Monday, March 11, 2013

भोज के वृक्ष



भारत छोडो आन्दोलन की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष में आज अवकाश है, वे तिनसुकिया गए, एक और परिचिता व उसके छोटे से बेटे के साथ. शाम को एक परिवार मिलने आया, दिन भरा-भरा सा रहा. शाम को जून को थकावट हो गई, धूप में ड्राइविंग करने के कारण ही शायद.
अभी-अभी कल्याण में उसने पढ़ा, जिसके हृदय में भगवान रहते हैं वहाँ भय, विषाद, शोक, व्याकुलता, उद्वेग, निराशा, क्षोभ, संदेह, अश्रद्धा, ईर्ष्या, कायरता, द्वेष आदि का स्थान कहाँ है ? वहाँ तो निर्भयता, शक्ति, तेज, प्रकाश, प्रेम, निष्कामता, संतोष और परम आनंद का निवास होता है. जब ईश्वर अपना लेते हैं, तब वही जो कुछ विधान करेंगे, कल्याण के लिए करेंगे. दुःख हम अपनी ही भूल से अनुभव करते हैं, उस भूल को मिटाने की देर है कि चित्त स्थिर रह सकता है. जैसे स्वप्न में वह तरह-तरह की आपदाओं को झेलती है मगर यह भान होते ही कि यह तो स्वप्न है, मन शांत हो जाता है उसी तरह जीवन में कोई परेशानी हो तो उसे स्वप्न वत मानकर झेल लेना चाहिए क्योंकि उसके बाद तो सुदिन आएंगे ही.

  आज जन्माष्टमी है, सुबह से जो मन शांत था अभी कुछ देर पूर्व नन्हे पर झुंझला ही गया, बच्चे तो आखिर बच्चे ही हैं, काम धीरे-धीरे ही करेंगे न. आज उसने व्रत रखा है, नन्हे और उसने मिलकर मंदिर सजाया है, अच्छा लगता है ईश्वर के करीब रहना लेकिन मन फिर कहीं  और चला जाता है. कल दीदी का छब्बीस का लिखा पत्र आया और कैसा संयोग है उसी दिन उसने भी उन्हें लिखा था. कल छोटे भाई के लिए जन्मदिन का कार्ड लायी थी. नन्हे का स्कूल खुला है, जून आज किसी से लिफ्ट लेकर ऑफिस गए हैं, ‘स्टूडेंट्स यूनियन’ ने चौबीस घंटे का बंद घोषित किया है, कार ले जाना ठीक नहीं था. कल शाम एक सखी के बुलाने पर वे लोग उसके यहाँ गए. लेकिन आज उसे इन दुनियादारी की बातों से मन हटाकर पूर्णता की ओर ले जाना है, जहाँ कोई उलझन नहीं..अद्भुत प्रकाश है, जिसके आगे कुछ पाना शेष नहीं रहता न ही कुछ जानना. दीदी ने लिखा है, “कहीं कुछ ऐसा पढ़ो जिसके आगे लगे कि अब और कुछ नहीं, फ़िलहाल कुछ भी नहीं, तो लिखना”. उसने सोचा अभी पढ़ेगी विवेकानंद की दूसरी पुस्तक उसमें अवश्य ही ऐसा कुछ मिलेगा.

  कल का उपवास अच्छी तरह से सम्पन्न हो गया. जून को कल दोपहर दांत में दर्द था, आज तिनसुकिया गए हैं डेंटिस्ट के पास. आज उसने लंच अकेले ही खाया, जून अभी एक घंटे बाद आएंगे. शायद उन्हें रूट कैनाल ट्रीटमेंट करना पड़ेगा. कई बार जाना होगा. सुबह अलमारी की सफाई के काम में लगी रही. पढ़ने की कोशिश की पर मन नहीं लगा, रात को फिर स्वप्न देखे, इधर-उधर के, अभी उस दिन ही मरते-मरते बची थी एक स्वप्न में. शाम को उन्हें एक परिवार के साथ बैठकर “हम हैं राही प्यार के” देखनी है, कल जून का जन्म दिन है, उसने अभी-अभी एक कार्ड बनाया है. कुछ देर पहले जून को विवाह से पूर्व लिखे कुछ खत पढ़े, कितन प्रगाढ़ था उनका रिश्ता, प्यार के रिश्ते सचमुच कितने मजबूत होते हैं.

  जून का जन्मदिन अच्छा रहा, उसने केक बनाया था. घर पर ही भुजिया भी बनाई थी. पन्द्रह अगस्त पर वे तीनों नेहरु मैदान गए, झंडा आरोहण में सम्मिलित होने. कल रात को एक मधुर स्वप्न देखा, वर्षों बाद भी वह सब उसके अवचेतन में उतना ही सजीव है जितना उस क्षण था, सोलह-सत्रह वर्ष पहले की बात है जब वे पहाड़ों में रहे थे, लेकिन अब भी स्मृति पटल पर सब कुछ कितना स्पष्ट है. वर्षों से स्वप्नों में ही मिलती रही है, लगता है हर साल एक बार मिलना हो जाता है उन वादियों से. यूँ फूट-फूट कर रोना...एक अनजानी तृषा..एक अधूरा वादा लिए ही लगता है इस जग से जाना होगा...वे झरने.. वे रास्ते..वे पहाड़ कभी मिलेंगे उसे? अभी तक जैसे पोर-पोर महसूस कर रहा है वह सब कुछ..स्वप्न इतने मधुर भी हो सकते हैं ? अभी तक उसके मन का एक कोना सुरक्षित है उन यादों के लिए यह उसे स्वयं भी मालूम नहीं था, इतनी शिद्धत से महसूस कर सकती है उस छुअन को इस पल जो वर्षों पहले भी अनजानी थी और आज भी है पर स्वप्न सारे बांध तोड़ देते हैं..नदियाँ मिल जाती हैं..तट तोड़कर...और स्वप्न क्या सिर्फ उसके हिस्से में ही हैं ? और यह भी कि प्रेम सिर्फ बचपना नहीं है..प्रेम उम्र की सीमाओं से परे है. जैसे उसका मन इस समय एक अनोखे प्रेम से लबरेज है..कसक भरा प्यार उन भोज वृक्षों के लिए और फूलों की घाटी में बहती उस चांदी के समान जल धार के लिए..   





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