Tuesday, November 1, 2016

नींबू का पेड़


कल कुछ नहीं लिखा और आज इस वक्त जब लोग भारत-पाकिस्तान क्रिकेट सेमी फाइनल मैच देख रहे हैं, वह अपने साथ कुछ पल बिताने आई है. कल एक उपदेशात्मक कविता लिखी थी. किन्तु सच्चाई यह है कि कोई भी सत्य को सीधे-सीधे स्वीकारना नहीं चाहता या फिर वह जो जानता ही है उसे सुनकर स्वयं को कटघरे में खड़े हुआ नहीं देखना चाहता, कोई नया भाव, नई बात और वह भी मधुर शब्दों में कही जाये जो उसकी नींद को न तोड़े, स्वप्न को चलने दे और बल्कि उसे और भी गहरा कर दे. वे सभी तो सो रहे हैं और जागरण के कुछेक क्षण जो जीवन में आते हैं, उन्हें पसंद नहीं आते. वे उन्हें नकार कर अपनी नींद में मस्त रहना चाहते हैं. वे बेखबर रहते हैं अपने ही भीतर बहते उस आनन्द के निर्झर से, लेकिन उसकी खबर कोई अन्य किसी को नहीं दे सकता, खुद ही भीतर से ललक जगे तभी कोई उस अज्ञात की राह का पथिक बनता है, तो न तो उसे किसी को जगाने की जरूरत है न उन्हें झकझोरने की, उसे तो उस आनन्द के गीत गाने हैं जो भीतर पाया है, हो सकता है कोई उस आनन्द की झलक अपने भीतर पाले और अनजाने ही चल पड़े उस राह पर. आज लेडीज क्लब की मीटिंग है. उसे हिंदी प्रतियोगिता के लिए एक कविता और एक कहानी भी देनी है.

कल रात मैच खत्म हुआ तब सोये, आज सुबह देर से उठे. भारत क्रिकेट मैच जीत गया, पिताजी ने ख़ुशी में हलवा बनाने की फरमाइश की. पूरे देश में जश्न का माहौल है. लोग सारी कड़वाहटें भूल गये हैं. क्रिकेट ने सारे देश को एकता के सूत्र में बाँध दिया है. सभी राज्यों के खिलाडी भारत के लिए खेलते हैं. आज जग्गी वासुदेव जी का सम्बोधन सुना बाबारामदेव जी के कार्यक्रम में. कोयम्बतूर में ईशा योग सेंटर है, वहाँ बाबाजी भी गये थे. सही कहा है किसी ने, सारे संत एक मत ! कल क्लब गयी पर लाइब्रेरी में बैठकर एक तिब्बती पुस्तक पढ़ती रही. योग ग्रन्थों में जिस चिदाकाश का वर्णन है, वही बौद्ध ग्रन्थों में है, दोनों का स्रोत तो उपनिषद ही हैं, अद्भुत है सनातन धर्म ! परमात्मा की कृपा अद्भुत है, वह अद्भुत है और उसके ज्ञान को हजारों वर्षों से अक्षुण रखते आये ऋषि भी अद्भुत हैं. एक आत्मा या परमात्मा ही सभी रूपों में प्रकट हो रहा है. वह आधार है, वे उसके हैं, वह उनका है. जीवन कितनी क्षुद्र बातों से भर जाता है, जब वे साधना के पथ पर नहीं होते. साधना उन्हें अपने स्वरूप का ज्ञान कराती है, उनके जीवन को पूर्णता देती है.

आज सुबह ही जून ने कहा, शाम को उन्हें क्लब जाना है आने में देर होगी, उसने मना किया, कहा, यदि अति आवश्यक न हो तो नहीं जाना चाहिए, दोपहर को भी किसी बात पर मतभेद हुआ शायद बंगलूरू में घर लेने की बात पर. इतना ही नहीं जब जून ने कहा नींबू के पेड़ पर फल नहीं लगते, उसकी शाखाएँ कटवा देते हैं, तो उसे हरे-भरे पेड़ को कटवाने की बात भी पसंद नहीं आयी, उसकी भाषा रक्षात्मक हो गयी और जून कुछ अजीब मूड में घर से बाहर गये. उसे भी तब से अच्छा नहीं लग रहा है. वह प्रसन्न रहे उसकी यही दिली इच्छा है, क्योंकि उसके खुश रहने पर वह भी खुश रह सकती है वरना तो..शाम को वह क्लब जायेंगे ही..नाश्ते के समय तक वह उसकी सब बातों को भुला देंगे..है न ! उसने मन ही मन पूछा. कल डीपीएस का परीक्षा परिणाम आ गया. उसकी छात्राओं का भी आ गया होगा, जिनकी मातृ भाषा हिंदी नहीं है, लेकिन दोनों में से किसी ने फोन नहीं किया, उसने स्वयं ही एक से पूछा. आज ब्लॉग पर कल वाली कविता पोस्ट की, जिसमें नृत्य का वर्णन है, एक कहानी लिखी.


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