Saturday, October 13, 2012

गुलाम अली का जादू



परसों जून का जन्मदिन था, कल उसके नाम नूना के पिताजी का शुभकामना कार्ड मिला, परसों उसकी छोटी बहन का मिला था. बनारस से कोई समाचार नहीं मिला है न ही कोई कार्ड या पत्र. उसे समझ नहीं आता कि वह क्यों उससे छोटी-छोटी बातों पर विरोध करने लगती है, यह अच्छी प्रवृत्ति नहीं है, विशेषकर जून के लिए, उसे दुःख होता होगा. सोनू आज स्कूल गया है, मौसम सुहाना है, सावन का महीना है आखिर, ट्रांजिस्टर की बैटरी नई लानी है और चिवड़ा, पर अब अगले महीने ही खरीदेंगे. जून ने उसे सौंपी है घर का कार्य चलाने की जिम्मेदारी. आखिर आज गेस्ट रूम की ट्यूब लाइट ठीक हो गयी, वह स्नानघर में थी कि दरवाजे की घंटी बजी, नैनी ने तीन बार घंटी सुनने पर दरवाजा खोला.  

कल शाम वे एक मित्र परिवार के यहाँ गए, होना चाहिए था क वे प्रसन्न होकर लौटते पर जून उदास हो गए. वहाँ भी बनारस की बातें हुईं. जून को माँ-पिता की बहुत फ़िक्र रहती है, वह चाहते हैं कि उसे व सोनू को वहीं रहना चाहिए, चाहे दाखिला हो या नहीं. आज भी महरी नहीं आयी, काम करने के लिए अपने लड़के को भेज दिया है, उसने सोचा, उसकी तबियत सचमुच खराब है या सिर्फ बहाना बना रही है इसका पता कैसे चले. वर्षा लगतार हो रही है, सुबह सोनू के स्कूल जाते वक्त भी और उसकी छुट्टी के वक्त भी, उसे न भेजूं ऐसा जून ने कहा पर घर में रहकर उसकी शरारतें बढ़ जाती हैं, स्कूल बच्चों के लिए बहुत जरूरी है, कल दोपहर फिर वह सो नहीं रहा था, बहुत मनाने पर सोया.

गुलाम अली को बहुत दिनों बाद सुन रही है. “मेरे होठों को तब्बसुम दे गया..धोखा तुझे....”तीन-चार बार दोहराते हैं इस एक पंक्ति को. “तूने मुझको ख्वाब जाना देख ले सेहरा हूँ मैं...”किचन से बर्तनों की खड़खड़ाहट आ रही है लगता है नैनी आ गयी है. नन्हे ने आज पहली बार कि स्कूल नहीं जाएगा, नींद आ रही है, सुबह-सुबह खूब गहरी नींद आती है न, बेड छोड़ने का मन नहीं करता होगा. कल उसको e सिखाया a से छुट्टी हुई, कल बड़ी ननद की भेजी राखी मिली पर पत्र नहीं था उसमें. जून कल शाम घर आए तो दो मित्र साथ थे, काफी खुश लग रहे थे, सुबह तक भी उनका मूड ठीक था, वह ही बिना वजह नाराज हुई.

आज 'भारत बंद' का आह्वान विपक्षी पार्टियों ने किया है. उन्होंने फिर से टिकट करायीं थीं और थोड़ी बहुत परेशानी झेल कर परसों वे बनारस पहुंच गए, उसी दिन कॉलेज गयी, फ़ीस जमा की, दाखिला हो गया. कल पहली बार बीएड की कक्षा में गयी. जून कल ही वापस चले गए. कुछ विषयों में पढ़ाई आरम्भ हो चुकी है. उसने तय किया है, एक हफ्ते में पिछला सब नोट कर लेगी. पढ़ाई विशेष कठिन नहीं लग रही है.

कल जून को पहला पत्र लिखा इस बार का. इस समय पौने आठ हुए हैं, नन्हा परेशान हो रहा है, क्योंकि उसे पढ़ने के लिए कह रही है, बहाना बना रहा है कि नींद आ रही है. उसे लगता है घर पर वह पढ़ नहीं पायेगा, उसे भी किसी स्कूल में भेजना होगा. आज एक सप्ताह हो गया कालेज जाते, नहीं पांच दिन, बीच में एक दिन छुट्टी थी. अब परसों फिर अवकाश है, तीज के कारण. नन्हे ने आज सुबह कितनी बार कहा, “आज कालेज मत जाइये”, जाते समय हाथ भी नहीं हिलाया. शाम को वापस आने पर भी बोला, “आप कभी मत जाइयेगा”. कल जून को दूसरा पत्र लिखा था, सुबह जल्दी उठी थी कि जून को खत पोस्ट करना है पर हो नहीं पाया. शाम को अंग्रेजी अखबार भी आया था, पर पिता ने मना कर दिया, उन्हें पता नहीं था कि उसने ही देने के लिए कहा था.




1 comment:

  1. :) पढते हुए यूँ ही दिमाग़ में आया कि समय रहते साक्षी हो पाना हो जाये तो क्या हो। आज ग़ुलाम अली को गाते सुना यूट्यूब पर:
    सोचते और जागते

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