कालेज में आज उसका दिन ठीक रहा,
पूर्णिमा मैडम उसे बहुत अच्छी लगीं, आरती मैडम थोडा दूरी बर्तती हैं, और सिन्हा
मैडम भी कम नहीं हैं. शाम को बिजली भी दो बार गयी ऊपर से उमस भरी गर्मी, छोटा सा
माचिस की डिब्बियों सा घर, साफ हवा को तरस जाता है मन, कितना याद आता है तब अपना
घर खुला–खुला...यहाँ तो..सर्दी का मौसम शायद इतना परेशानी भरा नहीं होगा. सोनू थोड़ा
सा खाना खाकर ही सो गया है.
आज पूरा दिन व्यस्तता में
ही बीता, आराम भरी व्यस्तता, सुबह के काम तो वही रोज के थे फिर टीवी और तब खोजवां
गए, तायी जी के घर, आजकल वह ज्यादा मेहरबान हो गयी हैं. विवाह के इतने वर्षों में
दूसरी बार उनके घर गयी, खाना खिलाया और आइसक्रीम. नन्हा सो गया है, कल कालेज की
छुट्टी है.
लगभग दो हफ्ते बाद वह लिख
रही है. कल शाम नीचे कमरे में तरह-तरह की गंध भरी थीं. सब्जी बनाने की, मिटटी के
तेल की, इतवार के कारण सब देर तक वहीं बैठे थे. घुटन सी हुई, कमरे में हवा
आने-जाने के लिए मात्र एक खिडकी है, अगर पृरा कमरा एक गंध से भर जाये तो जल्दी मुक्त
नहीं हो सकता. कभी कभी धुआँ भर जाता है, क्योंकि अंगीठी या लकड़ी पर भी कभी-कभी
खाना बनाते हैं यहाँ. सोचा, ऊपर सोते हैं पर वहाँ भी उमस थी, जैसे इस समय है, सुबह
के पौने छह बजे हैं पर हवा का नाम नहीं. बनारस में हवा की बहुत कमी है, वायु
प्रदूषण है यहाँ, साँस लेने में खास तौर से इस घर में घुटन सी महसूस होती है. सब
कुछ बंद-बंद, पता नहीं कितने पुराने बने हैं ये मकान, इतने सटे-सटे और पतली सी गली
में.
कल जून का एक तार मिला, वह
बहुत जल्दी घबरा जाता है. उसन सोचा वह
वहाँ अकेला है, वह उसे ऐसी कोई बात नहीं लिखेगी जिससे वह परेशान हो जाये. आज वह
कालेज से जल्दी लौट आयी, तीन अध्यापिकाएँ छुट्टी पर थीं. यह पता चला कि अगले हफ्ते
कालेज में प्राथमिक उपचार की ट्रेनिंग दी जायेगी.
वह पत्र लिख रही थी कि
थकान महसूस हुई कुछ देर आंख बंद करके लेटी रही और फिर लिखने में लग गयी. कल ही आए पिता
जी के अच्छे से पत्र का जवाब भी देना है, उसने सोचा नन्हे के दाखिले की बात हो
जाये तब लिखेगी. वे लोग मंझले भाई के पास गए थे, उसके घर नन्हीं गुडिया आयी है,
उसने सोचा वह उनके लिए एक कार्ड भेजेगी. आज कालेज में छुट्टी हो गयी. उर्दू को
द्वितीय भाषा बनाने के विरोध में सभी कालेज बंद करवा दिए गए, पता नहीं कल भी खुलता
है या नहीं. कल सुधा मैडम ‘भारत का संविधान’ में से टेस्ट लेंगी. पूर्णिमा मैम अपने
बारे में इतना कुछ बताती हैं, अपना सब कुछ कि...उसे लगता है यह अच्छा नहीं है,
छात्राओं से इतना घुल-मिल जाना, सिन्हा मैम की पारिवारिक समस्या के बारे में, नागर
मैम की तबियत के बारे में, और अपने पिताजी की आँखों के मोतियाबिंद के बारे में
बताती रहीं, हर व्यक्ति कितना पीड़ित है.
कल से कालेज बंद है पर उसे
बहुत सारा काम करना है, कल एक चैप्टर ही हो पाया. अभी लिखने बैठी ही थी कि बिजली
चली गयी, बनारस की समस्याओं में से एक. उसे ‘एस यू पी डब्ल्यू’ का प्रोजेक्ट भी
बनाना है, जिसके लिए ताई जी के यहाँ जाना है, उनकी बेटी हस्तकला जानती है. गणित का
काम फैकल्टी ऑफ एडुकेशन आने के बाद ही होगा. वह मन ही मन बाकि कामों का भी हिसाब
लगती रही, जब तक बिजली न आ जाये कुछ और किया भी तो नहीं जा सकता.
कल उसने जून से फोन पर बात
की, कितनी स्पष्ट ..पता नहीं उसने क्या सोचा हो, कितनी मीठी लग रही थी उसकी आवाज,
कहा भले ही न ही पर...प्यार ही तो था वह सब. आज बापू की एक सौ बीसवीं जयंती है, कल
गाँधी फिल्म देखी, उनकी महानता पर मन झुक गया. आज बदली है गगन में, वह छत पर बैठी
है, नन्हा सो रहा है, अभी कुछ देर पहले ही वह भी उठी है, सुबह ही स्वप्न देखा, जब
वह बारहवीं में पढ़ती थी उस समय का, सारी स्मृतियाँ सजीव हो गयीं.
आज सुबह ग्यारह बजे वे ताई
जी के यहाँ पहुंच गए, शाम को लौटे. उसे एक जहाज का मॉडल बनाना है, काफी बन गया है,
बाकी उनकी बेटी बना देगी. वह कॉलेज भी गयी, प्रोजेक्ट के लिए जो चार्ट आदि बनाने
हैं, उसके बारे में जानकारी लेने. वापसी में चचेरी बहन के लिए एक फ्रॉक खरीदा, घर
आने के बाद उसे लगा कि दुकानदार ने ज्यादा दाम लिया है, मन भारी हो गया पर उसने
सोचा इससे मुक्त होना ही होगा, जो हुआ सो ठीक है, कल इसे पार्सल कर देगी. ननद को एक
कार्ड लाने को भी कहा है. उसे हल्की भूख महसूस हुई, पर अगले ही पल लगा नहीं, कुछ
खाने का मन नहीं है, उसे आश्चर्य भी हुआ कि खाने का वक्त होने पर भूख अपने आप खबर
देने लग जाती है. उसने सोचा जून भी तो इस वक्त आकर शाम का टिफिन ले रहे होंगे.
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