दस
बजे हैं, मौसम गर्म है. परसों शाम को मेहमानों के आने से पूर्व अंततः उसके मन ने
विद्रोह कर दिया और जून से उसने उनके उस दिन के व्यवहार की शिकायत कर दी. विवाद का
कोई भी परिणाम नहीं होता, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण कल सुबह हुई बातचीत से निकला. खैर,
मन हल्का है. परमात्मा की कृपा से सद्गुरू मिले, सद्गुरू की कृपा से ज्ञान और उस
ज्ञान को टिकने में साधना का सहयोग रहा फिर क्यों यह बाहर के अशांत वातावरण ने
भीतर अशांति पैदा की. माँ की हालत बिगड़ती जा रही है पर पिताजी व जून के भीतर दुःख
का बढ़ते जाना घर के माहौल को अशांत कर रहा है. पहले जिन बातों को वे हँसी में उड़ा
देते थे अब उन्हीं पर झुंझला जाते हैं. उसने ‘श्रद्धा सुमन’ ब्लॉग में बहुत दिनों
से कोई कविता पोस्ट नहीं की ह. एक नयी कविता का भाव भीतर भगवद गीता पढ़ते-पढ़ते
प्रकट हुआ है कि परमात्मा को पाने के लिए कितने जोड़-तोड़ किये, उपाय किये पर जब तक
करने वाला रहा तब तक वे सब व्यर्थ ही सिद्ध हुए ! गुरूजी के लिए कविता लिख रही है,
उनका जन्मदिन आने वाला है, परसों ही तो है.
आज का ध्यान एक बड़ी सिखावन दे गया. वे जो भी भाव अन्यों
के कारण प्रकट करते हैं, उनका स्रोत उनके ही भीतर होता है, वे ही कारण हैं, बाहर
तो बस खूंटियां होती हैं, जिनपर वे अपने मन की भावनाओं को टांग देते हैं. उनका
प्रेम या उनकी घृणा उनकी निज की सम्पत्ति है. आज सुबह एक स्वप्न देखकर उठी थी पर याद
नहीं है. परसों रात को उड़ने वाला स्वप्न देखा था जिसकी स्मृति सुबह बनी हुई थी.
कल भी वर्षा हुई ! आज सुंदर शब्द सुने जो भीतर अभी भी
गूँज रहे हैं. जग की आपाधापी में कहीं चुक न जाये संवेदना उर की... अंतर भीगा हो,
वाणी में ओज हो और सहज ही सबको साथ लेकर चलने की कला हो..कलाकार की कला तभी
फलती-फूलती है. कला का अभिमान भीतर की संवेदना को हर लेता है ! मार्ग में यदि
कांटे हों तो कोई अनदेखा कर देता है, कोई खुद को बचा कर निकल जाता है पर संवेदनशील
कांटे बीनता है और राह को अन्यों के लिए कंटक विहीन बना देता है ! जो सहनशील होगा
वही अपनी कला को विकसित कर सकता है, सृजन शील हो जो वही कलाकार नित नया सृजन करता
है. हर दिन कोई नया विचार, कोई नया गीत रचे मन.. प्रकृति ज्यों नित नई है, सनातन
मूल्यों को पकड़ कर नया सृजन हो वैसे ही जैसे मूल को पकड़ कर नया फूल खिलता है..
स्वप्नशील हो अंतर उसका, एक शिव संकल्प जलता रहे भीतर जो सदा प्रेरित करे..
कल रात
स्वप्न में मुस्लिम समाज को देखा, कोई जलसा हो रहा है, मुस्लिमों का इतिहास बताया
जा रहा है, वह भी उसी हुजूम का हिस्सा है. कुछ दिन पहले भी कई मुस्लिम औरतों को,
जो सफेद बुर्के पहने थीं, देखा था. शायद कोई पिछला जन्म रहा हो. स्वप्न में एक सखी
को भी देखा. मन कितनी गहरी याद भीतर छिपाए रखता है. वे किसी के लिए कुछ भी करते
हैं तो उसके पीछे यही भावना होती है कि लोग जानें. अहम की तुष्टि के लिए ही वे
सारे कर्म करते हैं, ऊपर से भले यह दिखाई न पड़े.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.11.2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2529 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद