Saturday, July 28, 2012

जीनिया के बीज



कल दिन भर वह खुश थी, आज का आरम्भ भी सुखद है. नवभारत टाइम्स में डॉ धर्मवीर भारती की फागुनी कवितायें पढ़ी हैं. मन में कितनी स्मृतियाँ सजीव हो उठीं, कितना अच्छा लिखते हैं वह. उनका टीवी बंद पड़ा है. चैनल नम्बर बदल जाने के कारण एंटीना बदलना पड़ेगा सो तब तक सिर्फ सुन सकते हैं, यानि टीवी टीवी न रहकर रेडियो हो गया है. अभी जून के ऑफिस जाने से पहले वे लोग अक्तूबर के उन दिनों की बातें कर रहे थे जब बड़े भाभी-भैया वहाँ आयेंगे और शायद मंझले भी. उसने सोचा अगर छोटा भाई व बहन भी आ सकें तो कितना अच्छा हो, बहन की चिट्ठी भी नहीं आयी. देवर का खत परसों आया था पर उस ट्रंक के बारे में जाने क्यों कुछ नहीं लिखा, कल दोपहर कुछ लिख तो नहीं पायी, इस वक्त भी प्रयत्न किया जा सकता है, प्रातःबेला, चिड़ियों की चहचहाहट और एकांत ! नन्हा अभी तक उठा नहीं है, किन्ही स्वप्नों में खोया होगा.

अभी-अभी गीता में पढ़ा भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं जिसको मान-अपमान, हानि-लाभ, सुख-दुःख नहीं व्यापते उसी की बुद्धि स्थिर है. हिंदी लिखने का अभ्यास छूटता जा रहा है, जरा सा कठिन शब्द आया तो कलम अटकने लगती है, उसने सोचा, जून से हिंदी का शब्दकोश लाने को कहेगी. आजकल उसे स्वप्न में रोज दीदी दिखाई देती हैं पता नहीं क्यों ? कल शाम उनकी लेन की मिसेज सेन के घर छोड़ कर जाने की बात सुनकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ, कल ही वह पहली बार उनके घर गयी थी, नन्हें के स्वेटर के लिये उनकी सास से कोई नमूना पूछने. कल शाम को पहली बार उसने एक बड़ी सी लोहे की ट्रे में जीनिया के बीज डाले हैं, देखें कब तक निकलते हैं. माली को भिन्डी आदि सब्जियों के लिये भी कहा है.



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