Tuesday, July 10, 2012

कहाँ से आये शक्कर पारे


पिछले तीन दिन वह व्यस्त रही, जून का दफ्तर बंद था, परसों शनिवार था फिर इतवार और सोमवार को गणतन्त्र दिवस. शनि की शाम वे किन्हीं परिचित के यहाँ गए, बहुत सुंदर लगा उनका घर, सजा-सजाया घर था, एक-दो माह बाद वह भी अपने घर के लिये कुछ कलात्मक वस्तुएं खरीदेगी उसने सोचा. इस समय वही पहले की सी शाम है, नन्हा सोया है और जून घूमते हुए लाइब्रेरी गया है. उसी दिन उन्होंने आलू चिप्स बनाये थे, अब तो पूरी तरह सूख गए हैं. सोनू उठकर नीचे कालीन पर बैठ गया है, ठंड कुछ बढ़ गयी सी लगती है, उसको मोज़े पहनाने हैं, टोपी वह पसंद नहीं करता. मुँह से कैसी-कैसी आवाजें निकलता है, बहुत तरह की आवाजें, बच्चे जाने किस मस्ती में रहते हैं. जून ने आज उसे चार बेर लाकर दिए, पहले खट्टे फिर कसैले लगते हैं.

संध्या के सवा पांच बजे हैं, जून रोज की तरह टहलने गए हैं और नन्हा भी किसी स्वप्नलोक में विचरण कर रहा होगा. वह लिखने बैठी है दिन भर की कुछ घटनाएँ. सुबह सामान्य थी, उनके किचन गार्डन में गाजर की फसल बहुत अच्छी हुई है इस बार, पड़ोसन को देने गयी, वह कुकिंग प्रतियोगिता में भाग लेने वाली थी पर देर से पहुंचने के कारण भाग नहीं ले पायी. दोपहर को जून के जाने के बाद उसने कुछ देर स्वेटर बनाया नन्हें के साथ खेला, फिर वह अपना भोजन करके सो गया तो किचन साफ किया, फिर कुछ देर को सो गयी. दोनों उठे तो सवा दो बजे थे, तैयार होकर बाहर घूमने निकले, सोचा टैटिंग का कोई नया डिजाइन लेगी अपनी मित्र से, पर धागा खत्म हो गया था. असमिया मित्र के यहाँ गयी जिसका बेटा नन्हें से मात्र एक माह बड़ा है. वापस आयी तो देखा एक पैकेट पड़ा है, सोचा कोई सब्जी रख गया होगा शायद उनका ही माली. पर आये हैं शक्करपारे और नमकीन, पता नहीं कौन रख गया है. जून और वह अपने सभी परिचितों के नाम गिन चुके हैं. किसी के भी इस तरह का पैकेट रख जाने की सम्भावना नहीं दिखती. 
क्रमशः

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