नए वर्ष का प्रथम दिवस, नये साल के पहले दिन कई अच्छी बातें
हुईं, वे पाइप के पुल पर घूमने गए, बूढी दिहिंग नदी के किनारे दूर-दूर तक रेत फैली
थी, नन्हे ने रेत का छोटा सा घर बनाया. कल रात देर तक टीवी पर कार्यक्रम देखने के
कारण सुबह नींद देर से खुली, गार्डन में मेरीगोल्ड, फ्लौक्स, एक अनाम फूल, तथा
शाकवाटिका में धनिये, पपीते तथा मटर के बीज लगाये.
जीवन का कटु सत्य भी बार-बार सामने आता रहा,
जिससे भी अपेक्षा रखो यहाँ निराशा ही मिलती है और मन आहत होता है. यह पीड़ा ही शायद
उसकी नियति है या वह अपेक्षा ही ज्यादा रखती है. यदि किसी से उसके किये गए वायदे
को निभाने की अपेक्षा रखना अधिक है या विवाह की सालगिरह आने पर अपने लिए ज्यादा
आत्मीय सम्बोधन की अपेक्षा रखना. उचित यही होगा कि वह किसी से भी कोई अपेक्षा कभी
न रखे. कहीं इसका कारण यह तो नहीं कि वह “Great Expectations” पढ़ रही है आजकल ! उसके थोड़ा
सा उदास होने पर नन्हा परेशान हो जाता है और जून झुंझला जाते हैं, और उसे महसूस
होता है कि उसकी खुशी ही उनकी पहली चाहत है. रविवार की दोपहर को जून के बनाये गाजर
के हलवे की सभी ने तारीफ की. शाम को वे दोनों जब घूमने गए तो इस मौसम की पहली
शीतलहर चेहरे पर महसूस की, इस साल यहाँ ठंड काफी कम है.
कल जून देहरादून जाने वाले हैं, दोपहर तक यह
ख्याल मन को बेचैन नहीं कर रहा था, पर अब धीरे-धीरे उदासी की हल्की परत मन पर छाने
लगी है. जून इतना ख्याल रखते हैं उसका व नन्हे का. उनकी हर छोटी से छोटी बात में
वह शामिल हैं. आज दोपहर को ‘पिप’ की कहानी आगे पढ़ी, और नन्हे के टूटे हुए पैराशूट
को ठीक किया. उसकी छात्रा ने कार्ड के लिए धन्यवाद दिया और नन्हे को उसके मित्र ने
एक कार्ड दिया. ऐसी छोटी-छोटी घटनाएँ फिर से विश्वास दिलाती रहती हैं कि जीवन इतना
कठोर नहीं कि उदास हुआ जाये. दोनों छोटे भाइयों के कार्ड भी मिले, पत्रों के लिखने
का दिन था, पर हर हफ्ते फोन पर बात हो जाती है जून की, पत्रों की अहमियत कम हो गयी
है.
नीले से फिर हुआ सलेटी, काला
होता अम्बर
नृत्य अनोखा करते पत्ते हवा
बहे जब सर सर,
टप टप बूंदें बरस पडीं लो
तेज हुआ वर्षा स्वर
बिजली चमकी मेघ गरजते, समां
बंधा कितना सुंदर !
आज जून को गये पहला दिन है, उसके लिए स्वेटर बना रही है. टीवी के सामने काफी देर बैठे रही, शाम को टहलने
गयी नन्हे के साथ. सो दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. माली आया था पानी का नल
खोल तो दिया पर उससे बंद ही नहीं हुआ, कल उसे ठीक करवाना है. शाम को ‘सरस्वती
पूजा’ का चंदा मांगने एक दल आया था, जिन्हें शिक्षा से कोई मतलब नहीं ऐसे लोग पूजा
के नाम पर मौज करते हैं, जून होते तो मना करते, पर उसने दे दिया. नन्हा कह रहा है
कल वह स्कूल नहीं जायेगा, छुट्टियों के बाद पहले दिन पढ़ाई नहीं होती है. उसने लकड़ी
के बक्से से सारी चम्पक निकालीं, इस वक्त उनमें से एक पढ़ रहा है. दिन भर वह कुछ भी
करती रही पर जून का ख्याल हमेशा साये की तरह लगा रहा.
एक दिन और बीत गया, उसकी बंगाली सखी का फोन आया उसके बगीचे
से गुलाब के पौधे चोरी हो गए, सुनकर व सोचकर उसे बहुत दुःख हुआ, वह कितनी उदास रही
होगी. आज सुबह नन्हा उसे गुलदस्ते के लिए फूल तोड़ने से मना कर रहा था वह रूठ ही
गया इस बात पर कि फूलों को दर्द होगा. पड़ोस का बच्चा भी स्कूल नहीं गया, वह अपनी
माँ के साथ सुबह आया था. दोनों खेलते रहे. शाम को उसे लेकर टहलने गयी, झूला पार्क
दिखाया नन्हे ने. कुछ देर बैडमिंटन खेला. “डॉक्टर्स” किताब के कुछ पृष्ठ पढ़े. कुछ देर
पहले सोच रही थी, अब जब भी समय मिलेगा लिखेगी, एकांत खोजते-खोजते कभी एकांत नहीं
मिलता और जब मिलता है तो कविता नहीं बनती, रचना और जीवन जब एक हो जायेंगे, तब हर
वक्त मन कुछ रच जाने के काबिल रहेगा. किसी खास वक्त का मुहताज नहीं रहेगा.
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