Friday, July 6, 2012

दाल का पानी


नन्हा देर से सोया है सो अभी तक जगा नहीं है, नूना के मन का अश्व विचारों की धूल उड़ाता जा रहा है. उसे समझ में नही आता क्या उचित है क्या अनुचित, सब कुछ जैसे अपने आप हो रहा है, उनका कोई अधिकार ही नहीं, वे पर चले जा रहे हैं बस यूँ ही... जैसे बहे जा रहे हों नदी की धारा में. वह पल भर भी बैठ कर सोच नहीं पाती कि क्या करना चाहिए. क्या थे वे और क्या  हो गए हैं, कोई व्यवस्था नहीं रह गयी है. वर्ष समाप्त होने को आया है. अगले महीने उनके विवाह की वर्षगाँठ है, पिछले वर्ष उसने जून से कहा था कि बहुत अच्छी तरह मनाएंगे वे यह दिन पर अब उसे लगता है कि किसी को भी नहीं बुला पाएंगे. मन में बातें उठती ही चली जाती हैं बिन बुलाए मेहमान की तरह या फिर बिन बुलाई नदी की बाढ़ की तरह. उसने सोचा आज दोपहर वह सोयेगी नहीं, बस चुपचाप बैठकर सोचेगी कुछ. आज धूप तेज है मन होता है बाहर धूप में बैठे थोड़ी देर, उसने सोचा जून भी आने वाले होंगे.

कल क्रिसमस है, बचपन में सभी त्योहारों को मनाने का कितना चाव होता है. वे क्रिसमस ट्री सजाया करते थे, और दिन भर यीशू के गीत गाते थे. आज इस समय वह जो डायरी लेकर बैठी है उसका कारण वही यादें हैं. अभी सुबह ही है सोनू खेल रहा है बीच-बीच में शोर मचाता है. रेडियो सीलोन से बौद्ध संदेश सुनाया जा रहा है पर उसे कुछ भी समझ में नहीं अ रहा है. क्योंकि उनका ट्रांजिस्टर थोड़ा अस्वस्थ है. नन्हा अब करवट लेकर सोने लगा है, बड़ा हो रहा है. मैच आरम्भ हो गया है भारत और श्रीलंका के मध्य. उसने खाना तो बना लिया है पर स्नान नहीं किया महरी कपड़े धो रही है. रोज सुबह का वही क्रम है ऐसे जाने कितने दिन गुजर गए और कितने और गुजर जायेंगे. एक दिन वे सोचेंगे कि सारा जीवन बीत गया इसी उहापोह में, कुछ तो किया ही नहीं. सचमुच सिर्फ अपने तन-मन की चिंता ही व्यस्त रखती है हर पल. और कुछ कहाँ सोच पाते हैं, यह जो दुनिया में इतनी बातें होती हैं उन्हें  पता ही नहीं चलता. कितना दुःख है दुनिया में पर साथ में कितनी खुशी भी तो है कहाँ मिलती है उन्हें उसकी झलक भी ज्यादा. हाँ, अपने में व्यस्त तो वे खुश हैं बेहद खुश. जून, नूना और नन्हा बस तीन प्राणी, छोटा सा संसार है उनका. उसे ध्यान आया दाल उतारनी है कहीं कुकर में पानी खत्म ही न हो जाये. 
क्रमशः

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