Wednesday, October 3, 2012

चापाकल से पानी



उसने तय किया था कि भांजियों के लिए कंगन खरीदने बाजार जाना है, किताबें भी लानी हैं. विश्व विद्यालय प्रकाशन जाकर माँ-पिता के लिए एक किताब लायी है, अभी उसे पूरा खोलकर देखा नहीं है, लेकिन जितना दुकान में देखा था, पुस्तक बहुत सुंदर लगी, उसका गेटअप, उसके पन्ने, उसकी छपाई सभी सुंदर थे, संग्रह में रखने लायक पुस्तक लगी, उसने सोचा, अब पूरी तरह तो वहीं जाकर देखेंगे. कल जून के चार पत्र एक साथ मिले, डाकविभाग वाले अपना काम कम करने के लिए सम्भवतः एकाध दिन इंतजार करते हैं और फिर डाक बांटते हैं. कल रात उसने सुखाने के लिए वस्त्र फैलाया था सुबह देखा तो नदारद था, या तो बंदर ले गया होगा अथवा नीचे गली में गिर गया होगा. कल रात गर्मी के कारण और शायद तनाव के कारण उसे देर तक नींद नहीं आयी, बाद में नींद आयी भी तो स्वप्नों भरी, परेशान कर देने वाले सपने. बहुत दिनों बाद जून को देखा, वह सदा की तरह प्रेम से भरा था. कुछ दिनों पहले उसे सन्यासी के वेश में देखा था. सिर के केश पूरी तरह साफ, फिर भी अच्छा लग रहा था. पिछले कुछ दिनों से वह शाम को भी कपड़े धोती थी, स्नान भी दोनों समय कर रही थी, पर लगता है उसे यह काम त्यागना होगा, पिता को पानी भर के लाना पड़ता है, वह आराम से पाइप से पानी भर सकते हैं पर उन्हें नीचे से बाल्टी भर के लाने में आनंद आता है. कल शाम को उसका छोटा भाई आयेगा, उसने सोचा तीन रातें उसे यहाँ बितानी हैं, इतनी गर्मी में परेशान हो जायेगा.

आज भी मन एकांत चाहता है, कैसा तो सुख मिलता है मौन में, लगता है कि...स्वयं के पास हो गयी है. कल वह नहीं हुआ जिसका प्रतीक्षा थी, लगता है कि इस बार यात्रा सुखद नहीं होगी. पर कल की चिंता में आज के सुख को नष्ट कर लेना कहाँ की बुद्धिमानी है. कल रात हवा बहुत तेज चल रही थी, नींद कब आयी, सुबह कब हो गयी पता ही नहीं चला, परसों जैसा हुआ था उसका बिलकुल उल्टा. ईश्वर ‘इस हाथ ले उस हाथ दे’ इस नियम का पालन कठोरता से करता है. हाँ सुबह एक स्वप्न देखकर उठी, वह वजन लेने के लिए एक बूढी मुस्लिम स्त्री के पास जाती है, सोनू भी उसके साथ है. अभी सूर्य के दर्शन नहीं हुए हैं, बादलों के कारण आज धूप देर से निकलेगी. अचानक उसे लगा कोई उसे देख रहा है, कैसा लगता है कि जब आप कुछ कर रहे होते हैं तो कोई आपकी हर गतिविधि पर नजर रख रहा होता है, कार्य की गति मंद पड़ जाती है.

कल रात भाई आ गया, ‘उत्तर रामायण’ शुरू ही हुआ था, ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. स्टेशन पर लेने कोई नहीं जा सका, जून के मित्र आजकल व्यस्त हैं, नन्हा मामा से मिलकर बहुत खुश है. इस समय भाई, बड़ी भाभी को उनके मायके से यहाँ लाने के लिए गया है. उसे बाद में अपने एक मित्र के यहाँ भी जाना है.
पिछले दो दिन नहीं लिख पायी. कल सुबह ही सत्रह घंटे की यात्रा के बाद यहाँ आ गयी थी. यहाँ आकर मन दूसरी दूसरी बातों में रम गया, एकाग्र करना मुश्किल था, परसों यात्रा की तैयारी में समय नहीं निकल पायी. आज पिता का कार्यालय में अंतिम दिन है. शाम को फेयरवैल पार्टी होगी. कल वे भाई की ससुराल गए थे और आज भाभी मायके से आ जायेगी. उसने देखा कि दादीजी को अब कम सुनाई देने लगा है, वह उनके पास बैठी है, बीच-बीच में वह कोई बात पूछ लेती हैं, ध्यान बंट जाता है, कल यहाँ आते ही जून का पत्र मिला उसने यहीं के पते पर भेजा था. यहाँ मौसम में अभी भी हल्की ठंड है, बनारस में तो पसीना सूखता ही नहीं था.



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