Friday, March 22, 2013

अखरोट और मूंगफली




आज तो जून देहली में होंगे, कल वापस आना है, अब बहुत इंतजार हो गया, उसने सोचा, जल्दी से वे आ जाएँ, आज शाम से ही मन कैसा हो रहा है, इतने दिन गुजर गए पर अब कुछ घंटे गुजारना इतना मुश्किल लग रहा है. सुबह देर से उठे, नन्हे की छुट्टी थी, आज मूली के परांठे बनाये, जाने से पहले ढेर सारी सब्जियों के साथ एक किलो मूली भी रख गए थे वह, पर दो अभी भी शेष हैं. दोपहर को चने की दाल और सेम-आलू की सब्जी, नन्हे को पसंद है चने की दाल, इतने दिनों में तीन बार बनाई है और अब मन करता है तीन महीने तक नाम न ले. आलू खाते खाते भी...दरअसल बात यह है कि अब उसके बिना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा, वैसे भी वह किस कदर ध्यान रखते थे उसका. दोपहर भर “डॉक्टरस्” पढ़ती रही, फिर गुजराती फिल्म देखी, शाम को भ्रमण और फिर स्क्रैम्बल, और अब जून के पास है या कहें वह उसके पास है. नन्हे ने उत्साह दिला-दिला कर आलू फ्राई तथा तीन परांठे बनवाये दोनों के लिए. अब वह ब्रश करने गया है, दोपहर से बल्कि सुबह से ही उसका मन कुछ क्रिएटिव वर्क करने का है, दोपहर को दफ्ती की एक मेज बनाई, कुछ उड़ाना चाहता है वह, लिफाफे में आग लगाकर उसे उड़ाना हो या गुब्बारा या पतंग, पर कुछ भी तो नहीं दे सकी वह उसे, अब जून ही आकर देखेंगे और उसके कई सवाल भी इकट्ठे हो गए हैं.

  ओह !...और आज जून ने उसे कितना रुलाया, सुबह जब उसके बॉस की पत्नी ने फोन किया तो वह एकदम से इतनी पजल्ड हो गयी कि...जैसे कोई फूले हुए गुब्बारे में से पिन चुभाकर यकायक सारी हवा निकाल दे या ऐसा कि मंजिल पर पहुँच कर पता चले, मंजिल तो अभी और दूर है. नतीजा आँसू.. नन्हा उसे समझा रहा था, उसने जब कहा, पापा भी बस तुम्हारे....तो बोला क्या किया है पापा ने ? पर उसे तो जून जानते ही हैं, क्या-क्या सोचने लगी कि उसे उनकी फ़िक्र नहीं है, कि वह अपना वायदा भूल गए हैं, याद नहीं रहा कि जाते  समय उसने कहा था, पन्द्रह को पक्का आ जाना. वह सोचने लगी कि जानबूझकर दिल्ली में रुक गए होंगे...दोपहर भर सिर में दर्द रहा, आँखों पर जून का रुमाल रखा, दवा ली. शाम को फिर फोन आया कि वह कोलकाता पहुँच चुके हैं, यानि उसे वह सब नहीं सोचना चाहिए था...सुबह उसकी असमिया सखी अपने बेटे को छोड़ने आई थी, पति के साथ तिनसुकिया जा रही थी, उन्होंने भी कहा, फ्लाईट मिस हो गयी होगी या टिकट कन्फर्म नहीं होगी. तो जून जानबूझकर नहीं रुके बल्कि रुकना पड़ा, उसे बहुत अफ़सोस हुआ अपनी सोच पर. लेकिन सुबह फोन पर पूरी बात बता दी होती तो...पर अब वह उसे करीब ही लग रहे हैं पहले की तुलना में...कोलकाता तो यहाँ से नजदीक है न ? नन्हे को शाम से जुकाम हो गया है, इतने दिनों तक उसे एक छींक भी नहीं आई पर आज दोनों..शाम को उसने “सूरज का सातवाँ घोड़ा” देखी, अच्छी है, शायद जून ने भी देखी हो, एक रात उन्हें और सपनों में मिलना होगा.

  सोमवार सुबह, इस समय उसका हृदय स्नेह से लबालब भर गया है जैसे बादलों में से झाँकते हुए सूर्य ने धरती को रोशनी से भर दिया हो. कल शाम जब वह आया तो उनका मिलना कितना शांत था, कल्पना में उसका स्वागत जिस तरह किया था उसे बिलकुल अलग...और नन्हा कितना खुश था, उत्साह से भरा-भरा..जून ने उन दोनों को हमेशा ही इतनी खुशी दी है ! अभी-अभी वह दफ्तर गए हैं, कार में बैठकर सिर हिलाकर विदा कहना, उसे अंदर तक छू गया और अंदर आकर वह यह डायरी खोलकर बैठ गयी है, उसकी अलमारी खुली है..दूसरे कमरों में भी उसके कल लाए सामान इधर-उधर बिखरे हैं..उसके कारण घर कितना भरा-भरा लग रहा है..एक-एक सामान सहेजते हुए वह याद आते रहेंगे...आते ही रहेंगे. कल रात को उसने पिछले कई दिनों की तरह पन्नों पर अपने दिल का हाल नहीं लिखा बल्कि जून के मन पर..प्रेम में यह कैसा जादू है जो उन दोनों को इतने करीब ले आया है..वे बारह-तेरह दिन बाद मिले पर भीतर कैसी सिहरन पैदा हो रही थी जैसे वे पहली बार मिले हों. कल सुबह और रविवारों की तरह ही थी, दोपहर को टीवी पर फिल्म देखी, उन की प्रतीक्षा में समय बिताना आसान हो गया था..शाम अभी हुई भी नहीं थी शायद साढ़े तीन बजे होंगे कि आ गए. इतने सारे उपहारों की साथ- अंगूर, अनार, रसभरी, दो तरह की गजक, खजूर, तिल की मीठा, मूंगफली, अखरोट, चिरौंजी, चने, उसके लिए गाउन का कपड़ा, नन्हे के लिए दस्ताने, चप्पल और न जाने क्या-क्या...पर अपने लिए तो उसने कुछ नहीं लिया न, और अभी नाश्ता करते समय उनका पीछे हुए खर्चे का हिसाब जानना भी कितना संयत था, डिप्लोमैटिक, वह हैं ही ऐसे. वह उसे सदा प्रेम करेगी..सदा...




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