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Thursday, August 30, 2018

आठ शक्तियाँ




नन्हा कल वापस चला गया. एक हफ्ता उसके रहने से घर का माहौल ही बदल गया था. पता ही नहीं चला एक हफ्ता कैसे बीत गया. मित्र के विवाह में वह आया तो अपने साथ एक मित्र को भी ले आया, दोनों ने ड्रोन उड़ाया और वह खो गया. उसे यकीन है कि एक न एक दिन वह मिल जायेगा. उसकी मित्र भी पहली बार घर आई, पता नहीं भविष्य में क्या लिखा है. नन्हे ने पूसी के लिए जो घर बनाया उसमें रेशमी वस्त्र बिछाया, काफी आरामदेह है, वह रात को उसमें सो भी सकती है. अगले हफ्ते मृणाल ज्योति में वार्षिक सभा है. जिसके लिए उसे एक कविता लिखनी है. जून कल चार दिनों के लिए शिलांग व गोहाटी जा रहे हैं. इस दौरान उसे एक जन्मदिन की पार्टी में जाना है और उसी दिन महिला क्लब की थैंक्स गिविंग पार्टी भी होने वाली है. अगले दो दिन घर की सफाई में लगने वाले हैं, पिछले हफ्ते इसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

सुबह टीवी पर एक ब्रह्मकुमारी बहन आठ शक्तियों के विषय में बता रही थीं. हर आत्मा में ये आठ शक्तियाँ हैं. पहली है सिकोड़ने और फ़ैलाने की शक्ति, कछुए की तरह विपत्ति आने पर स्वयं को सिकोड़ लेना और सामान्य काल में विस्तार कर लेना यदि वे सीख जाते हैं तो हर परिस्थिति का सामना कर सकते हैं. दूसरी है समेटने की शक्ति, जो भी विस्तार उन्होंने जगत में किया है, अंत में एक क्षण में उसे छोड़ कर जाना होगा. यदि जीवन काल में भी समय-समय पर सब प्रवृत्ति त्याग कर गहन ध्यान में जाने की क्षमता है तो मोह से मुक्ति सहज ही मिल जाती है. मन की समता बनाये रखने के लिए सहन शक्ति या तितिक्षा का भी सबको अभ्यास करना है. यदि मन में सबके प्रति शुभभावना होगी तो किसी की बात बुरी नहीं लगेगी और सबके साथ निभाना सरल हो जायेगा. किसी भी बात को अपने भीतर समाने की शक्ति को भी पोषित करना है, जो विशाल बुद्धि से आती है, जीवन जितना मर्यादित होगा, अनुशासन का पालन सहज होगा उतना ही विपरीत को समाना आसान होगा. सार-असार, नित्य-अनित्य को परखने की शक्ति भी हर आत्मा में छुपी है. ज्ञान को अपने भीतर धारण करने से ही यह पोषित होती है. किसी भी विषय में शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता भी हरेक के भीतर है पर वे कई बार गलत निर्णय ले लेते हैं या निर्णय को टालते रहते हैं और समय निकल जाता है. सांतवी शक्ति है सामना करने की, जीवन में किसी भी परिस्थिति का बहादुरी से सामना करने की शक्ति भी जगानी होगी. अंतिम लेकिन एक महत्वपूर्ण शक्ति है सहयोग करने की शक्ति, जगत म,एन सभी को किसी न किसी का सहयोग चाहिए, जो सबके साथ मिलकर काम करना जानता है, वह कभी अकेला नहीं होता.

जून इतवार दोपहर को गये, शाम तक शिलांग पहुंच चुके थे, अगले दिन गोहाटी आ गये. सम्भवतः परसों वह लौट आयेंगे. रविवार को उसने बच्चों के साथ गुरूपूर्णिमा का उत्सव मनाया, सोमवार को संध्या के योग सत्र में फिर से महिलाओं के साथ. अगले सप्ताह उन्हें महिला क्लब की मीटिंग में योग पर एक कार्यक्रम प्रस्तुत करना है. इस समय रात्रि के ग्यारह बजने को हैं. शाम को लिखना आरम्भ किया था कि योग कक्षा का समय हो गया. उसके बाद तैयार होकर वह एक नन्ही बच्ची के जन्मदिन की पार्टी स्थल पर गयी, वहाँ होटल के स्टाफ के अतिरिक्त कोई नहीं था. लौट कर उनके घर गयी फिर बच्ची की नानी के संग वहाँ पहुँची. काफी अच्छा इंतजाम था. केक काटा गया और बिना अंडे का केक खाकर वह महिला क्लब की आभार प्रकटीकरण के भोज में आ गयी. जहाँ सभी महिलाएं आ चुकी थीं. मेहमान पौने नौ बजे आने शुरू हुए. दस बजे तक औपचारिक भाषण आदि होते रहे, उसके बाद जूस पव अन्य पेय आदि दिए गये, मेहमानों में कुछ उच्च अधिकारी भी थे. दस बजे वह वापस आ गयी, एक सखी ने रोटी व रायता पैक करके दे दिए, दिन की भिंडी की सब्जी पड़ी थी, सो डिनर घर पर ही खाया. सुखबोधानन्द जी को बहुत दिनों बाद सुना और अब ‘पीस ऑफ़ माइंड’ पर गूढ़ चर्चा चल रही है. वे आत्मायें हैं, हर अपने शुद्ध रूप में आत्मा पवित्र हंस है, देवदूत है, कमल वत है ! कर्मों के द्वारा ही वे आत्मा के शुद्ध स्वरूप से नीचे गिरते हैं और ज्ञान, कर्म व धारणा के द्वारा ही वे पुन शुद्ध स्वरूप को पा सकते हैं. स्वयं को दाता से जोड़कर उन्हें भी कर्मों तथा वाणी के द्वारा जगत को देते ही जाना है. वे जब स्वयं के असली स्वरूप को भूल जाते हैं तो ही द्वंद्व में पड़ते हैं. यदि हर क्षण यह याद रहे कि वे कौन हैं, तो सदा आत्मा में ही रमण करेंगे.  

Tuesday, July 24, 2018

फूलों की माला



रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं, समाचारों में देश के कई राज्यों में बढती हुई गर्मी के समाचार आ रहे हैं, जबकि यहाँ असम में तेज वर्षा हो रही है. इसके पूर्व ‘सिया के राम’ देखा. शिवानी को सुनते हुए रात्रि भोजन किया. शाम को वर्षा रुकी तो कुछ देर ड्राइव वे पर ही टहलते रहे. आज से उज्जैन में ‘सिंहस्थ कुम्भ’ आरम्भ हो रहा है, आज दस लाख लोगों ने स्नान किया शिप्रा नदी में. नर्मदा और शिप्रा का संगम है उज्जैन में. समाचारों में सुना, प्याज की फसल इतनी हो गयी है कि दाम बहुत घट गये हैं.
आज एक बार फिर अनुभव हुआ कि स्वयं के संस्कारों को स्वीकारना जिसने सीख लिया, वही अन्यों के संस्कारों को भी स्वीकार कर सकता है. जो भी और जैसे भी संस्कार उन्हें मिले हैं, कर्मों को दोहराते रहने से बने हैं. यदि उनको बदलने में उन्हें इतना वक्त लगता है तो वे दूसरों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि उनके एक या दो बार कहने से वे बदल जायेंगे. सबकी गहराई में जो बेशर्त प्रेम का झरना बह रहा है उसे बहने देने का एकमात्र यही उपाय है कि हरेक को वह जैसा है वैसा ही स्वीकार लिया जाये और फिर उसके वास्तविक रूप से उसका परिचय कराया जाये ! जब वे स्वयं का निरीक्षण करते हैं और उस पर निर्णय सुनाते हैं तो भीतर एक संघर्ष चलता है, जिसका परिणाम कभी सुखद नहीं हो सकता. वे इस दुनिया में अपने मूल स्वरूप को अनुभव करने तथा उसे व्यक्त करने के लिए आए हैं. उसकी झलक उन्हें कई बार मिलती रही है, स्वयं को अन्यों से ऊंचा बनाने के चक्कर में वे अपनी ही नजरों में छोटे बनते जाते हैं ! वे अपनी शक्ति को उन बातोँ में खर्च करते हैं जो उनके ही विरुद्ध हैं, ख़ुशी भी एक ऊर्जा है और जितना वे इसका निर्माण करते हैं, उतना यह उन्हें स्वस्थ करती है. प्रेम, विश्वास ये सभी सकारात्मक ऊर्जाएं हैं, जिनका निर्माण उन्हें करना है और बाहर व्यक्त करना है. भीतर की वृत्ति यदि श्रेष्ठ हो तो दृष्टि भी पावन हो जाती है.

आज रविवार है, दिन में वर्षा कम हुई थी, रुकी थी पर इस समय रात्रि के साढ़े आठ बजे पुनः मूसलाधार वर्षा आरम्भ हो गयी है. ‘सिया के राम’ देखना शुरू ही किया था, जिसमें जटायु की कथा दिखाई जा रही थी, कि टीवी पर सिगनल आना बंद हो गया. सब्जी बाड़ी से तोड़ी सब्जियाँ आज भोजन का अंग बनीं, सुबह हरे प्याज की रोटी, शाम को सहजन की सब्जी. दोपहर को नन्हे से बात हुई, वह नया बेड खरीद रहा है. दीदी ने बताया, उनके  छोटे पुत्र ने अपनी नयी कम्पनी शुरू की है. बड़ी नन्द की जेठानी को फोन किया, उनके पुत्र के विवाह में उन्होंने बुलाया था, पर वे जा नहीं पाए.
कल शाम की योग कक्षा में एक नयी साधिका आई, उसे वर्षों से पीठ में दर्द है, कोई आसन नहीं कर सकती. शाम को बंगाली सखी के यहाँ गयी, उसने विदेश से लाया एक छोटा सा उपहार दिया और आलू परांठा खिलाया. टीवी पर सुंदर संदेश सुना, ‘रहमदिल, देह अभिमान से मुक्त, एक रस, सभी के प्रति जिसमें सद्भावना हो, चाहे वे विरोधी ही क्यों न हो, ऐसे सद्गुणों से सजी आत्मा, परमात्मा के गुणों की याद दिलाती है. देवताओं के गले में जो फूलों की माला पहनाई जाती है, वह वास्तव में उनकी गुण माला होती है. देने की भावना सदा बनी रहे. स्वयं को देवता रूप में तैयार करना है. जब मूर्ति तैयार हो जाती है तो उसको दर्शन देने के लिए खोल दिया जाता है. साधक भी जब तैयार हो जाता है तो पर्दा खुल जाता है. परमात्मा की कृपा सहज ही बरसने लगती है, जब कोई इस पथ पर चलता है और पूर्णता प्राप्त होने पर संसार भी कृपा करने लगता है’. आज सुबह स्कूल जाते समय सड़क के दोनों ओर पानी ही पानी दिखाई दिया, हजारों लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं. बंगलूरू में सूखा पड़ रहा है, वहाँ वर्षा नहीं हुई है पिछले कई दिनों से.