Wednesday, July 4, 2012

असम बंद


नवम्बर का आरम्भ हो चुका है. दीवाली का उत्सव आया और उन्हें हँसा कर चला भी गया. कितने कितने दिन बीत जाते हैं कुछ पढ़ाई लिखाई किये बिना, यदि वह सचमुच चाहे तो रोज ही ऐसा कर सकती है. कभी वक्त सचमुच फिसल जाता है, कभी याद नहीं रहता और कभी आलस्य वश.. दिन बीतते जा रहे हैं, कुछ दिनों में नन्हा चार महीने का हो जायेगा. इसी माह उन्हें घर जाना है. मौसम में बदलाव तो आया है पर अभी भी दिन में धूप तेज होती है, रातें ठंडी हो गई हैं. सोनू जग गया है और बड़ी-बड़ी आँखें कर इधर उधर कुछ देख रहा है. सुबह-सुबह उसकी मालिश और स्नान का नियम अभी तक तो टूटा नहीं है, जब ठंड बढ़ जायेगी तो सम्भवतः सोचना पड़ेगा.

आज असम बंद है. जून का ऑफिस भी बंद है. न कोई कार्यालय खुला है न कोई सवारी चल रही है. मोटरसाइकिल, कार सब बंद है. उन्हें नन्हें को लेकर अस्पताल जाना था आज ही उसे दूसरा ट्रिपल एंटीजन का इंजेक्शन लगना था और पोलियो ड्रॉप्स भी दिलवानी थी. सुबह से जून इसके लिये प्रयत्न कर रहा था और आखिर वह उसे स्कूटर पर ले ही गया. सुबह जल्दी उठे थे वे. रात को हुई वर्षा के कारण बाहर सभी कुछ धुला-धुला था, लॉन, पेड़-पौधे, आकाश सभी कुछ. कल छोटे फूफा जी का पत्र आया. कुछ दिन बाद वे घर जायेंगे तो सबसे मिलेंगे. सोनू से सब पहली बार मिलेंगे. आज कल कुछ लिखने के लिये डायरी उठाने पर उसे समझ नहीं आता कि क्या लिखे, कोई अच्छी सी बात मन में आती ही नहीं क्योंकि पढ़ना छूट गया है. विचार से विचार जन्मते हैं.

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