Sunday, September 1, 2013

कालिदास का मेघदूत


आज बहुत दिनों के बाद ऐसा हुआ कि वह दोपहर को घर पर अकेले है, पुरानी दिनचर्या के अनुसार पहले अख़बार पढ़ती रही, यूँ काफी देर तक पढ़ा पर अब दोहराने बैठे तो कुछ विशेष याद नहीं, फिर भी अख़बार पढ़ना अच्छा लगता है. कुछ देर लाइब्रेरी से लाई वह पुस्तक modern Asian literature भी पढ़ी. दोपहर को टीवी देखने का अभ्यास पिछले कई हफ्तों से छूट गया है सो यही उचित लगा कि मन को साधा जाये यानि विचारों को लिखकर पहले एक बिंदु पर केन्द्रित किया जाये फिर गोयनका जी की सिखाई विपश्यना की क्रिया द्वारा कुछ देर साधना की जाये. सुबह दादा वासवानी ने भी मौन और प्रार्थना की शक्ति पर बल दिया. बाद में स्टोर की सफाई में लग गयी सो धयान नहीं कर सकी, रोज प्रयत्न ही करती है, ध्यान में सचमुच बैठने का अवसर मात्र एक बार मिला है. मन है कि विचारों की ओर दौड़ने लगता है. आज यूँ अपेक्षाकृत मन शांत है. लेकिन अभी कुछ देर में नन्हा आने वाला है, वह सुबह साढ़े चार बजे उठकर भी रात तक तरोताजा रहता है, बच्चों में या कहें मानव में शक्ति अपार है बस उसका सही इस्तेमाल करना आना चाहिए. उसके मन के खजाने में न जाने कितनी कविताएँ सोयी पड़ी होंगी, कितने अछूते भाव और ढेर सारा काम करने की कुव्वत, बस कमर कस के निकल पड़ने की देर है. फ़िलहाल तो किचन की ओर कदम बढ़ाने हैं, उसके बाद कहीं और !

वही दोपहर का वक्त और आकाश काले बादलों से घिरा हुआ. खिड़की से ठंडी हवा का झोंका आकर पीठ को छू जाता है सिर्फ दूर से किसी वाहन की ध्वनी आकर निस्तब्धता भंग कर देती है. काफी देर से reader’s digest पढ़ रही थी इस पत्रिका में पढ़ने के लिए बहुत कुछ है. आज सुबह उठने से पूर्व एक स्वप्न देख रही थी, वर्षों बाद एक पुराना स्वप्न, शायद वे स्मृतियाँ उसका पीछा कभी नहीं छोड़ेंगी, जैसे आज सुबह ध्यान में बैठने पर पांच मिनट में ही नन्हे ने माँ, माँ की गुहार लगा दी और उसके बाद इस वायु की गति से भी तेज भागते मन को पकड़ कर रखना सम्भव नहीं हो पाया. लेकिन उसे प्रयास तो करते ही रहना है, एक दिन अवश्य ऐसा आयेगा जब आचार्य के उपदेशानुसार वह अपने मन के विकारों को दूर करके उसे सम्पादित कर उस परम सत्य के दर्शन कर सकेगी अध्यात्म मार्ग पर चलने वालों को बहुत कठिन तपस्या करनी पडती है. अपने मार्ग में आये हुए सभी कार्यों को साधित करके उन्हें अपने कर्त्तव्य पालन का सदा स्मरण रहता है वे सत्य के मार्ग से कभी विचलित नहीं होते और सदा स्वयं भी तथा दूसरों को भी आनन्दित रखने का प्रयास करते हैं.


वर्षा की बूंदें पड़ने लगी हैं जो उसकी डायरी के इस पन्ने को भिगो रही हैं. सुबह के सवा पांच बजे यहाँ बाहर drive way पर जहाँ दोनों ओर से बेला के फूलों की सुंदर महक आ रही है और किसी पंछी की आवाज एक लय में आ रही है जिसमें अब बूंदों की टप टप भी मिल गयी है ऐसे सुहाने वक्त में तो मन शांत कोमल भावों से भरा होना चाहिए. उस एक की आराधना में लीन जो इस सुंदर दृश्य का चितेरा है और हर क्षण साथ रहकर चेताता रहता है, वह जो पल-पल मन को सजग रहने का निर्देश देता है गलती होने पर आत्मग्लानि से मन को भर देता है, और जिसकी बात वह सुनी-अनसुनी कर जाती है फिर भी वह नाराज नहीं होता. जो इस जगत में हर एक का रखवाला है. आज जुलाई का पहला दिन है, यानि आषाढ़ का महीना, सदियों पूर्व जब मेघों की सुन्दरता से प्रभावित होकर कालिदास ने मेघदूत की रचना की होगी. कल सुबह जून ने घर फोन किया तो पिता ‘कृष्ण’ देख रहे थे टीवी पर सबके साथ, वे लोग उसमें साक्षात् भगवान को देखते हैं, और वह नाटक, तभी देख नहीं पाती. 

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