Friday, March 15, 2013

लाल लाल सा गाल



परसों यानि शनिवार को बापू के ‘एक सौ चौबीसवें’ जन्मदिन के कारण जून का ऑफिस और नन्हे का स्कूल दोनों बंद थे, वह सुबह व्यस्त थी, दोपहर को ‘गाँधी’ फिल्म देखी और शाम को एक मित्र परिवार के लिए भोजन बनाना था, फ्लाईट कैंसिल हो जाने के कारण वे एयरपोर्ट से लौट आये थे, कल गए.
 माली ने टमाटर के पौधे लगा दिए एक क्यारी में, बागवानी की किताब के अनुसार पचास-पचपन दिन में फल लगने लगेंगे. अभी गुलाब की प्रूनिंग करनी है, उसने इस बारे में भी जानकारी बढ़ाने के लिये पढ़ा. घर जाने के पूर्व रोजमिक्स भी डालना है. यकीनन इस वर्ष गुलाब अच्छे खिलेंगे, शेष फूलों के बारे में अभी कहना मुश्किल है, डहेलिया माली पर निर्भर है और गेंदा वह जाने से पहले लगा सकती है.
  आज सुबह सारे काम जल्दी हो गए हैं, उसने शॉपिंग लिस्ट बनायी, जून तो इतनी लम्बी-चौड़ी लिस्ट देखकर घबरा ही जायेंगे. उसका ध्यान लिखने से हटकर किसी आवाज से बाहर चला गया तो बाहर जाकर देखा, आज पड़ोस वाले घर में डिश एंटीना लग रहा है. आज समय बहुत है फिर भी मन से नहीं लिख पा रही है, खुशवंत सिंह की उस बात का असर ज्यादा ही ले लिया है, जिसमें वह कहते हैं, यह तो स्वार्थ हुआ कि आप योग या ध्यान के द्वारा अपने मन को शांत कर लें. अस्थिर मन उनके विचार से स्वार्थी नहीं होता, जबकि उसका मन इसके बिलकुल विपरीत है.

आखिर आज छोटी बहन का पत्र आ गया, जिसके उसे प्रतीक्षा थी, वह सोच रही थी, शायद सलाह देना उसे अच्छा न लगा हो. अभी कुछ देर पहले विवेकानंद के सुंदर विचार पढे-

Religion belongs to supersenses and not to the sense plane. It is a vision, an inspiration, a plunge into the unknown and unknowable, makine the unknowable more than known, for it can never be known.”  

 उसने सोचा तब तो मानव जीवन का उद्देश्य धर्म ही होना चाहिए न कि केवल खाना, पीना और मौज मस्ती. कल माली ने पत्ता गोभी के पौधे भी लगा दिए, पर वायदे के अनुसार कैप्सिकम नहीं लाया, उसे ध्यान आया, कहीं धूप में पौधे कुम्हला न रहे हों, उन पर कागज की टोपियां लगानी होंगी. नन्हा आज बहुत खुश था, वह पहली बार अपने मित्रों के साथ कुछ ही दूर पर स्थित डी प्लस के पार्क में खेलने गया. आजकल जून उसे कैरम में आसानी से हरा देते हैं, ‘चायनीज चेकर’ में भी अक्सर, पहले वह उन्हें हरा देती थी, पर इसका अर्थ यह नहीं कि वह अच्छा खेलती थी, बल्कि वह अब पहले से बेहतर खेलने लगे हैं, वह वैसी ही है सदा से..

….Whenever anything miserable will come, the mind will be able to say, “I know you as hallucination”, when a man has reached that state he is called Jivanmukta, living fee, “free even living”.

  अभी-अभी विवेकानंद का एक भाषण पढ़ा उसके पास शब्द नहीं हैं यह बताने के लिए कि कितना अद्भुत था उनका मानसिक संसार, कितनी गहन पिपासा होगी उनकी, ज्ञान के इस भंडार को समझकर करोड़ों तक पहुँचाने का काम सिर्फ वही कर सकते थे. शब्दों से तेज टपकता है, धारा प्रवाह वाणी जैसे मन को झिंझोड़ती चली जाती है और रह जाती है पीछे शांति. अब उसे कोई बात पहले की तरह विचलित नहीं कर पाती, क्योंकि आरम्भ में जो लिखा है, यह सब खेल है, नाटक, हमें इसे बस देखते भर जाना है, इसमें खो नहीं जाना है, दर्शक की तरह, कीचड़ में कमल की तरह इस दुनिया से गुजरते चले जाना है. आज नन्हे का पहला यूनिट टेस्ट है, सुबह उसने उसके गाल पर क्रीम लगायी, क्योकि मधुमक्खी या किसी कीट के हल्के दंश से हल्का लाल हो गया था, पर वह बहुत बहादुर है.







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