कल के बादल अभी घिरे हैं, कालेज गयी थी, लौटी तो देखा
नन्हा फिर सोया नहीं था दोपहर को. जून को पत्र लिखा, गोंद नहीं थी सो सेलो टेप से
चिपकाया, पर ठीक से नहीं हो पाया है. सारनाथ के बारे में अभी तक नहीं लिखा है,
सिन्हा व सुधा मैम से कहा किताब के लिए पर उन्होंने नहीं दी, लड़कियों का हक है जिन
पर उन किताबों पर भी अध्यापिकाएं अपना अधिकार जमा लेती हैं. उसने तय किया भविष्य
में कभी उनसे कुछ नहीं मांगेगी. एक किताब खरीदी उसने, पर विशेष लाभ नहीं हुआ, खैर
कुछ ही सही. कल से तीन दिनों के लिए कालेज बंद है. ढेर सारे काम करने हैं और पढ़ाई
तो करनी ही है.
छुट्टी का पहला दिन कैसे
शुरू हुआ और कैसे बीत गया वह स्वयं भी नहीं समझ पायी, सुबह का वक्त तो रोज ही
व्यस्तता में गुजरता है, फिर नन्हे को पढ़ाने लगी, दोपहर का भोजन, उसे सुलाना और तीन
बजे जब पढ़ने आई तो बिजली गायब, दस मिनट बिना बिजली के पढ़ा तो माँ ने ऊपर बुला
लिया, घर का वातावरण सामान्य हो गया है. फिर ननद का फोन आया, उसकी किसी मित्र के
यहाँ जाना है. तभी पोस्टमैन आ गया, जून के दो पत्र थे, पढते ही सुधबुध खो गयी पर
उन्हें देर तक एन्जॉय करने का समय ही नहीं था, अर्थात वह फौरन उसे जवाब नहीं लिख
सकी. वहाँ से लौटे तो आठ बज चुके थे. भोजन बनाया, पत्र लिखा..आम पत्र नहीं , प्यार
का दस्तावेज, चालीस नम्बर का नहीं पैंतालीस...पिछले दिनों वह नम्बर गलत डाल रही थी
शुभ प्रभात ! आज वह सुबह
जल्दी उठ गयी है, रात को आशिक चन्द्र ग्रहण देखा था, मकान मालकिन के यहाँ गांव से
कुछ महिलाएं आयीं थीं कल गंगा स्नान करने. अभी समाचार देखने के बाद टीवी बंद क्र
रही थी कि पेन नीचे गिर गया, रिफिल बेकार हो गयी, कितना प्रयास करना पड़ रहा है उसे
चंद पंक्तियाँ लिखने में. दक्षिण अफ्रीका में पुलिस कितनी बर्बर है, अभी महिलाओं
पर लाठी चार्ज होते देखा समाचारों में.
जैसे नियमित वह लिख रहे
हैं वैसे ही नियमित आजकल उसे खत मिल रहे हैं. माँ-पिता जी का भी पत्र आया है,
उन्होंने लिखा है, अप्रैल में वे तीनों वहाँ आएंगे, इसकी प्रतीक्षा वे लोग कर रहे
हैं. उसने सोचा तब की तब देखेंगे, अभी से कुछ नहीं कह सकती. उसने एक सप्ताह में एक
विषय पढ़ने का निश्चय किया, ग्यारह बजे उसने बत्ती बंद कर दी.
तीन दिन बाद कालेज गयी,
आरती मैडम जब लेक्चर दे रही होती हैं, उसे बहुत अच्छा लगता है, उनकी क्लास ही सबसे
अच्छी होती है. और एक मेहरा मैम हैं, कल के लिए पढ़ने को कहा है पर..कल या तो वह खुद अनुपस्थित हो जाएँगी या
भूल ही जाएँगी. फिर भी उसे पढ़ना तो है ही. यह प्रथम पेपर है भी द्रौपदी के चीर की
तरह कहीं भी इसका ओर-छोर दिखाई नहीं देता.
आज उसका स्वास्थ्य ठीक
नहीं लग रहा है, हल्का ज्वर सा लग रहा है, कालेज में थकान लग रही थी. सुबह अंगूर
खाए, अच्छे लगे, बाकी चीजें कड़वी या फीकी लग रही हैं.
आज फिर वह सुबह कालेज चली तो
गयी पर बीच में छोड़ कर आना पड़ा, बुखार बढ़ गया था. अब लगता है कुछ दिन घर पर ही
आराम करना होगा.
आज स्नान किया उसने पूरे
आठ दिनों बाद, अभी भी मुंह कड़वा है, पिछले आठ दिनों में मन में न जाने कितने बवंडर
उठे हैं पर उन्हें याद करना क्या बहुत जरूरी है.
आज शिव रात्रि है, काफी ठीक
महसूस कर रही है पर सब्जी में कोई स्वाद नहीं आ रहा. सोच रही है रात को खाना खुद
ही बनाएगी. यहाँ खाने में विविधता नहीं है, रोज वही मसूर की दाल या मूंग मिली
अरहर, इसके अलावा भी दुनिया में कुछ होता है, यहाँ लोग जानते ही नहीं. सब्जी भी
वही आलू गोभी टमाटर, खूब भुनी हुई. वड़ी वाले चावल, गोभी वाले चावल, लौंग बड़ी
इलाइची वाली तहरी, मूली, गोभी के परांठे..सब सपने की चीजें होकर रह गयी हैं. यहाँ
खाने का मतलब पेट भरने से है, सच है आजादी से बढकर कोई वस्तु नहीं , अपने घर में
वह आजाद थी, खुश, निर्द्वन्द्व कुछ भी करने को स्वतंत्र !
No comments:
Post a Comment