पिछली बार उसने शिकायत की थी सो इस बार
जून पहले से उसके लिए नए वर्ष की कत्थई डायरी रखकर गए हैं, पहले पन्ने पर शुभकामना
भी लिख दी है. उसकी यह पंक्ति पढकर मन कुछ स्थिर हुआ है वरना नए वर्ष का पहले दिन
इतना उलझन भरा है कि बस.. सब कुछ गड्डमड्ड हो रहा है सुबह से. ऊपर से लाइट भी गायब
है. बिजली है मगर उनके यहाँ तार हिल जाने से नहीं आ रही. एक तो इतनी देर से आँख
खुली, सारी परेशानी तभी से शुरू हुई, सर में हल्का दर्द भी है, शायद घर से बाहर
निकलने पर खुली हवा में ठीक हो जाये. चुपचाप आंख बंद करके बैठी रहे ऐसा ही मन हो
रहा है इस समय, पर नन्हे ने ठीक से नाश्ता नहीं किया है, उसने सोचा उसके न रहने पर
भी तो ऐसे ही करता होगा. उठो लेट तो सभी काम लेट हो जाते हैं, ग्यारह बजे हैं,
बारह बजे वह स्कूल जायेगी, तैयार होने में उसे विशेष देर नहीं लगती. कल रात जून को
स्वप्न में देखा, क्लब में है, वह नन्हे को लेकर पैदल ही क्लब जा रही है. वहाँ नए
साल का कार्यक्रम है. कल रात नव वर्ष की पूर्व संध्या पर टीवी पर उन्होंने दो
अच्छे कार्यक्रम देखे, शायद इसी का परिणाम था यह स्वप्न.
कल दिन की शुरुआत जितनी
उलझन भरी थी अंत उतना खराब नहीं था. जून को पत्र लिखते लिखते ही मन हल्का हो गया. उसके
प्यार ने हर बार उसे डूबने से बचा लिया है. उसके स्नेह की कोई सीमा नहीं, भले ही
उसने वादे न किये हों पर...आज उसका भी पत्र आयेगा. कल गोपिराधा में आठवीं में बहुत
दिनों बाद गणित पढ़ाया, ठीक था मगर आज कल से भी अच्छी तरह पढ़ाना होगा, ज्यादा बड़ी
प्रमेय है आज. ननद का जन्मदिन है आज, वह शाम को उसे उपहार दिलाने ले जायेगी. कल
बड़ी बुआजी का पत्र आया बहुत दिनों के बाद. फुफेरी बहन को चौथा बच्चा हुआ, बेटी,
लेकिन उसकी मृत्यु हो गयी, यह पढ़कर उसे दुख नहीं हुआ, बहन भी अजीब स्थितियों का
शिकार हो गयी है. कितनी बार दर्द सहेगी, बुआजी भी उसे समझाती नहीं हैं.
कल जून के चार पत्र आए और
विवाह की वर्षगाँठ के लिए एक कार्ड भी. वह तिनसुकिया गए उस कार्ड को लेने. आज गुरु
गोविन्द सिंह की जयंती के उपलक्ष में अवकाश है. सुबह से ठंड काफी है, दोपहर को धूप
निकली. कल शाम से सोनू की तबियत कुछ ठीक नहीं है, इस समय सोया है, माथा गर्म है,
पर उसके पास क्रोसिन भी तो नहीं है.
आज पढ़ने या लिखने के नाम
पर शून्य है, यहाँ तक कि न पत्र लिखा न पढा. आज एक कार्ड आया छोटे भाई के फादर इन
ला का, इसका हिंदी अनुवाद ठीक सा नहीं लगता. सुबह नाश्ता बना रही थी कि पता चला
सात तारीख तक स्कूल-कालेज सब बंद है. उसे अपनी पढ़ाई सलीके से शुरू कर देनी चाहिए,
टीचर्स के सहारे रहकर तो कोर्स पूरा हो नहीं सकेगा. आए दिन स्कूल-कालेज बंद रहते है
आजकल, या फिर इसी वर्ष ऐसा हो रहा है. शुरू से ही छुट्टियाँ ही छुट्टियाँ, एक तरह
से अच्छा ही है नन्हे के लिए और उसके लिए भी, ज्यादा दिन उसे छोड़कर नहीं जाना पड़ा
है. पर यह भी लगता है कि इस कारण परीक्षाएं देर से न हों. दोपहर को सोनू को
सुलाया, लाइट नहीं थी सो ऊपर छत पर चली गयी किताब लेकर, आधा घंटा भी नहीं हुआ होगा
की लाइट आने पर नीचे आयी, नन्हा जगकर रो रहा था, वह उसे ढूँढ रहा था, उसकी
तबियत ठीक न होने के कारण ही शायद देर तक सो नहीं पाता. इस समय रात्रि के नौ बजने
वाले है, नन्हा खेल रहा है, बच्चे थोड़ी सी उर्जा भी बचा कर रखना नहीं चाहते.
बच्चे जितनी उर्जा लगते हैं,उतनी ही वापस पाते हैं
ReplyDeleteसच कहा है आपने रश्मि दी...जितनी उर्जा हम खर्च करते हैं उसी हिसाब से भरपाई भी होती जाती है
Deleteकत्थई डायरी???? par hame to yellowissh page dikh raha:)
ReplyDeletebehatreen post:)
मुकेश जी, स्वागत व
Deleteआभार !
सुनहरी यादों के कुछ अन्तरंग पल ! अच्छा लगा डायरी के इस पन्ने को पढना ! आभार !
ReplyDeleteसाधना जी, मुझे भी आपका यहाँ आना अच्छा लगा...स्वागतम् !
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