Wednesday, July 25, 2012

रोना, कभी नहीं रोना



आज सुबह अलार्म सुनाई दिया था पर आलस्यवश दस मिनट और लेटी रही, सुबह की नींद भी तो कुछ अलग होती है ठंड में कम्बल में सिकुड़े रहो बस. आज कोहरा छाया है, दूर के पेड़ दिखाई ही नहीं दे रहे. सर्दियों में तो कभी-कभी सामने वाला घर भी दिखाई न दे ऐसा कोहरा होता है यहाँ. सर्दियाँ बस आने ही वाली हैं. कल माँ का पत्र आया है उन्हें जून के वहाँ न जाने से कितनी निराशा  होगी, कल ही छोटी ननद और मंझले भाई का पत्र भी आया है. कल शाम नन्हा बहुत जिद कर रहा था, जून को उस पर गुस्सा आया. आज से वे उसे बारी-बारी से खिलाएंगे अर्थात ध्यान रखेंगे. उसकी बचपन की दो सखियों की कल शादी थी, एक का पता उसने खो दिया चाह कर भी पत्र नहीं लिख सकी. बड़ी बहन की शादी की वर्षगाँठ भी थी. इस बार घर जाने पर वह ‘शाक तथा पुष्प वाटिका’ से सम्बधित कोई किताब अवश्य लाएगी ऐसा उसने तय किया.

कल रात वे अलार्म देना ही भूल गए, सुबह चिड़ियों ने उठा दिया या फिर उस स्वप्न ने जिसमें जून के साथ उसकी बहस हो रही है, क्योंकि वे दोनों तो कभी बात को बढ़ाते नहीं, ज्यादातर पांच मिनट से ज्यादा नहीं चलती उनकी बात, और होती भी है तो नन्हें की देखभाल को लेकर. उसका रोना जून को जरा पसंद नहीं, वह बहुत जल्दी घबरा जाता है, खुद भी झुंझला जाता है. पर बच्चे उतना रोते भी हैं जितना हँसते हैं, यह नूना को पता है. वह कभी-कभी उसे जी भर कर रोने देना चाहती है. आकाश पर रुई के फाहों के से बादल बिछे हैं, कोहरे का कोई नामोनिशान नहीं. उसे याद आया नन्हें के कुछ वस्त्रों की सिलाई खुल गयी है, आज सबसे पहले वही ठीक करेगी.

कल उसने ‘सर्वोत्तम’ में एक लेख पढ़ा, भीतर के अलार्म से कैसे उठें, अमल भी किया, प्रभावशाली रहा. सुबह सवा पांच बजे वह उठ गयी, नन्हा कल दिन भर मस्त रहा, पर शाम होते ही छोटी सी बात पर रोने लगा, उन्हें कुछ और उपाय सोचना होगा, उनमें से एक को सदा उसके साथ रहना होगा उसके हर कार्य में. वह दिन भर उसका पूरा ध्यान पाता है शाम को उसके दूसरे कामों में व्यस्त होने पर या जब वे आपस में बात करने में व्यस्त हो जाते हैं तो वह किसी न किसी बात पर जिद करने लगता है. आज ही के दिन दीवाली है अगले सप्ताह, वे कुछ लोगों को बुलाएँगे. कल का मैच भारत ने जीत ही लिया.   

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