यहाँ आने के बाद से नियमित लिखने का
क्रम बन ही नहीं पा रहा है, जब तक एक निश्चित समय तय नहीं कर लेती ऐसा ही होगा,
सुबह नन्हे के जाते ही पहला काम क्योंकि उसके पहले तो मुश्किल है, और शनिवार को
जून के जाते ही. इतवार को जैसा समय मिले, ज्यादातर सुबह उनके उठने से पहले. आज
कितने दिनों के बाद रात से ही वर्षा हो रही है, मौसम ठंडा है रोज तो पसीना पोंछते-पोंछते
ही रहना पड़ता था. अभी पौने दस हुए हैं, दोपहर का भोजन बन गया है. उसके सामने तीन-चार
कार्य हैं - क्रोशिये का काम, जून का मफलर अधूरा है, टालस्टाय की crime and
punishment या कोई अन्य पुस्तक पढ़ना, स्वयं कुछ लिखना अथवा घर की सफाई और पूरा एक घंटा
है, वह सोचने लगी कि क्या करे. जून के कान का दर्द ठीक ही नहीं हो रहा, दो-तीन दिन
पूर्व वह बहुत नाराज हो गया था, गलती सरासर उसकी थी सो उसके गुस्से पर प्यार आया
था उसे, अपने से भी ज्यादा ख्याल रखता है
वह उसका, हर वक्त हर क्षण, उसे भी उसके बिना चैन नहीं मिलता, जितना वक्त वह घर पर
रहता है मन होता है वे साथ साथ रहें...पर और भी गम है जमाने में मुहब्बत के सिवा,
उसकी पढ़ाई आजकल बिलकुल ठप्प है. नन्हे का स्कूल ठीक चल रहा है, उसने तय किया कि वह
क्रोशिये पर नया नमूना उतारेगी.
कल सोनू को स्कूल नहीं भेज
पायी काफी देर तक मन परेशान रहा, उसकी भोली बातें भी मन को हँसा नहीं सकीं, पता
नहीं ऐसा क्यों होता है कभी-कभी. आज इस समय शाम के पांच बजे हैं, वर्षा पिछले तीन
दिनों से लगातार हो रही है, नन्हा सोया है, जून दफ्तर गए हैं, सीएमडी का दौरा है,
शायद छह बजे आयें, फिर फील्ड जाना है, आजकल काम ज्यादा बढ़ गया है. दोपहर को भी डेढ़
घंटा देर से आये. कुछ दिन पहले काम कम होने कई शिकायत कर रहे थे.
आज छोटी बहन का जन्मदिन
है, वह खुश तो होगी, उसे हमारा पत्र व कार्ड भी मिल गया होगा. मुहम्मद रफी की नौवीं
पुण्यतिथि भी आज है, उसे याद है जिस वर्ष वे अपने पैतृक स्थान पर लौटकर आए थे, कुछ
दिन वे दादाजी के साथ रहे थे, तभी मुहम्मद रफी का देहांत हुआ था. जून ने बनारस फोन
करने की कोशिश की पर कोई फायदा नहीं हुआ. आज उसने अपने एक मित्र को तिनसुकिया से
टिकट बुक करने को कहा है, देखें क्या होता है, टिकट मिल गयी तो पाँच को उसे जाना
होगा, वैसे अभी तक तो यही निश्चित नहीं है कि ट्रेन चल रही है यह नहीं. उसे यहाँ
आना ही नहीं चाहिए थे यह कहने का मन नहीं होता. यह एक महीना या बीस-पच्चीस दिन ही,
मधुरता से बीते हैं जैसे छुट्टियाँ मिली हों, वहाँ जाकर तो फिर वही कॉलेज, झमेले.
कॉलेज जाना हुआ तो नन्हे की देखभाल की समस्या होगी, उसे भी स्कूल भेजना होगा, यह
बहुत जरूरी है, उसका वक्त भी अच्छा कटेगा और पढ़ना लिखना भी सीखेगा, वह व्यस्त
रहेगी तो घर पर उसे पढ़ा भी कहाँ सकेगी, टिकट मिल जाएँ तभी अच्छा है, तभी उसने घड़ी
की और देखा नन्हे को लेने जाना है, महरी का कुछ अता-पता नहीं, बहुत देर से आती है.
जून फील्ड गए हैं, शायद देर से आयें.
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