Tuesday, March 12, 2013

ला ओपेला का सेट



गुलदाउदी के पौधे एक-दो दिनों में मिल जायेंगे, फोन उसकी सखी ने ही किया था, सो उसका यह आक्षेप कि सदा उसे ही फोन करना पड़ता है, गलत सिद्ध हो गया जिसकी उसे खुशी है. शाम को असमिया सखी के घर जाना है, उससे भी बात हुई है, वह उसके नए लाल सूट में इंटर लॉकिंग कर के देगी अपनी नई फ्लोरा पर, और आज सुबह से दो बार प्रेम की अधिकता या भावों की अधिकता के कारण उसकी आँखों में अश्रु झलक आये, कल भी ऐसा हुआ था, कहीं यह उस स्वप्न का असर तो नहीं, या सम्भव है सात्विक भाव प्रगट हुए हों. लेकिन मन ने कल एक-दो बार ऐसा सोचा कि उनकी परवाह किसी को नहीं, उन्हें ही सबकी परवाह है - लेकिन यह सत्य नहीं है, और अगर ऐसा हो भी तो इसमें उदास होने की कोई बात नहीं, बल्कि उन्हें किसी से अपेक्षा करने का कोई अधिकार नहीं. जून के दांत का दर्द कम है, कल उन्हें फिर जाना है. नन्हा आज जल्दी उठ गया था, पर तैयार होते-होते उसे पौने नौ बज गए, शायद उसे खांसी फिर से परेशान कर रही है, वैसे वह गंध के प्रति बहुत संवेदन शील है, हल्की सी गंध से खांसने लगता है.

मौसम भीगा-भीगा है, बादल बरस कर अभी-अभी थमे हैं. खिडकी से नजर बाहर डालो तो बस हरियाली ही हरियाली है. जून इस वक्त तिनसुकिया में होंगे. नन्हा कह रहा था आज से उसकी छुट्टी देर से होगी, उसका टाइम टेबिल आज से बदल रहा है. उसकी पुरानी पड़ोसिन का फोन आया तो उसे अच्छा लगा. कल रात को एक बार गर्मी के कारण नींद खुली फिर सुबह ठंड के कारण- एक जमाना था कि नींद आती थी तो सर्दी-गर्मी और मच्छर किसी का पता नहीं चलता था. बेसुध और बेखुद हो जाती थी. रात बचपन को याद करके सोयी थी, बचपन के माँ-पिता को भी. कल उनका पत्र आया था, लिखा है, अगले महीने उनका घर बनना आरम्भ हो जायेगा, जनवरी तक पूरा भी हो जायेगा. कल जून एक महिलाओं की एक अंग्रेजी पत्रिका लाए, इंग्लैण्ड में प्रकाशित, वहाँ कि संस्कृति यहाँ से कितनी अलग है, उसने गार्डनिंग पर एक लेख पढ़ा, फिर पड़ोसिन से हेज के पास खड़े होकर बात करने लगी पता ही नहीं चला सवा घंटा कैसे बीत गया. उसके बेटे को चिकन पॉक्स हो गया है, वह सो रहा था.

  कल उसके जीवन का एक बहुत अच्छा दिन था, शाम को उसकी एक छात्रा अपने माँ-पिता व छोटी बहन के साथ आयी. वे लोग उसके लिए एक उपहार भी लाए. उन्हें उन सबके आने की उम्मीद नहीं थी, उसके पहले एक मित्र परिवार आया था, घर काफी अस्त-व्यस्त सा हो गया था, खैर.. वे लोग अचछे लगे सरल और सहज..और इतना सुंदर ला ओपेला ला का dessert set.

  उसके पैरों में आज वही दर्द है, डायरी उठाई है, दस बजने को हैं अभी..बस..कुछ..भी..ये चारों शब्द उसके मन की अस्थिरता के परिचायक हैं. कल फेमिना में एक बहुत अच्छा लेख पढ़ा. रात को देर तक सोचती रही कि उसे अपने वक्त का सदुपयोग करना चाहिए, कोई न कोई काम करते रहने की वैसे उसकी आदत तो है ही, बस काम थोड़ा उद्देश्यपूर्ण हो इसका ध्यान रखना होगा. लेकिन अब इस दर्द में तो सिर्फ आराम से बैठकर पढ़ा जा सकता है, नहीं जी, अब इतना भी नाजुक नहीं होना चाहिए इंसान को कि जरा सा मौका मिला नहीं कि लम्बी तान ली...मगर वह तो पढ़ने की बात कर रही थी और वह भी विवेकानंद की किताब का तृतीय अध्याय.  

  दोपहर के पौने दो बजे हैं. किसी परिचिता ने बताया कि नन्हे को कल बस में किसी बच्चे ने मारा था, उसने उन्हें बताया नहीं, शायद इसका कारण यह तो नहीं कि वे उसे कमजोर कहते हैं, मार खाकर आने पर, इस तरह तो वह अपनी समस्या बताएगा नहीं, उसने मन ही मन तय किया, अब से वह ऐसा नहीं करेगी. वह आजकल सुबह सब काम समय पर कर लेता है, पहले की तरह बार-बार नहीं कहना पड़ता. नन्हे से पूछने पर उसने इंकार कर दिया कि बस में किसी से झगड़ा हुआ था, इसका अर्थ हुआ कि सूचना सही नहीं थी. उसका गणित का टेस्ट कल फिर नहीं हुआ. कल ड्राइंग प्रतियोगिता है, पिछले दो-तीन दिनों से उसके मित्र शाम को खेलने आ जाते हैं. वे सब अँधेरा होने तक खेलते रहते हैं, उसे अपने बचपन के दिन याद आ जाते हैं, जब माँ भीतर से आवाज देती थीं और वह अपनी सहेलियों के साथ रस्सी कूदने, गेंद गिट्टी खेलन में व्यस्त रहती थी.

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