दोपहर
के तीन बजे हैं, कुछ देर पूर्व चार सखियों से एक-एक कर फोन पर बात की. एक का स्वास्थ्य
ठीक नहीं है. एक की सासुमाँ को, गिर जाने से, सिर में थोड़ी चोट लग गयी है, उन्हें
अस्पताल जाना पड़ा. कल नन्हा आ रहा है, जून शाम को मिठाई बनायेंगे व गुझिया बनाने
में उसकी मदद करेंगे. उनके भीतर भी एक माँ है. कल रात एक विचित्र स्वप्न देखा, पर
देखते समय भी यह भास हो रहा था कि यह स्वप्न है. नन्हा एक काले-कलूटे बड़े से पशु
से लड़ रहा है फिर ऊपर से छलांग लगाता है, पता नहीं इस स्वप्न का क्या अर्थ है पर
उस समय यह भी समझ में आया कि उसे भयभीत नहीं करना है, व्यर्थ ही उपदेश नहीं देने
हैं. परमात्मा उनमें से हरेक के साथ हर पल है और हरेक को भीतर से जगा ही रहा है.
उन्हें स्वयं को सजग रखना है, बस अपने
भीतर के दीपक को जलाये रखना है, बुझने से रोकना है. वे यदि खुद को समझ पाए तो सबको
समझने में समर्थ होंगे. सद्गुरू, आत्मा और परमात्मा एक ही सत्ता के नाम हैं. मन से
परे जहाँ केवल मौन है, कोई साक्षी बनकर सब कुछ जान रहा है, वहाँ रहकर यदि वे जगत
को देखें तो सब कुछ खेल ही जान पड़ता है. वे दृश्य में उलझ जाते हैं तभी भीतर विषाद
का जन्म होता है. मन ही अँधेरा है, मन ही दृश्य है, मन ही बंधन है, वे दुधारी
तलवार की तरह हैं, द्विमुखी तीर की तरह हैं, चाहे तो साक्षी में रहें, चाहें तो
दृश्य में रहें. जीवन उन्हें एक अवसर दे रहा है महाजीवन को पाने का. भीतर अनंत
प्रेम है उसे जग में लुटाने का, भीतर अनंत शांति है, उसे जग में बहाने का और भीतर
अनंत आनंद है उसे जहाँ में बिखराने का, इसके अलावा जीवन का और कोई उद्देश्य हो भी
सकता है ? उनका जीवन ही उनका संदेश है, यह बापू ने कहा था और यही उसका भी अभिप्राय
है !
रात को बहुत मजेदार स्वप्न देखा. शायद हाथ के दबाव से श्वास
रुक रही थी. पहले देखा पानी में तैर कर वे शैवालों को पार करते हुए ब्रह्मपुत्र
नदी में जाते हैं. रास्ते में सुंदर उपवन भी थे. वापसी में नदी की तलहटी में रेत
पर सुंदर डिजाईन बने हुए थे. असमिया साड़ी के डिजाईन रंगीन रेत से बने थे, फिर क्या
हुआ कि शैवाल वस्त्र बन कर उसके तन पर लिपट गये और वह जल से बाहर आ गयी, फिर
आंतकवादी पीछे पड़ गये. वे कितने अलग-अलग तरीकों से बचाव की कोशिश करती है. एक
सब्जी वाले के ठेले से छोटे-छोटे भार उठाकर फेंकती है पर हाथ में जोर नहीं था. फिर
एक बैंडवाले को देखकर बोलती है, पुलिस..पुलिस, पर वह छोटे कद का बैंडवाला भी देखकर
आश्चर्य जाहिर करता है, उसे खुद ही हँसी आ जाती है और नींद खुल जाती है.
कल नन्हा अपने मित्र की मंगनी समारोह में शामिल होने गया
था. सुबह वे टहलने गये तो उसे लौटते देखा. जिस हालत में उसे देखा उसकी कभी कल्पना
नहीं की थी. इसलिये जैसी प्रतिक्रिया उन्होंने की वह स्वाभाविक ही है. अभी सुबह ही
है पर इस समय दोपहर जैसी धूप निकली है, उसका कमरा बंद है, शायद सो रहा होगा
क्योंकि उसकी आवाज का कोई जवाब नहीं दिया. वह कैमरा वहीं छोड़ आया था, उसके मित्र
ने भिजवा दिया है. सुबह वह एक ही बात को बार-बार बोल रहा था, जैसे जून के दफ्तर के
ड्राइवर को उसने बोलते सुना है. उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि वह पिछले
पांच वर्षों से कई बार इस हालत तक पहुंच चुका होगा. जून बहुत पहले क्लब में कभी-कभार लेते
रहे हैं पर इस तरह नहीं. शायद मित्रों के दबाव में वह स्वयं पर
नियन्त्रण नहीं रख पाया. उसके दादा-दादी, दोनों बुआ, फूफा, मामा, मासी, नानाजी
सबको कभी न कभी यह बात पता चल ही जाएगी तो सभी को दुःख होगा ही, जैसे उन्हें हो रहा
है. लेकिन वे उसे दोषी नहीं मान रहे हैं. जिन हालातों में वह विवश हुआ होगा और इस
रास्ते पर चला होगा, वे हालात ही जिम्मेदार हैं. उसे उनसे भी ढेरों शिकायतें रही
होंगी, हो सकता है अब भी हों, लेकिन उन्हें उससे कोई शिकायत नहीं हैं. उसकी सेहत
ठीक रहे न केवल शारीरिक, मानसिक व भावात्मक भी. वह समाज में अपना योगदान करे. देश,
समाज, परिवार तथा अपने आप के प्रति, अपनी जिम्मेदारियों को समझे. अपनी वास्तविक
क्षमता को जाने. स्वयं के सत्य स्वरूप को पहचाने, वह अपने आप को नष्ट न करे, उसे
बनाये, परमात्मा की उपस्थिति को पहचाने, उसे अपने जीवन का केंद्र बनाये. उसने एक
पत्र उसके नाम लिखा जिसमें बताया, वह स्वयं को पहचाने, आनन्द उसका स्वभाव है,
शांति, प्रेम, सुख, पवित्रता, ज्ञान और शक्ति उसका अपना आप है. वही वह है...तब उसे
आनन्द के लिए यात्रा करना, घूमने जाना, इसकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी. वह आनंदित होगा
इसलिये यात्रा पर जायेगा, वह खुश होगा इसलिये कुछ कार्य करेगा, यही सच्ची सफलता
है. पता नहीं उसकी ये बातें नन्हे को अच्छी लगेंगी या नहीं, पर इतना तो विश्वास है
कि वह अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से इनको समझ जायेगा.
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