आज सुबह
फिर किसी ने कहा, अब अलार्म बजेगा और तत्क्षण बजा, कौन है वह जो सुबह-सुबह उसे
चेता जाता है. रात को स्वप्न में जंगल देखा, भीगा घना जंगल, उन्हें उसमें रेंग कर
जाना पड़ रहा था. कितना अद्भुत है स्वप्न
लोक और यह जागृत अवस्था का लोक भी ज्ञानियों के लिए स्वप्न से बढ़कर नहीं. उस दिन भी एक अजीब सा स्वप्न देखा था, अपने ही
तन के एक अंग को कटोरा बनाकर उसमें भोजन करते हुए और फिर एक सखी का दरवाजे से झांक
कर छि छि कहते तथा स्वयं को तो क्या हुआ कहते हुए, फिर नन्हे का आना..उनका अचेतन
मन एक अजीब गोरखधन्धा है. भीतर न जाने कितने जन्मों की कितनी गांठें पड़ी हैं,
आत्मज्ञान इन्हीं गांठों को खोलने का काम करता है. दरअसल साधना का आरम्भ होता है
आत्मज्ञान के पश्चात !
कल उसे
प्रेरणा हुई है कि जीवन यात्रा लिखे डायरी के पन्नों के माध्यम से तथा एक नया
ब्लॉग भी आरम्भ करे आध्यात्मिक यात्रा पर, जिसमें प्रेरणादायक विचार लिखेगी. आज ही
दोनों का आरम्भ करेगी, आज शुभ दिन है, अब लेखन ही उसके जीवन का केंद्र होगा. वही
उसकी साधना होगी और वही मोक्ष भी लायेगा. योग आदि तो रहेंगे ही. हर चीज का एक वक्त
होता है. जीवन ने उसे जो दिया है, उसे जाने से पहले लौटा दे यही इस लेखन का
अभिप्राय है. अहम का विसर्जन हो और सेवा का कुछ कार्य भी हो. परमात्मा की बात है
तो परमात्मा के लिए ही है, वही उसके मार्गदर्शक हैं, सद्गुरू और परमात्मा एक ही
हैं और उसकी अंतरात्मा भी. जून भी आजकल उसकी कविताओं में रूचि लेने लगे हैं.
प्रकृति का सौन्दर्य उन्हें भी लुभाने लगा है. हरी घास पर लेटने में उन्हें कोई डर
नहीं लगता..यह भी तो चमत्कार है !
चर्चामंच
पर उसकी दो कविताएँ आयी हैं. दो नये ब्लॉग पढ़े आज, इस दुनिया में परमात्मा के
भक्तों की कमी नहीं है, जो भी इस रास्ते पर चलता है उसे अनंत प्रेम मिल जाता है.
जून आज बैंगलोर गये हैं. अब तक तो नन्हे से भेंट हो गयी होगी. वह वहाँ फ़्लैट लेने
की सोच रहे हैं. आदमी जीवन भर जो कमाता है, ईंट-पत्थरों के मकान में लगा देता है.
उनके भविष्य में यह काम आयेगा, रिटायर्मेंट के बाद वे बैंगलोर में ही रहने वाले हैं.
भविष्य ही बतायेगा क्या होने वाला है, इन्सान तो योजनायें ही बनता है. टीवी पर
थाईलैंड में हो रही मुरारी बापू की कथा का सीधा प्रसारण आ रहा है. कल रात को फिर
एक अनोखा स्वप्न देखा. जैसे किसी ने उसे देह के बाहर कर दिया हो, आवेशित कर दिया
हो या पीछे से पकड़ लिया हो और हवा में उड़ने का अनुभव करा रहा हो. उसे लग रहा था कि
देह मृत है या हो जाएगी और वह पृथक है, पर कोई भय नहीं महसूस हो रहा था. बाद में
नींद खुल गयी पर तब भी कुछ प्रतिबिम्ब नेत्रों के सामने आते रहे. जागते हुए भी वे
स्वप्न देखते रहते हैं, वास्तव में वे कभी जगे ही नहीं, एक गहरी नींद में सोये हैं,
वे एक सम्मोहन का अनुभव कर रहे हैं और उसी कारण इतने दुःख हैं. जो जैसा है वैसा न
देखकर वे अपने मन को ही आरोपित कर देते हैं, मन जो अभिमान और दुःख का पोषक है. इस मोह
को तोडना ही साधक का उद्देश्य है.
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