कल शाम से ही नन्हा कुछ अस्वस्थ लग
रहा था, सुबह उठा तो और भी ज्यादा परेशान था, वह उसी के पास बैठी रही, साढ़े ग्यारह
बजे निकली, कालेज बंद था सोचा लिफाफे ही खरीद लेगी, खत्म हो गए हैं, कल इतवार है
सोच रही है सुबह जल्दी उठकर कपड़े धोएगी, कई दिन से सारा काम माँ पर आ गया है, ननद
को बाहर जाना था, वह कल ही वापस आयी है.
पिछले चार दिनों से नन्हे को
बुखार चढ़ता-उतरता रहता है, दवा ले रहा है पर उसका असर नहीं हो रहा है, उसका खुद का
स्वास्थ्य भी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है, पढ़ाई तो हो नहीं पा रही है पर उसकी चिंता
अवश्य है. घर का माहौल भी प्रफ्फुलित नहीं रह गया है, सभी के मन जैसे इस जिंदगी ने
स्नेह से वंचित कर दिए हैं, नन्हा ठीक था तब वे उसके साथ हँसते-खेलते थे.
आज वह नन्हे की रिपोर्ट
लेने गयी थी, डाक्टर ने रक्त की जाँच करने को कहा, दवा बदल दी है. कल से उसका ज्वर
तेज नहीं हुआ है. कल कालेज गयी थी, लाइब्रेरी से किताबें बदलनी थीं. उनसे कुछ
नोट्स बनाने हैं, पूर्णिमा मैडम बहुत सहयोगी स्वभाव की हैं, सुधा मैम उतनी ही
अक्खड़.
सुबह स्वयं नहाकर फिर सोनू
को उठाने आयी, थर्मामीटर लगा रही थी कि सुनील (इसी मकान में रहने वाला दस-बारह साल
का बच्चा) ने आकर बताया, भैया आए हैं, वह जानती थी जून जरूर आएंगे, अगले ही पल
सीढ़ियों पर चिर-परिचित आवाज जूतों की और वह अपने हाथ में सूटकेस लिए कमरे में आ रहे थे, वह
खुश थी उस क्षण और भय भी था...दुःख था ही, नन्हे का थर्मामीटर निकालते-निकालते उसकी ऑंखें
बरस पडीं, कितने दिनों से आँसू बहना चाहते थे और आज वह आए हैं इतनी दूर से,
जिन्हें उन आंसुओं की कद्र थी. नन्हे को देखकर वह भी उदास हो गए, पर अब सब ठीक हो
जायेगा, कल उन्हें राजस्थान जाना है दस दिनों के लिए, जब तक लौटेंगे सब सामान्य हो
चुका होगा. दोपहर को वे उन्हें लेकर मार्केट गए, उसे दो बेहद सुंदर साड़ियां उपहार
में दिलायीं और नन्हे के लिए भी एक ड्रेस खरीदी.
जून किसी काम से बाहर गए
हैं, कह गए थे दो-ढाई बजे तक आएंगे, वह जानते नहीं कि हर पल कोई उनका इंतजार करता
होगा. अभी-अभी उनका एक पत्र मिला तब उन्हें पता नहीं था कि वह यहाँ आ सकेंगे, आज
डीलक्स से दिल्ली, फिर वहाँ से जोधपुर तथा आगे फील्ड, दस दिन बाद एक दिन के लिए
पुनः यहाँ और फिर वापस असम. उसने कल्पना में देखा कि परीक्षाओं के बाद वह नन्हे को
लेकर अपने माँ-पिता के यहाँ गयी है, वहीं उसे लेने जून आए हैं, फिर वे सब अपने घर
गए हैं और जीवन पूर्ववत् हो गया है, खूब घूमना...कहानियाँ पढ़ना.. खूब सारे पानी से
जी भर कर नहाना...सब तरह की दालें बनाना..और भी कई काम, जिंदगी में सभी कुछ एक साथ
तो नहीं मिल जाता है, कभी धूप कभी छाँव, कभी प्यार तो कभी इंतजार...कभी मिलन तो कभी
बिछड़ना..पर अब और नहीं बिछड़ना.
अभी-अभी वह चले गए, कल
सुबह आए और आज शाम चले गए पर इस एक रात और दो दिनों में कितना-कितना स्नेह भर गए
हैं, उसने वादा किया कि कभी उदास नहीं होगी, उन्हें भी मालूम है और उसे भी की उनकी
याद कितनी आयेगी और कभी रुला भी जायेगी लेकिन उनका आना उसे बहुत अच्छा लगा, इतने
दिनों से एकाकी मन जो एक ख़ामोशी से भर गया था, उसे तोड़ना कितना सुकून दे गया.
कितनी खुशी से भर गया, जो इतनी दूर थे, जिन्हें वह रोज बुलाती थी, वह उसकी आवाज
सुनकर एक सच्चे मित्र की तरह उनके पास आ गए. नन्हा भी बहुत खुश है वह जल्दी ठीक हो
जायेगा अब. कुछ दिन बाद फिर आएंगे अब उसका समय उसी दिन के इंतजार में कटेगा.
सोनू आज सुबह से उठा है
तभी से बहुत परेशान सा है, बात-बात पर रो देता है, दूध नहीं पीना...ब्रश नहीं
करना..चाय भी नहीं..और बिस्किट भी नहीं...हर बात में नहीं और ज्यादा कहने पर
सिसकियाँ लेकर रोना, उसे लगता है पापा की याद आ रही है. जब तक वह आएंगे तब तक तो
बिल्कुल ठीक हो जायेगा, कितना कमजोर हो गया है, पर ठीक होकर पुनः दौडेगा पहले की
तरह छत पर, फिर अपने घर में.. वह सोच रही थी आज कालेज जायेगी, पर अब मुश्किल लगता
है. बहुत दिनों का गैप हो गया है उसका, अब तो लगता है सब खुद ही पढ़ना होगा. अगर अच्छे
नम्बर नहीं भी आए तो कोई बात नहीं, नन्हे से बढकर कुछ नहीं उसके लिए. उसे छोड़कर तो
नहीं जा सकती.
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