Monday, July 16, 2012

मार्च में सावन



परसों वे तिनसुकिया गए थे, खूब खरीदारी की. नन्हें के कपड़े, तकिये और भी कुछ वस्तुएं, हैंगर फ्रूट बास्केट आदि. सोनू आजकल उनके साथ ही सुबह उठ जाता है, इस समय सोया है सो उसने डायरी उठाई है, आज फिर बादल हो गए हैं, कल-परसों ही तो धूप निकली थी कई दिनों के बाद. जून कल शाम जोरहाट गए हैं, उन्हें एक सेमिनार में सम्मिलित होना है, देर रात तक लौट आएँगे. पानी अब झमाझम बरसने लगा है, मार्च से ही यहाँ सावन शुरू हो जाता है. जून के न रहने से घर कैसा खाली खाली लग रहा है. कभी-कभी कुछ क्षणों के लिये वे एक दूसरे से रुठ भी जाएँ फिर अपने आप ही मान जाते हैं, क्योंकि अपनी ही हानि नजर आने लगती है.

आज फिर उसे लग रहा है सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है, तन भी और मन भी. हर बार, हर माह  कहीं कुछ गलत हो जाता है जैसे सिर भारी हो जाता है, आँखें दुखने लगती हैं. कल से नियम से गीता का अध्ययन करेगी तभी फिर से स्थिर हो पायेगी. कल से क्यों, आज से, अभी से क्यों नहीं..यही तो सिखाती है गीता कि हर परिस्थिति में सम रहो, सुख-दुःख, हानि-लाभ, मान-अपमान, यश-अपयश सभी को समान रूप से सहो.

उसने बहुत दिनों तक कुछ नहीं लिखा, अप्रैल का तीसरा हफ्ता है, जैसे-जैसे नन्हा बड़ा हो रहा है उसका सारा वक्त उसकी देखभाल में ही जाता है, कहीं चोट न लगा ले कहीं गिर न जाये यह ख्याल भी हर वक्त मन में रहता है. और कोई काम कुछ दिन न करो तो अभ्यास भी छूट जाता है, कभी वक्त मिला भी तो उसे समझ नहीं आया कि क्या लिखे. नन्हा बहुत प्यारा है पर सोते समय बहुत रोता है कभी-कभी, शायद कुछ दिनों बाद ऐसा न करे, जून आज बैडमिंटन खेलने गए थे, बहुत दिनों बाद खेलने से थकान हो गयी है, वह सोने की तैयारी कर रहे हैं, वह धर्मयुग के पन्ने पलट रही है, पढ़ेगी कल.
 
क्रमशः

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