यहाँ आए उसे चार दिन हो गए
हैं. कल व परसों भी घर में चहल-पहल होने के कारण कुछ लिख नहीं सकी. चाचीजी और उनके
बच्चे कल चले गए. परसों वह भी उनके घर जायेगी, उसी घर में जहां उसका बचपन बीता था.
माँ उसे लेकर बाजार गयीं, सास, ननद, नन्हे व उसके लिए कपड़े खरीद कर दिए. नन्हा
यहाँ भी उतना ही खुश है पर खाना ठीक से नहीं खाता है. आज से उसका ज्यादा ध्यान
रखेंगे, उसने सोचा. जून के दो पत्र मिले यहाँ आकर, वह उसे अपने पास क्यों नहीं
बुला लेता उसके मन में ख्याल आया. कल वह अपना वजन करवाने गयी थी, केवल बयालीस
केजी...कितना कम है.
ननद का पत्र आया है, उसका प्रवेशपत्र आ गया है, चौदह को परीक्षा है, उसे कम से
कम दो-तीन दिन पहले जाना चाहिए. कल वे दीदी के घर गए थे, परसों जीजा जी आए थे, कल
सुबह अपने साथ ले गए. वहाँ अच्छा लगा, दीदी, जीजाजी, व बच्चे सभी उन्हें अपने बीच
पाकर बहुत खुश थे. उनका व्यवहार भी बहुत अच्छा था. उन्हें एक पत्र लिखेंगे उसने मन
ही मन सोचा.
कई दिन बाद डायरी लिखने बैठी है. इस बीच कितनी ही बातें हुईं, ऐसी भी जो
यादगार बन गयीं पर आलस्य वश ही कहना चाहिए, लिखा नहीं. एक बार क्रम टूट जाये तो
जल्दी जुड़ता नहीं है. उसे दो दिन से जुकाम ने परेशान किया है, कमजोरी भी महसूस
होती है, और..कभी कभी बेचैनी भी. खुशी है तो बस इस बात की कि जून दस दिन बाद आ रहे
हैं. आज भी उनका पत्र आया है, दोपहर उसने सभी को पत्र लिखे. कल परीक्षा हो गयी.
उसने पढ़ाई जरूर की पर सोच-समझ कर नहीं की. खैर, जो होना था हुआ, अब उसे बदला नहीं
जा सकता, यदि उसका दाखिला नहीं हुआ तो यह भले ही शर्म की बात हो, वह वापस जा
सकेगी, यह क्या कम होगा, जून के साथ-साथ रहने का, जीने का मन होता है, खुले आकाश में, अपने निज के घर
में, अपने मन से जीने का...यहाँ सब कुछ ठीक है पर फिर भी अपना घर तो अपना ही है. उसका
मन फिर पीछे लौट गया...समाचार भी ध्यान से सुने होते पिछले तीन-चार दिनों से
तो..यह आत्मग्लानि मानव की सबसे बड़ी शत्रु है, क्या स्वयं को छोटा किये बिना
मनुष्य कुछ सीख नहीं सकता...शायद नहीं.
फिर दो दिन का अंतराल. वह स्वस्थ हुई तो सोनू को सर्दी हो गयी, अभी भी खांसी
है, इस समय सोया है इसी कारण, दिन में सोना उसे जरा भी पसंद नहीं, बहुत मना कर
सुलाना पड़ता है. आज उसे स्नान में काफी
वक्त लग गया पर वास्तविक स्नान इसे ही कहते हैं, मालिश से भी कैसे तन में जान आ
जाती है. यहाँ आयी है तब से वह ननद के लिए टॉप पर कढ़ाई कर रही है, लगभग एक तिहाई
हो गया है, जून के आने से पहले ही पूरा हो जाये तभी अच्छा है, उसका पत्र आया है पर
तिथि नहीं लिखी है. भूल ही गया है शायद.. आजकल वह अक्सर खुद को इस बारे में सोचते
हुए पाती है कि जब वह यहाँ होगा तो इस वक्त वे क्या कर रहे होंगे.
कल रात जब पिता काम से वापस आये तो उनके हाथ में चोट लगी हुई थी. उसे इस बात
का पता बाद में लगा जब वह सोनू की लगातार होती हुई खांसी के कारण उसे दवा पिलाने व
नीचे सुलाने ला रही थी. उस वक्त भी सिर्फ उनके हाथ पर बंधा कपड़ा दिखा था. अभी सुबह
कुछ देर पहले माँ ने बताया कि चोट काफी गहरी थी और वह रात भर ठीक से सो नहीं सके.
सोनू दवा लेने के बाद आराम से सोया रहा, शुरू में कुछ देर तो बेचैन था पर बाद में
ठीक से ही सोया रहा. बल्कि उसकी नींद ही बार-बार खुलती रही.
No comments:
Post a Comment