कल टीवी पर
ए.राजा का महल देखा जो चेन्नई में स्थित है. कितनी शरम की बात है की देश का पैसा
राजनीतिज्ञ अपने ऐशोआराम के लिए इस तरह लुटाते हैं. आज सुबह दीदी से स्काइप पर बात
हुई, उन्हें बीहू का वीडियो मिल गया है. कल से एक नया विद्यार्थी पढ़ने आएगा,
वर्षों पहले उससे मिली थी, जब वह छोटा सा था और उसकी संगीत अध्यापिका ने उसे गोद
लिया था. कई वर्ष बाहर रहने के बाद वे लोग
दुबारा यहाँ आ गये हैं. वर्षा पर लिखी उसकी कविता पर कई टिप्पणियाँ आयी हैं. नन्हे
के एक तिब्बती मित्र ने जो एक बार चार सप्ताह के लिए यह रहने आया था, उसके ब्लॉग
को पढ़ना शुरू किया है. उसके लिए कविता लिखी थी उसने जब वह आया था. उसने बौद्ध धर्म
पर दो पुस्तकें भी भेजी थीं. कविता मन के वृक्ष पर खिला फूल है, जिसकी खुशबू सब ओर
फ़ैल जाती है यदि कोई लेना चाहे तो. स्वान्तः सुखाय लिखी गयी कविता भी यदि औरों को
सुख दे जाये तो इसमें कुछ भी गलत नहीं, हाँ, अहंकार से बचना चाहिए क्योंकि जो लिखा
गया है वह भी किसी ऐसे स्रोत से आ रहा है जो सबका है, कवि माध्यम होता है. सहज,
निर्दोष आनन्द का सृजन ही कवि का उद्देश्य है, हरेक का नहीं हो सकता क्योंकि जिसने
अभी भीतर के आनन्द को स्वयं ही नहीं पाया है तो वह उसे बांटेगा कैसे ? पिताजी का
मेल आया है, आखिर वे भी कम्प्यूटर का थोड़ा-बहुत इस्तेमाल करना सीख ही गये हैं. कल
गुड फ्राइडे है, उसे इसके बारे में भी जानकारी लेनी है, फिर कुछ लिखना भी है, उसने सोचा दोपहर को पढ़ेगी. लंच
में आज ‘कर्ड-राइस’ बनाये.
पिताजी
को कल साईकिल चलते समय चोट लग गयी. जून उन्हें लेकर अस्पताल गये हैं. माली की
साईकिल लेकर चलाने निकले थे, शुरू में ही गिर पड़े फिर भी बैठकर एक चक्कर लगा कर
आये और कहने लगे अपनी खुद की साईकिल खरीदेंगे. मानव वृद्ध हो जाता है पर इसे स्वीकारना
नहीं चाहता. अंतिम श्वास तक भी उसके भीतर की जिजीविषा विश्राम नहीं लेने देती. ‘जब
तक श्वास तब तक आस’..माँ इसके बिलकुल विपरीत हैं, वह कुछ ज्यादा ही विश्राम कर रही
हैं. उन बुजुर्ग आंटी को भी फिर से चोट लग गयी है. कल रात जब उनके बेटा-बहू सब पार्टी
में थे. वह टीवी देखते-देखते कुर्सी पर ही सो गयीं, वे जब लौटे तो उन्हें उठाकर
भोजन खिलाया और हाथ धोने जब बरामदे में गयीं तो गिर गयीं. नींद की दवा का असर रहा
होगा. वृद्धावस्था में कितना दुःख झेलना पड़ता है, ऋषि-मुनि ऐसे ही तो नहीं कह गये
हैं. कल नन्हे ने फोन पर बताया, उसके कालेज की एक मित्र की माँ का हाथ मिक्सर में कट
गया. जीवन कितना विचित्र है, यहाँ किसी भी पल कुछ भी घट सकता है.
आज सुबह
वे टहलने गये तो बातों का सिलसिला व्यर्थ ही चल पड़ा. सुबह-सुबह मन खाली होना चाहिए
पर...खैर..मन का असली रूप भी सामने आ गया. अभी भी अहंता और ममता सताते हैं. आत्मा
में रहने पर वे तत्क्षण विदा तो हो जाते हैं पर नुकसान तो हो ही चुका होता है. एक असमिया
परिचिता का फोन आया वे हिंदी में कविता पाठ करना चाहती हैं, उसमें कुछ मदद चाहिए,
उसने भी अभ्यास किया, याद तो हो गयी है फिर भी अपने साथ रखना जरूरी है, क्लब में काव्य
पाठ प्रतियोगिता है.
badiya ..
ReplyDeleteयही जीवन है
ReplyDeleteढिया डायरी के पन्ने...शानदार पोस्ट.
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
ReplyDeleteकविता जी, राकेश जी, सुमन जी तथा वन्दना जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDelete