कल उसने सभी भाइयों को राखियां भेज दीं, उनके पत्र भी
आए हुए थे, जवाब में पत्र भी लिखे. उसके बाद एक किताब पढ़ती रही, पर इस वक्त मन
जाने कैसा उखड़ा सा है, अँधेरे घर में सिर्फ टेबल लैम्प जला कर बैठना तो अच्छा लग
रहा है पर विचारों को केंद्रित नहीं कर पा रही है. जिस दिन वह योगासन नहीं कर
पाती, तभी ऐसा होता है, आज सुबह नींद देर से खुली फिर समय नहीं मिला, कुछ खा लेने
के बाद तो आसन किये नहीं जा सकते. पहला कीट आया है रोशनी से आकर्षित होकर, अभी
धीरे धीरे पंक्ति लगेगी, उसने सोचा रात्रि भोजन बना लेना चाहिए जब तक नन्हा और जून
लौट कर आयें.
नन्हा स्कूल गया है, कल
स्कूल से लौटा तो भोजन के बाद बजाय सोने के खेलने जाना चाहता था, उसने समझाया,
नहीं माना फिर, डांटा और एक चपत भी लगायी, पर बाद में पश्चाताप हुआ. खुद से वादा
किया कि डांटने से वह उसकी बात भले मान ले पर उसके लिए ठीक नहीं है, आज से ध्यान
रखेगी. उसे अब गृहकार्य करने में उतना आनंद नहीं आता जितना पहले आता था, पर स्कूल
जाना अब भी उसे अच्छा लगता है पर टिफिन खाना नहीं, सब कुछ वैसे ही वापस ले आता है.
उसने कैलेंडर पर नजर डाली,
नौ अगस्त, ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन का दिन. आखिर आज बनारस से चिर-प्रतीक्षित खत आया
है, लेकिन पूरी तरह स्थिति स्पष्ट नहीं हो पायी. उसने सोचा अब उन्हें स्वयं वहाँ
जाकर ही स्थिति का आकलन करना होगा. कल जून टिकट लेने तिनसुकिया गए पर लौट आए, आज
फिर जायेंगे. कभी-कभी उनका व्यवहार उसे समझ नहीं आता शायद वह स्वयं भी कन्फ्यूज्ड
हो गए हैं. अपने भीतर झांकती है तो अब उसे वहाँ जाकर पढ़ाई करने का पहले का सा जोश
नहीं है, जून चाहते हैं कि उसे जाना चाहिए और सभी परिचित भी जानते हैं कि वह जा
रही है. पर अपने इस शांत जीवन को छोडकर..खैर देखा जायेगा.
कल शाम वे क्लब गए, उसने
लाइब्रेरी में पहले की एक अधूरी कहानी पढ़ी. नन्हा भी दस-पन्द्रह मिनट तक किताब
पलटता बैठा रहा. अपनी एक मित्र के यहाँ से भी पांच-छह धर्मयुग लायी है, कितने
महीने हो गए हैं, धर्मयुग पढ़े, पहले वह नियमित पढ़ती थी. उन्होंने क्लब में ही दोसा
भी खाया.
टिकट मिल गए हैं, वे सभी
जा रहे हैं, एक हफ्ता रहकर जून वापस आ जायेंगे. आठ बजे हैं आज नन्हे का स्कूल बंद
है, वह सो रहा है, पूरे हफ्ते की नींद जैसे आज ही पूरी करना चाहता है. दाखिला नहीं
हुआ तो अक्तूबर में वह वापस आ जायेगी अन्यथा वह अब जून में वापस आयेगी यानि दस
महीनों के बाद. उसे ख्याल आया कि कामवाली अभी तक नहीं आई है, पता नहीं अब तक वहाँ
भी होगी या नहीं, हर हाल में वहाँ उसे कपड़े तो खुद ही धोने होंगे.
कल वे मन में कितने बातें
लेकर उम्मीदें और सपने लेकर ट्रेन में बनारस जाने के लिए रवाना हुए मगर मरियानी से
ही उलटे मुँह वापस आए. बंद के कारण रेलें नहीं जा रही थीं, फिर से सब सामान खोला.
आज दिन भर यही तो किया. कल रात बारह बजे वे वापस पहुंचे. अब तो निश्चित हो गया कि
उसकी पढ़ाई एक स्वप्न ही रह जायेगी. जून और सोनू गेस्ट रूम में हैं पढ़ाई कर रहे
हैं. उसने सोचा है कि वह घर पर ही बच्चों को गणित पढ़ाएगी. कल से नन्हे को भी स्कूल
भेजना है.
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