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Thursday, May 15, 2014

राजधानी में लंच


वे बिहार में प्रवेश कर चुके हैं, राजधानी एक्सप्रेस किसी अज्ञात कारण से अत्यंत धीमी गति से चल रही है. कल रात पांच घंटे देर से ही देहली से चली थी और अब तो ग्यारह घंटे लेट हो चुकी है. कल शाम को वे तिनसुकिया पहुंचेंगे और वहाँ से अपने घर. उन तीनों के जीवन में कई सुखद परिवर्तन लेकर आई, अभी तक संतोष जनक रही इस यात्रा की स्मृतियां उनके साथ रहेंगी. कितने नये स्थान देखे, कितने लोगों से मिले. छोटी बहन की बिटिया को पहली बार देखा वह बहुत सुंदर है. दादी के पास थी, बहन अपनी पढ़ाई के कारण दूसरे शहर में थी. वे बड़े भाई के यहाँ भी गये, उनके छोटे से घर की तुलना में सामान बहुत ज्यादा था, दिल्ली में प्रदूषण भी बहुत है और उसे लगा वे लोग भोजन भी अपेक्षाकृत गरिष्ठ लेते हैं. उसे माँ-पापा की याद हो आई आज वे अकेले बैठे होंगे. उनके सामने वाली सीट पर एक परिवार नवजात शिशु (शायद दो महीने का)  के साथ व्यस्त है. अब लंच का समय हो गया है. कम से कम राजधानी में समय पर गर्मागर्म भोजन मिल जाता है. उन्होंने आइसक्रीम भी खायी, इस यात्रा में पहली बार. इस समय जून खिड़की से बाहर के नजारे देख रहे हैं और नन्हा कोई पत्रिका पढ़ रहा है शायद ‘चिप’, उसने एक कम्प्यूटर गेम भी दिल्ली में खरीदा है. उसके मन में उड़ीसा के हरे-भरे रास्ते, नारियल के वृक्ष, पोखर और समुद्र की छवियाँ आ आकर लौट जाती हैं.

परसों रात वे अपने घर लौट आये, सौभाग्य से मंद गति से चलती ट्रेन उनके शहर में बिना स्टॉप के रुक गयी और वे उतर गये, वरना एक घंटा और लग जाता. एक मित्र के यहाँ भोजन किया. कल जून दफ्तर गये, उन्हें अगले माह होने वाले सेमिनार में जाने के लिए तैयारी करनी है. नन्हे के साथ उसने घर व्यवस्थित किया, पूरा दिन व्यस्तता में बीता. बगीचे में फूल खिल आये हैं किचन गार्डन भी हरा-भरा और साफ-सुथरा लगा, उनकी अनुपस्थिति में भी नैनी और माली ने अपना काम जारी रखा.

आज वर्ष का अंतिम दिन है, मौसम साफ है, धूप भी निकली है, ठंड ज्यादा नहीं है यानि नये साल का स्वागत करने के लिए बिलकुल सही वातावरण ! सुबह उठी तो एक स्वप्न की याद थी जिसमें बाजार जाते समय वह पैसे ले जाना भूल जाती है, वापसी का रास्ता बहुत कठिन है. जून उससे पहले उठ गये थे, कल शाम भर वे अपने काम में व्यस्त थे, नन्हा अपनी छुट्टियों का बचा हुआ गृह कार्य पूरा करने में. कल रात्रि उसने चायनीज भोजन बनाया था, उन दोनों को पसंद आया. आज एक सखी ने नये वर्ष के स्वागत भोज के लिए बुलाया है यानि new year party, कल से नया साल शुरू हो रहा है, यकीनन खुशियों से भरा होगा, न सिर्फ उनके लिए, असम के लिए और पूरे देश के लिए !


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Thursday, June 21, 2012

अरबी की सब्जी


आज शिक्षक दिवस है. कभी वह भी पढ़ाती थी. पहले स्कूल में, फिर घर पर, और तब कॉलेज में. बचपन से ही वह शिक्षिका होना चाहती थी. वे बचपन में स्कूल-स्कूल खेला करते थे. सब भाई-बहन, जिसमें फुफेरे भाई–बहन भी शामिल होते थे और कुछ आस-पड़ोस के बच्चे. और आज वह इतनी बड़ी हो गयी है कि माँ बन गयी है, उसने सोते हुए शिशु की ओर देखा. तभी तो वह लिख पा रही है. सुबह भी वह सोया था जब जून ऑफिस गया. उसने स्नान किया, खाना बना कर रख दिया. तब जाकर वह उठा. उसके सारे काम करते, नहलाते-खिलाते दो घंटे कैसे बीत गए पता ही नहीं चला, और तब पुनः उसे नींद आने लगी, मालिश-स्नान व आहार पाकर वह अब सुख की नींद सोया है. अब वह स्नान के समय पहले की तरह रोता नहीं है उन्हें हँसते देखकर, कितना प्यारा हँसता है. कल दिन भर बहुत कम सोया, शाम से रात तक बहुत परेशान रहा, जून उसे रोता हुआ नहीं देख पता, घंटा-घंटा भर तक गोद में लेकर झुलाता है जब तक कि वह सो न जाये.

जून को दुबारा बाजार जाना पड़ा, सेब लाया था वह, पूरे चौदह रूपये किलो, पर खराब निकल गए, दुकानदार वापस लौटा तो लेगा. सुबह फिर वह देर से उठा, रात को नींद पूरी नहीं हो पाती, दिन भर भी वह आराम नहीं कर पाता. आज उसके एक सहकर्मी की माँ की मृत्यु हो गयी, वह आंध्रप्रदेश के रहने वाले हैं, उन्हें घर के लिये विदा करने वह उनके घर गया था.

आज नन्हा पूरे दो महीने का हो गया. अभी लिखने के लिए उसने कलम उठाया ही था कि वह जग गया पर जब तक चुपचाप लेटा है, तब तक वह दो चार लाइनें लिख ही पायेगी, उसने सोचा. बाहर मूसलाधार वर्षा हो रही है. अभी शाम है पर रात का आभास हो रहा है.
रात को उन दोनों ने मिलकर इस मौसम में पहली बार अरबी की सब्जी बनायी, नूना के हाथों में अरबी छीलने पर काटती है, इसलिए जून स्वयं ही काट कर देता है, बहुत ख्याल है उसे हर बात का.


Thursday, May 31, 2012

नामकरण संस्कार


इस समय टीवी पर ‘गंगा प्रदूषण मुक्ति’ अभियान दिखाया जा रहा है, जो वाराणसी में राजीव गाँधी द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया जा रहा है. प्रधानमंत्री इस परियोजना के प्रतीक का अनावरण कर रहे हैं. उसे याद आ रहे हैं वे दिन जब पूरे परिवार के साथ वह गंगा भ्रमण के लिये जाती थी, जो भी मेहमान उनके यहाँ आते थे, उन्हें भी गंगा दर्शन के लिये ले जाना होता था. पानी तब इतना दूषित नहीं था.
आज इतवार है, अभी तक का समय खट्टा-मीठा बीता है और यह इस बात का प्रतीक है कि अभी जीवन में स्पदंन है. बिना कोई परेशानी आये, सीधे-सीधे जीवन का पथ तय होता जाये तो आनंद ही क्या. कल शाम वे नवजात शिशु से मिलने गए थे जो कल ही घर आया है, अभी तक उसका नाम नहीं रखा गया है, नामकरण संस्कार होने पर ही नाम रखेंगे उसकी माँ ने बताया, नूना को थोड़ा आश्चर्य हुआ, उसने तो अभी से नाम सोच रखा है. कल वह फिर जायेगी उसके लिये उपहार लेकर, आज तो बाजार बंद है. वे घर लौटे तो दो परिवार उनसे मिलने आये हुए थे. रात को स्वप्न में वह अमेरिका पहुँच गयी थी, और छोटी बुआ को भी देखा. सुबह नींद देर से खुली, पर जून ने बिना कोई जल्दबाजी किये आराम से ही ऑफिस जाने की तैयारी कर ली. उसकी यही बात नूना को बहुत भाती है, वह कभी भी घबराता नहीं है, न दूसरे को ही इसका अनुभव करने देता है.

कल टीवी पर व्ही. शांताराम की प्रसिद्ध फिल्म देखी, ‘झनक झनक पायल बाजे’ उसे तो बहुत अच्छी लगी, पर जून को ऐसी फ़िल्में अच्छी नहीं लगतीं शायद, वह बीच-बीच में उठ कर चला जाता था. रात दस बजे फ़्रांस में हुए ‘इंडिया फेस्टिवल’ की समाप्ति पर एक विशेष कार्यक्रम था, कितना मन था उसका देखने का पर यह जून है न जो, उसे नींद आती है दस बजे ही, बेड में आने के बाद चाहे ग्यारह, बारह बजे तक जगता रहे.