे एक मित्र की शादी की सालगिरह की पार्टी में गये. उसने वही ड्रेस पहनी
थी जो जून लाये थे, सभी ने तारीफ की. खाना अच्छा था, गृहणी ने घर सलीके से सजाया
था, शांत स्वभाव की है, और धीरे-धीरे बोलती है, क्या जीवन की इन छोटी-छोटी खुशियों
को महसूस करना गलत हो सकता है, कभी-कभी ऐसा भी होता है. जब कोई इन छोटी-छोटी बातों
को याद करता है, क्या ये पल उसने व्यर्थ गंवाए ऐसा कहना या मानना ठीक है? ईश्वर ने
यह सुंदर संसार और महसूस करने वाला मन दिया है, किसी को पीड़ित न करते हुए बिना
किसी राग-द्वेष के सुखी रहना और हो सके तो दूसरों को सुखी करना क्या इतना पर्याप्त
नहीं है ? संसार में रहकर उसमें लिप्त हुए बिना सांसारिक कर्त्तव्यों का पालन करते
जाना और जो मार्ग में आये उसे अपने हित में साधते जाना..नैतिकता के मूल्यों को समझ
कर उन्हें धारण करना और सुख-दुःख दोनों में समभाव बनाये रखना यही पूजा इस जन्म में
उसके लिए पर्याप्त है. आध्यात्मिकता का अर्थ अच्छाई पर विश्वास, नैतिकता पर पूर्ण
श्रद्धा और संयमित जीवन चर्या ही है.
वही कल का वक्त है, पर मौसम कल जैसा नहीं है, धूप निकल आई है. रातभर की
मूसलाधार वर्षा के कारण बढ़ गयी ठंड से राहत दिलाती फरवरी की धूप भली लग रही है. ‘जागरण’
आजकल नहीं देख पा रही है, आजकल प्रवचन की जगह उसमें कोई साक्षात्कार दिखाया जा रहा
है. कल उसका टेबल टेनिस का मैच है, उसे यकीन है कोई पुरस्कार तो जीतेगी. अभी कुछ
देर पहले एक १८-२० साल का लड़का सफेद धोती पहन कर आया श्राद्ध के लिए पैसे मांग रहा
होगा, वह उसकी ड्रेस देखकर ही समझ गयी थी, भीख मांगने का यह बहुत बेहूदा तरीका है.
आज भी पीटीवी पर ‘आधा चाँद’ देखा सुना, पर आज की शायरा में वह बात नहीं थी,
सामान्य सी शायरी थी, पर उन्हें अपने पर यकीन था और जिसे खुद पर यकीन होता है वह
शायर चाहे अच्छा न हो इन्सान जरुर अच्छा हो सकता है. वह जापानी सिखा चुकी हैं और
आज भी सर्विस करती हैं, फिर भी इतना वक्त निकल लेती हैं की मुशायरों में शिरकत कर
सकें और इधर वह है कि अपने इस छोटे से घर को ही दुनिया मानकर खुश रहती है. शायद इस
जन्म में यही उसकी दुनिया है अपने चंद टूटे-फूटे अश्यार के साथ.
कल मैच में उसने एक मैच जीता पर दो हारे, रात भर इसी के सपने आते रहे. कई
चीजों का असर जानबूझ कर न लिया जाये तो भी गहरा पड़ता है, सुबह उठते ही जागरण में ‘श्री
सिंघल’ के विचार सुने, क्वांटम थ्योरी के अनुसार शरीर और आत्मा के संबंध को समझाया
फिर प्रकृति और पुरुष अर्थात ईश्वर के सम्बन्ध को. प्रकृति में कुछ भी कारण रहित
नहीं होता पर ईश्वर के विधान में कारण खोजना व्यर्थ है. इसी तरह सुख, शांति, प्रेम
और इसी तरह की भावनाएं देने से बढ़ती हैं तथा दुःख, अपमान और इसी तरह की भावनाएं
लेने से. प्रश्नकर्ता ने उनसे पूछा था, सदा सुख का अनुभव हो तथा दुःख से मुक्ति,
ऐसा क्या सम्भव है ? सांसारिक वस्तुओं का संग्रह करने से वे बढ़ती हैं पर आत्मिक
वस्तुओं को बांटने से वे बढ़ती हैं, इस विरोधाभास को समझ कर उसे ग्रहण कर लेने पर दुःख की प्रतीति नहीं होगी और
सुख का अभाव नहीं होगा. आज गीता के चौदहवें अध्याय में सत्व, रज और तम गुणों के
बारे में पढ़ा, कल शाम को तम गुण का असर ज्यादा हो गया था जो जून के मन को अपनी
बेवजह की तकरार से चोट पहुंचाई, वह किस तरह चुप हो गये थे जैसे कोई फूल मुरझा गया
हो पर आज वह जरुर खुश होंगे क्योंकि उनकी पसंद के भोजन ने उनके दिल को पहले सा भर
दिया होगा. वह उसके दिल की बातें खूब समझते हैं बस कहने का अंदाज अलग है, उसे भी
तो इतने सालों में समझ जाना चाहिए कि ही इज मैन ऑफ़ एक्शन नोट वर्ड्स, उसने मन ही
मन उनसे क्षमा मांगी. आज उसने छह पत्र लिखे और होली के लिए सफाई भी शुरू की. नन्हा
स्कूल से आ गया है और उसके toenail में बहुत दर्द है फिर भी फोन करके अपने मित्र
को बैडमिन्टन खेलने के लिए बुलाया है.
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