Tuesday, November 15, 2016

सूरज और बादल


अप्रैल का अंतिम दिन ! देखते-देखते नये वर्ष के चार माह गुजर गये और गुजर गया उनके जीवन का का भी एक और हिस्सा. एक दिन सारी सांसें गुजर जाएँगी और वे आकाश में स्थित होकर देखेंगे अपने ही तन को निस्पंद ! उससे पहले ही यदि संसार को कुछ देना है तो दे देना चाहिए कुछ और गीत कुछ और कविताएँ ! ! मार्च माह की कविताओं में भी उसकी कविता सातवें पायदान पर आयी हुई, ‘पिता’ नामकी कविता अभी अगले तीन हफ्ते तक कहीं प्रकाशित नहीं करनी है. आज जून ऑफिस में ही लंच लेने वाले हैं. मुख्य अधिकारी का विदाई समारोह है. उन्होंने काफी कलात्मक भाषा में विदाई भाषण लिखा है. नन्हा पिछली बार एक किताब लाया था जिसमें साईं बाबा के किसी भक्त ने उनके साथ घटे अपने अनुभवों को लिखा है, आज कुछ देर पढ़ी.

पिछले दो दिन कुछ नहीं लिखा, गले में दर्द था परसों शाम से ही. आज काफी ठीक है, लेकिन नाक बंद है. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हुई है तभी जुकाम हुआ या फिर यह किसी कर्म का परिणाम है. यदि भीतर प्रश्न जिन्दा रहते हैं तो समय-समय पर नये विचार आते हैं. यदि समझा-बुझा कर मन को शांत कर दिया और भीतर तक पहुंचे नहीं तो मार्ग अवरुद्ध हो गया, उदासीन होकर बैठ जाने से रास्ता मिलता नहीं.

कल चार तारीख थी, बच्चों को पढ़ाते समय उसने तीन लिखी, उन्होंने भी नहीं बताया, जबकि वे स्कूल भी गये थे. सोये-सोये ही वे सारी उम्र गुजार देते हैं, आखिर कब होगा जागरण ? आज मौसम गर्म है. मई में यही स्वाभाविक ही है. गले में चुभन है सो चावल खाने का मन नहीं है. योग वशिष्ठ में पढ़ा कि जब भोजन पचता नहीं तब व्याधि होती है. तनाव होने से भोजन नहीं पचता. महीनों से भोजन के समय वातावरण बोझिल हो जाता है, माँ कुछ खाना नहीं चाहतीं तो कभी पिताजी झुंझला जाते हैं कभी जून. आत्मा है ऐसा भान हर समय बना नहीं रहता, रहे तो भी मन, बुद्धि, शरीर सब अपनी जगह हैं जो प्रकृति के अनुसार चलेंगे. आज उसे लग रहा है अवश्य ही साधना में कोई गहरी भूल हो रही है अभी तक परमात्मा की कृपा को पूर्ण रूप से अनुभव नहीं कर पायी है. अब भी लगता है कुछ नहीं जानती !

उस साधक की लिखी किताब पढ़कर काफी कुछ स्पष्ट होता जा रहा है, कितने सोये रहते हैं वे, आसक्ति, राग व द्वेष के शिकार होते हैं और सोचते हैं कि सब जानते हैं. अपने अज्ञान का ज्ञान होना ही वास्तव में ज्ञान की पहली सीढ़ी है. मन कैसा धुला-धुला सा लग रहा है, पर अभी भी कितनी परतें छुपी होंगी, दबी होंगी. सद्गुरू दूर रहकर भी शिष्य को सन्मार्ग पर लाने का कार्य करते रहते हैं. सद्गुरू का प्रेम अनंत है, वे उन्हें क्या प्रेम करेंगे, उनके पास एक बूंद भी नहीं जो है भी तो उसमें न जाने कितनी वासनाएं घुली-मिली हैं. परमात्मा को जो अर्पित होगा वह पावन होगा, पर परमात्मा कृपालु है, वह कोई भेद करना जनता ही नहीं, जो उसे पुकारे उसी पर कृपा लुटाता है !

तन स्वस्थ हो तो मन भी स्वस्थ रहता है. आज एक गर्मी भरा दिन है, बाहर धूप बहुत तेज है. चमचमाता हुआ सूर्य जैसे गुस्सा गया है, बादलों को चिढ़ा रहा है कि अब देखें वे उसे ढक के...उधर बादल भी जब मौका देखेंगे बदला लेगें ही. पिताजी बाहर बैठे हैं, अख़बार पढ़ चुके हैं, चुपचाप बैठे हैं, भीतर कमरे में अपनी कुर्सी पर माँ बैठी हैं जैसे उनकी दुनिया से बाकी दुनिया जुदा है, वैसे ही बाकी दुनिया से उनके बच्चों की दुनिया जुदा है. कल नन्हे को साईं बाबा की बात कही तो वह उन्हें जादूगर कह रहा था. भगवान से बड़ा कोई जादूगर है क्या ? परमात्मा की ओर जो ले जाये वह जादूगर कृष्ण भी तो था.. 


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