Tuesday, July 10, 2012

नदी तट पर पिकनिक



उसने बहुत दिनों बाद एक पत्र लिखा, उनकी शादी की सालगिरह थी, जून रोज की तरह ऑफिस गए थे. सोचा कुछ तो अलग होना चाहिए, मन में उथल-पुथल मची थी कि ऐसा कुछ लिखे जिससे उसके दिल का हाल वह जान ले. समय कितना जल्दी बीत जाता है, अभी उस दिन की ही तो बात है जब अपने कमरे में बैठकर वह उसका पत्र पढ़ रही थी. और अब तो वह सदा के लिये यहाँ आ गयी है, और उसके बाद आया नन्हा, उनका छोटा सा परिवार बना. उसे लगता है बचपन में वह भी इतना ही प्यारा लगता होगा, गोलमटोल, गोरा-गोरा और गुदगुदा. उसे हँसी आयी कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है मन, उसे याद आये शुरू के दिन उनकी बातें ही खत्म नहीं होती थीं. फिर कुछ दिनों के लिये वे अलग हुए थे वह कितना याद करती थी उसे. उसने सोचा कि वह रोज उसे जल्दी उठने के लिये  कहती है, व्यायाम करने के लिये कहती है, इतवार की सुबह नाश्ते के बाद जब वह फिर से सो जाता है तो टोकती है, साहित्य में रूचि जगाने के लिए कहती है, किताब पढ़ने को कहती है, यह सब पत्र में अच्छी तरह समझा कर लिखा.
आज जून कुछ देर से गया है सांध्य भ्रमण पर, पर माहौल वही है. शाम घिर आयी है, नन्हा सो रहा है, किसी किसी दिन वह खूब सोता है जैसे आज सुबह उठने का नाम ही नहीं ले रहा था, उसे
उठाना पड़ा. पेड़ों की पत्तियाँ देखकर कितना खुश होता है वह. आज सुबह वह कुछ लिखने का प्रयास कर रही थी कुछ लाइनें ही लिख पाई. पंजाब के बारे में रोज वही समाचार सुनते हैं, पढ़ते हैं, हत्या, आतंकवाद ने किस तरह अपने शिकंजे में जकड़ लिया है पंजाब प्रान्त को. क्या सोचते होंगे वहाँ के वासी. उसे अलका की याद हो आयी, उसकी मित्र तथा दीदी की भतीजी जिसकी शादी पंजाब में हुई है. उसने सोचा दीदी से कहकर उसका पता मंगवाएगी पंजाब के कुछ दूसरे समाचार तो जानने को मिलेंगे.
आज नेता जी की ९०वीं जयंती है, कुछ माह पूर्व उसने दो खंडों में एक पुस्तक पढ़ी थी, ‘मैं सुभाष बोल रहा हूँ’, पहली बार मालूम हुआ था कि नेता जी ने वास्तव में कितने साहस के साथ एक महान कार्य का बीड़ा उठाया था. जून आज तिनसुकिया गया है, वह नन्हें के साथ एक सखी के यहाँ गयी थी, वह पूरा एक घंटा चुपचाप खेलता रहा जरा भी परेशान नहीं हुआ. जून ने बताया है कि अगले महीने उसके विभाग के सभी लोग परिवार सहित पिकनिक पर जायेंगे, वे भी जायेंगे किसी नदी तट पर.

2 comments:

  1. कठिन समय था, मेरे परिवार के तीनों पुरुष सदस्य उस समय चंडीगढ लुधियाना और अमृतसर में थे। असम पहले छूट चुका था लेकिन एक गहरा ज़ख्म देकर। यह शृंखला पढकर ऐसा लगता है जैसे अतीत को फिर से छुआ जा सकता है। बल्कि फिर से छूने पर केवल फूलों की गन्ध आती है काँटों की चुभन अतीत में ही छिपकर रह जाती है। धन्यवाद!

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  2. आज यह टिप्पणी स्पैम में मिली तो इसे पोस्ट किया, स्वागत व आभार अनुराग जी !

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