आज उसने पहली बार सत्तू की
कढ़ी बनाई है, सोचा, पता नहीं जून को पसंद आती है या नहीं, वैसे ज्यादातर उसे नूना
की बनाई हर डिश पसंद आ जाती है, नन्हे और उसका स्वाद ही तो नखरीला है. कल शाम ‘क्रिकेट
विश्वकप’ का उद्घाटन समारोह देखा, भव्य और आकर्षक था. दोपहर को उसकी एक सखी आई थी उसने
बताया, वह अपने समय का एक बहुत बड़ा हिस्सा पूजा-पाठ में व्यतीत करने लगी है. उसके
लिए वह खुश तो है पर एक बात की आशंका भी है, यह सारे व्रत-उपवास जिस उद्देश्य के
लिए वह कर रही है, वह पूर्ण न हुआ तो क्या वह भ्रमित नहीं हो जाएगी, हो सकता है उसका
उद्देश्य मात्र समय का सदुपयोग करना और मन को शांत रखना हो, इस दृष्टि से वह सुखी
रहेगी. पर अब जब चाहे जिस विषय पर बात करने की आजादी नहीं रहने से उससे बातें करने
का आकर्षण ही चला गया है. आज सोमवार है यानि पत्रों के जवाब का दिन. कल माँ-पापा
का पत्र मिला, उन्होंने उसके इसहार का लिहाज करते हुए तांत की साड़ी के लिए लिखा
है. आज शाम वे दोनों घरों पर फोन करने के लिए पीसीओ भी जायेंगे.
आज ‘वेलेंटाइन
डे’
है, और आज सुबह-सुबह ही उसने नन्हे को धीरे-धीरे खाने के लिए डांट लगाई, पर हर बार
की तरह अगले कुछ ही मिनटों में सब भुलाकर वह पूर्ववत हो गया, काश ! बड़े भी खास तौर से वह भी
ऐसी ही हो पाती. इस समय वह उपमा खा रहा है और यकीनन सुबह की डांट की परवाह किये
बिना अपनी तरह से ही धीरे-धीरे खा रहा होगा. अभी अभी क्लब की सेक्रेटरी का फोन आया
वह क्लब बुलेटिन भेज रही हैं, इस बार वह अपने एरिया की को-ऑर्डिनेटर जो है. आज
सुबह से इसी सिलसिले में दस फोन आ चुके हैं, सुबह उसने भी अपनी बायीं ओर वाली
पड़ोसिन को फोन किया, उसकी नैनी अपने बच्चों को बुरी तरह पीट रही थी, गुस्से में
प्यार करने वाली माँ भी कैसे दुश्मन बन जाती है.
कल शाम उसे अपने लिखे कुछ शेर पढ़कर अच्छा लगा, यानि कुछ बात है उसकी कलम में.
आज मौसम ने गुनगुनी धूप की चादर ओढ़ी हो, ऐसी गर्माहट है, जो जिस्म और रूह को राहत
दे रही है. सुबह उठते ही टीवी खोला तो आचार्य गोयनका जी के प्रवचन का एक सुंदर
वाक्य कानों में पड़ा – ‘सदाचरण ही धर्म का सार है, मूल है जहाँ मन में विकार
उत्पन्न हुआ हम ऐसा कार्य कर बैठेंगे जो
अधर्म है और विकारी मन अपने आस-पास के वातावरण को भी अशांत कर देता है तथा पहले
अपनी हानि करता है फिर उसकी जिसपर हमें क्रोध या द्वेष हो’. सद्वचनों को पढ़ने का
सुनने का सुअवसर उसे सुप्राप्य है आजकल. ईश्वर की अनुकम्पा के बिना यह सम्भव नहीं.
उस दिन उसकी सखी ठीक ही कह रही थी. वह भी इसी तरह स्वयं में ही संतुष्ट रहकर मन को
स्थिर रख पा रही होगी. कल नन्हे के स्कूल में कार्यक्रम था, बहुत खुश था वह, आज
सुबह बिना टीवी देखे उसने नाश्ता भी किया पर समय उतना ही लगाया.
दिल है कि एक मीठे जज्बे में सराबोर है और आँखें दूर क्षितिज के पार देखने की
हिम्मत रखती हैं. आज सुबह सुने मधुर वचनों का असर हो सकता है या फिर किसी के दुःख
को महसूस कर, कम करने के प्रयास से
उत्पन्न शांति. आज भी धूप का साम्राज्य है, कल नैनी के बेटे ने ढेर सारे लाल बेर
लाकर दिए हैं, यहाँ इन्हें बोगड़ी कहते हैं. बचपन में वह भी जेबखर्च के लिए मिले
पैसों से बेर लेती थी, स्कूल के गेट पर बैठी बुढ़िया से. पर अब खाने के नाम से ही
दांत खट्टे हो जाते हैं, वह मीठा आचार बनाएगी इनका. कल दोपहर उसने जून से कहा वे
दीदी के लिए भी तांत की साड़ी लेकर जायेंगे और फिर उन्होंने सोचा परिवार में जन्मे
चार बच्चों से वे पहली बार मिलेंगे, उनके लिए भी उपहार लेकर जाने हैं. नन्हे की
वार्षिक परीक्षाओं के बाद उन्हें घर जाना है, अभी एक माह शेष है पर मन अभी से उमंग
से भर गया है.
‘
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