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Wednesday, January 23, 2013

सत्यजीत रे की गण शत्रु



पंजाबी दीदी अगले हफ्ते बुधवार को यहाँ से सदा के लिए जा रही हैं, मंगल को वे लोग उनके यहाँ आएंगे और एक रात रहेंगे, अगले दिने वे उन्हें छोड़ने भी जायेंगे. कल रात यह सुनकर वह उदास हो गयी, जून के प्रश्न का उत्तर भी ठीक से नहीं दिया, पर उसने कितने धैर्य का परिचय दिया. पता नहीं उसे क्या हो गया है, क्यों झुंझलाहट होती है, वह किससे नाराज है ? उसे खुद भी समझ नहीं आता. नन्हा फिर उसे कैसे समझाता है. पर वह इतना जानती है बादलों के पीछे से सूरज फिर से निकलेगा..फिर से वह मुस्कुराएगी और अपने आप से शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा.

कल शाम को कोलकाता के नर्सिंगहोम में महान फ़िल्मकार सत्यजीत रे का देहांत हो गया. टीवी पर उनकी फिल्म “गणशत्रु” दिखाई जा रही है.

गीत वह जो प्राण भर दे
सदियों से सुप्त उर में
भीषण हुंकार भर दे !

दस दिशाएं गूंज उठें
भीरु कातर इस नगर में
शक्ति का संचार कर दे !

आज फिर संयोग हुआ है अपने करीब आने का, कल एक मित्र के यहाँ गयी थी, अच्छा लगा उससे बातें करके. यह क्या..अपने करीब आने का मौका भी दूसरों के पास जाने में गंवा देना चाहती है...इंसानी मन ही ऐसा है, यह नहीं सोचता कि वह स्वयं क्या है ? क्या सोचता है ? बल्कि ज्यादा यह कि दूसरे क्या सोचते हैं ? जबकि इन दूसरों का जरा भी दखल नहीं होता उनकी जिंदगी में. उस दिन पंजाबी दीदी की प्यारी सी चिट्ठी मिली, आज वह भी उन्हें लिखेगी. एक किताब पढ़ रही है, रोमांचक तो है थोड़ी खतरनाक भी है, क्या लेखिका हैं! उसने पिछले कई दिनों से एक पंक्ति भी नहीं लिखी, समय न मालूम कैसे गुजर जाता है, कुछ हाथ का काम भी नहीं किया. सेंट्रल स्कूल में कक्षा एक में पढ़ने के लिए कल नन्हे का एडमिशन टेस्ट हो गया, तीन दिन बाद रिजल्ट आएगा. इस समय वह भी डायरी लिख रहा है. बचपन में कितनी तुकबन्दियाँ की थीं उसने, कभी किसी ने पढ़ी नहीं, वक्त ही कहाँ था, माँ-पिता के लिए इतने बड़े परिवार को चलाना क्या आसान था ? लेकिन नन्हे को वह पूरा वक्त दे सकती है, उसे पढ़ा सकती है.

आज मौसम बहुत अच्छा है, ठंडा-ठंडा शांत सा..रोजमर्रा का काम तो हो गया है पर सोचा था फ्रिज साफ करना है, वह नहीं हो पाया, घर-गृहस्थी के कामों का कोई अंत ही नहीं है, स्टोर  की सफाई फिर ड्यू हो गयी है और किताबों वाला रैक भी आवाज दे रहा है, पर थोड़े से पल शांत बैठकर अपने आप से बातें करना भी शायद उतना ही जरूरी है, पर बीच में यह ‘शायद’ क्यों? कल जून तिनसुकिया गए थे उनकी कार में कुछ खराबी आ गयी थी, लौटे तो बहुत थके थे, झुंझला गए. पर रात को जब उन्होंने अपने-अपने मन को टटोल कर देखा तो वहाँ एक दूसरे के सिवा कुछ था ही नहीं.

आज जून किसी मेहमान को लंच पर साथ लाने वाले हैं, उसकी सुबह किचन में ही बीती, साढ़े दस बज गए हैं अभी मेज सजाना शेष है और सलाद आदि भी. लेकिन ऐसी व्यस्तता उसे भली लगती है. लगता है कि वह है, जीवित है, स्पंदन है. उसे ही फोन करना पड़ा अपनी मित्र को जब पता चला कि उसकी तबियत ठीक नहीं है तो रहा नहीं गया, पर जिस स्तर पर वह चाहती है उस स्तर पर सम्बन्ध बन नहीं पाते, निस्वार्थ..अपनेपन से भरे..यह मृगमरीचिका ही रहेगी उसके लिए.

नन्हा साईकिल चलाना चाहता है, उसकी पढ़ाई आजकल बिलकुल नहीं हो पाती है. नए स्कूल में उसका दाखिला हो गया है. वे लोग घूमने गए, जून ने उसे जन्मदिन का उपहार ले दिया, दो सूट के कपड़े - नीले कपड़े पर सफेद फूल और काले कपड़े पर सफेद फूल.. नन्हे को भी उसकी पसंद का एक गिफ्ट, उसके अच्छे रिजल्ट के लिए. उस दिन मंदिर में उसने भगवान से शांति की प्रार्थना की थी, वह सुन ली गयी है...ईश्वर अब भी उसकी बात सुनते हैं. बहुत दिनों बाद ढेरों फूल खिले हैं मन में और एक सफेद व बैंगनी रंग का एक नया फूल उनके बगीचे में भी खिला है पहली बार..