Tuesday, October 30, 2012

सारनाथ का टूर



कालेज में नागर मैडम ने कुछ आवश्यक बातें बतायीं, जो हर टीचर पहले भी कई बार दोहरा चुकी है, उसके बाद कोई टीचर नहीं आयी. एक बजे ही वह घर आ गयी थी, रास्ते में अखबार खरीदा और कम्पीटीशन सक्सेस. थोडा बहुत पढ़ते रहना चाहिए, आरती मैडम ने बताया कि यूजीसी परीक्षा की तैयारी करके अगले वर्ष जरूर देनी चाहिए. जून को भी लिखेगी इस बारे में और रही बात नवोदय स्कूल में नौकरी की तो वह  उसके लिए नहीं है. स्वप्ना से उसने सेंट्रल स्कूल के फार्म के लिए कहा है, अभी उसे कल की कक्षा में पढ़ने के लिए पढ़ना है.

फरवरी के पांच दिन बीत गए, आज कालेज में थोड़ी पढ़ाई जरूर हुई. अगले हफ्ते मंगल को उनका सारनाथ जाने का कार्यक्रम है, एक्टिविटी में वही फ़ाइल शेष रह गयी है. जून ने लिखा है कि अप्रैल में जीएम से छुट्टी मांगना उनके लिए बहुत मुश्किल होगा, सिर्फ पांच सीएल लेकर वह यहाँ आएंगे जससे अक्टूबर में ज्यादा छुट्टियाँ ले सकें. पर वह जो दम भरते हैं कि उसके लिए कुछ भी कर सकते हैं, देखें उसकी बात कहाँ तक मानते हैं.

सोमवार होने के बावजूद आज भी कालेज में वही हाल रहा, एक टीचर को छोड़ कर कोई क्लास में ही नहीं आई. कल सारनाथ जाना है.

सारनाथ गयी, नन्हे को नहीं ले जा सकी जैसा उसने सोचा था. ले जाती तो कोई हर्ज नहीं होता पर यह उनकी नागर मैडम उसूलों से बंधी हुई जैसे एक नन्हे के जाने से...खैर प्रोग्राम अच्छा ही रहा, कभी-कभी बोरियत भी हुई लड़कियों के बेहिसाब गाना गाने से. मंदिर भी देखे, स्तूप भी और खंडहर भी, पर उनके बारे में लिखना भी तो है. संग्रहालय भी देखा. जितना स्वयं लिख सकती है वह तो एक-डेढ़ पन्ने का ही होगा..खैर शायद किसी किताब से थोड़ी सहायता मिल जाये. नन्हे के लिए दो-तीन किताबें खरीदीं उसने कहा था, ‘मेरे लिए पुस्तक लाइयेगा’. भोजन जितना ले गयी थी आधा भी खत्म नहीं हुआ था, एक भिखारिन को दे दिया. स्वप्ना, रीता, कविता और एक लड़की, वह खुद, इन पाँचों ने सभी कुछ साथ देखा. लिम्का पिया उसने, जून के साथ कहीं जाने पर वे लिम्का ही पीते थे. घर आते ही उसका पत्र मिला, वह  आस्ट्रेलिया जायेगा. लिखा है, क्या मंगाना है लिस्ट बना लो..वह उसे कितना चाहता है.  

मन परेशान है, आँखें बरसने को आतुर, घबराहट, आक्रोश, दुःख सभी कुछ एक साथ महसूस हो रहा है. जून का एक बहुत प्यारा सा खत मिला है, पर इस मन का क्या करे. खत मिला था तब बहुत खुश थी, पर नन्हे की परवरिश को लेकर एक ऐसी बात हो गयी है कि...समझ नहीं आता क्या होगा अब. कल सारनाथ जाने से पूर्व वह चने की उबली दाल रख गयी थी कि इसको छौंक लगाकर नन्हे को खिला दें, मकानमालिक के यहाँ ब्राह्मणों को खिलाने के लिए खूब मिर्च वाली पूरी-सब्जी बनी थी वह नहीं, पर शाम को आकर देखा तो दाल वैसे ही पड़ी थी, सुबह कालेज जाने से पूर्व वह किसी बर्तन को ढूँढ रही थी तो कटोरी में खराब दाल की महक आयी, तभी उसे फेंक देना चाहिए था, क्योंकि कालेज से वापस आकर पता चला कि वही दाल आज उसे खिला दी, उसे बहुत खराब लगा और उसने कह दिया कि ऐसा नहीं होना चाहिए था, इसी बात पर सभी नाराज हैं. हुआ करें नाराज, आज के बाद नन्हे को बासी तो नहीं खिलाएंगे न.






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