आज सुबह तो नहीं पर दोपहर को
समय था लेकिन उसे याद ही नहीं आया कि लिखना है. दिन बेहद गर्म था, बेडरूम में
दोपहर को धूप आती है, पर्दे लगाने के बावजूद तपन आती रहती है, सो वे बैठक में
सोये, जून ने नीचे कम्बल बिछा दिया था, उसके ऊपर चादर, उसे नन्हें व उसकी भूख,
प्यास व नींद का बहुत ध्यान रहता है. शाम को वे किन्ही परिचित से मिलने गए फिर
क्लब. दक्षिण भारतीय व्यंजन वहाँ अच्छे मिलते हैं. सोनू वहाँ भी किलोल करता रहा,
अपनी अटपटी भाषा में पता नहीं क्या-क्या बोल रहा था. क्लब से आते ही सो गया.
आज दोपहर वह एक चित्र बनाएगी, ऐसा भाव मन में आ रहा है. मौसम कितना सुहाना है,
मंद-मंद मधुर पवन और आकाश पर बादल. जून आज बस से दफ्तर गए हैं, सो आने में थोड़ा
देर होगी. उसने भोजन बना कर रख दिया है. उसका ध्यान अपनी कमर की तरफ गया, जो आजकल
गायब होती जा रही है, नन्हें के होने के बाद ठीक से व्यायाम तो किया नहीं और खुराक
ज्यादा. अब नियमित व्यायाम आरम्भ किया है पता नहीं कब फर्क दिखेगा, शायद छह महीनों
तक या एक वर्ष बाद, पर कुछ तो करना पड़ेगा ही.
आज उसका जन्मदिन है, बहुत दिनों बाद डायरी का स्मरण हुआ है, पर कोशिश रहेगी कि
रोज लिखेगी चाहे एक वाक्य ही, जून नेह बरसाते हुए दफ्तर गए हैं. आज उनका हाफ़ डे
है. शाम को उन्होंने कुछ जलपान का प्रबंध किया है बस कुछ ही लोगों के लिये.
कल दिनभर और रात भर की भीषण गर्मी के बाद अब वर्षा की शीतल बौछार कितनी राहत दे
रही है. वह कुछ देर पूर्व ही उठकर बाहर आयी है और लगता है जून भी उठ गए हैं, नन्हा
सोया है पर दस-पन्द्रह मिनट में ही वह भी उठ जायेगा, कितना प्यारा बच्चा है जब कोई
उसे देखकर कहता है तो अच्छा लगता है मन को. कितना हँसाता है वह उन्हें, और कभी-कभी
परेशान भी करता है. पर उसका तरह-तरह के चेहरे बनाना और नहीं-नहीं कहते हुए सिर को
हिलाना देखते ही बनता है. अभी तक अपने आप चल नहीं पाता है. वर्षा रुक गयी है और
दूर से मुर्गे की आवाज सुनाई दे रही है. बंद व घेराव के कारण अब शुक्रवार से पूर्व
न तो चिट्ठी मिल सकती है न जा सकती है. माँ-पापा ने खत लिखा तो होगा. नन्हें का
जन्मदिन भी निकट आ रहा है. जून शायद अंदर बैठकर कुछ पढ़ रहे हैं या तैयार हो रहे हैं,
वह देखने चली गयी.
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