नया वर्ष आरम्भ हुए हफ्तों
बीत गए, मन में विचार तो कई बार आया पर आज ही यह सुअवसर मिला है कि पेन उसके हाथ
में है. उसे लिखना है यह भाव तो मन में कई बार जगा पर कार्यान्वित नहीं हो सका. वे
एक महीने के लिये घर गए थे, वापसी में नन्हें को फिर सर्दी लग गयी, दिसम्बर में
उत्तर भारत बहुत ठंडा होता है. उन्हें घर से आये भी दो हफ्ते हो गए हैं, पर उसका
स्वास्थ्य पूरी तरह अभी तक ठीक नहीं हो पाया है. कल ससुराल से पत्र आया और आज
मायके से. दोनों में उसका हाल पूछा है. इस समय दोपहर के ढाई बजे हैं और यह कोई
माकूल वक्त नहीं है लिखने का. नन्हा और वह कुछ देर हुए उठे हैं सोकर, यदि आज शाम
वर्षा नहीं हुई तो वे लोग अवश्य कहीं घूमने जायेंगे. आज दोपहर उनकी लेन के एक
बंगाली महोदय की बात सुनकर हँसी भी आयी पर बाद में सोचा तो उन्हें सही पाया. वाकई
उनका जीवन कितना बंधा-बंधाया है, एक ही ढर्रे का, कोई नयी बात महीनों तक नहीं
होती. यहाँ ऐसा ही है. वे लाइब्रेरी जायेंगे कुछ अच्छी किताबें ही मिल सकती हैं,
पर वर्षा रानी ने साथ दिया तभी तो.
दस बजने वाले हैं, उसका सभी कार्य हो चुका है, जो शेष है वह जून के आने पर ही
होगा, वह फुलके उसके आने पर ही बनती है. पर आज सफाई कर्मचारी अभी तक नहीं आया. कई
दिन बाद आज तेज धूप निकली है, सोनू अपनी ट्राईसाइकिल लेकर बाहर गया है, और उसे
आवाजें दे रहा है, वह सड़क पर जाना चाहता है.
आज से उसने दिनचर्या में कुछ परिवर्तन किये है, फिर सोचा यदि ईश्वर सहायक रहा
तो यह सफल होंगे वरना...किसी बच्चे के रोने की आवाज आ रही है, मन पर कैसा आघात होता
है, फूट फूट कर रो रहा है वह. नन्हा अभी तक सोया है, तभी वह जून के जाने के बाद
झाड़-पोंछ का कार्य निपटा कर स्नान कर सकी फिर गीता पाठ और योगासन और अब यह डायरी.
पिछले कुछ दिनों से उसका मन बहुत उद्वगिन है, जो करना चाहती है वह हो नहीं पाता.
परसों रात कितनी सुंदर कहानी सोची थी एक-एक वाक्य स्पष्ट था पर कल जब लिखने बैठी
तो जैसे दिमाग की स्लेट ही पुंछ गयी हो. इतना जीवन बीत गया पर क्या किया इतने
वर्षों में, कोई सार्थक उपलब्धि नहीं, बहुत गर्व था अपनी लेखनी पर कहाँ गए वे
आन्दोलित करने वाले विचार, वह जेपी पर लिखी कवितायें, वे क्रांति की बातें. जीवन
की दौड़ में उसका स्थान कहाँ है ?
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