Monday, March 4, 2013

कक्षा दो का टाइम टेबिल



आज अभी सुबह ही है, शनिवार है, दोपहर को जून घर पर होंगे. कल शाम को उनसे नोक-झोंक हो गयी, वही पुरानी खाने-खिलाने की बात पर. रात को कहने लगे दोपहर को यह सब क्यों बनाती हो, मैगज़ीनस् क्यों नहीं पढ़ती ? अब उन्हें कैसे समझ में आयेगा कि आजकल पत्रिकाओं से उसका मोहभंग हो गया है, उसे कहानियों में भी अब उतना रस नहीं आता, और राजनितिक दांवपेंच में तो बिल्कुल नहीं. आजकल उसे वह हर चीज पढ़नी अच्छी लगती है जो मन को कहीं गहरे छू जाये, कुछ सिखाए या फिर...बस. आज भी मौसम ने बादलों की पोशाक पहनी है. नन्हा स्कूल गया है, डेविस कप के मैच के कारण शायद आज व कल टीवी फिल्म जल्दी दिखाई जायेगी, कल क्लब में ‘जीने दो’ फिल्म थी यूँ ही सी थी, हाँ, जीने का हक सबको है, आजादी से जीने का. वहीं नन्हे की क्लास टीचर मिलीं, उन्हें बता दिया उसने स्कूल न जाने का कारण, मगर रात देर तक सोचती रही, क्यों कहा, कुछ और कह देती. कभी-कभी सच बोलकर भी बेचैनी होती है, झूठ बोलकर भी, ऐसे में चुप रहना भी सम्भव न हो तो ? आज वर्षों बाद बेसन की सब्जी बनायी.

आज फिर चार दिनों बाद डायरी खोली है, इतवार को नन्हे को हल्का जुकाम था, स्कूल नहीं भेजा, उसका भी स्वास्थ्य उन दिनों की वजह से कुछ ठीक नहीं था, स्कूल के दिनों में एक बार कापी में ऐसा ही कुछ लिखा था, उसकी सहेलियों ने पढ़ा तो बहुत हँसीं थीं. कल सभी भाइयों को राखी भेज भी दी. कल दोपहर टीवी पर कछुए पर टाइम टेबिल बनाना देखा, नन्हे के लिए बना रही है. जून कल ज्यादा चुप नही थे, उसके पहले के दो दिनों की तरह, जीवन को पल-पल जीया जाये तो इसमें उदासी के लिए कोई जगह ही नहीं है. स्वामी विवेकानंद की पुस्तक पढ़े काफी दिन हो गए हैं, एक फितरत होती है हर काम को करने की, अभी उसका मन उसे स्वीकारने को तैयार नहीं है, तो वह वह कार्य नहीं कर सकती, लेकिन यह तो मन की गुलामी हुई, वही प्रेरणा का इंतजार करने वाली बात, जो उसे नहीं करना है.

मौसम आज बुद्ध के मध्यम मार्ग का अनुसरण कर रहा है. कल रात भी अच्छी नींद आई, पिछले तीन-चार दिनों से बहुत गहरी नींद आती है, पहले की तरह भेड़ें नहीं गिननी पड़तीं. जून भी कल स्वस्थ लग रहे थे, खुश थे, उनके साथ कभी-कभी बेवजह वह तल्ख लहजे में बात कर देती है, वह ध्यान नहीं देते, शायद समझ गए हैं कि यह उसकी आदत है. लेकिन उन दिनों जब राजयोग पढ़ रही थी ऐसा बहुत कम होता था. उसे लगता है कि दिनोदिन वह  अपने मस्तिष्क का इस्तेमाल करना कम करती जा रही है. उसे नन्हे के लिए छुट्टी का प्रार्थना पत्र लिखने में दो पेज लगे, पहला ठीक नहीं लगा, जब भी उसे कुछ नया लिखना होता है, कलम रुक जाती है, नन्हे से उसने वायदा किया है कि जब वह स्कूल में होगा, उसके लिए एक कहानी लिखेगी.

फिर तीन दिन यूँ ही गुजर गए, शनि को असम बंद था, नन्हा घर पर ही था पर जून ऑफिस गए थे, किसी ने भी रास्ते में नहीं रोका, कितने सच्चे-झूठे डर इंसान ने पाल लिये हैं, आजतक जितने भी बंद होते थे, लोग घरों से नहीं निकलते थे, पर अब कार लेकर जाते हैं. रविवार को वह असमिया सखी के यहाँ गयी, उसने फ्लोरा मशीन खरीद ली है, उसे सिलाई-कढ़ाई का शौक भी है, उस दिन एक तेलगु परिवार में गयी थी, वहाँ भी आजकल बहुत सी चीजें बना रही हैं गृहणी, वाल हैंगिंग, टीवी कवर, पेंटिंग और भी बहुत कुछ, बंगाली सखी को बागवानी का बहुत शौक है, एक उसे ही कोई खास शौक नहीं है किसी एक चीज का, हाँ, थोडा बहुत सभी का है. कल फोन पर पुरानी पड़ोसिन से बात की, बाद में लगा कि वह थोडा और विनम्र हो सकती थी, लेकिन यह रूखापन आया कहाँ से...उसकी कोई बात उसे चुभी और...इसका अर्थ हुआ कि अब भी वह वहीं की वहीं है, आदिम आदतों से पीछा छुड़ाना इतना आसान तो नहीं. कल दोपहर खतों के नाम थी. कल क्लब में मीटिंग है उसे इंतजार है, लगता है इतने वर्षों तक क्यों नहीं गयी, खैर, हर चीज का एक वक्त होता है. कल व परसों रात को दो कहानियाँ बुनीं थीं, देखेगी, कहाँ तक उतरती हैं पन्नों पर. जून ‘कक्षा दो’ के लिए, एक सुंदर सा टाइम टेबिल बना कर लाए हैं, नन्हे की क्लास टीचर बहुत खुश होंगी.







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