Thursday, December 26, 2013

गुलाबी मुसंडा


फिर वर्षा की रिमझिम ! कुछ देर पूर्व एक सखी से बात की उसका बुखार अभी उतरा नहीं है, आज चौथा दिन है, एक और सखी ने बताया कि उसके पति को भी viral fever हो गया था. तन को तोड़ कर रख देता है यह बुखार, चारों ओर फ्लू फैलने की खबर सुनकर कभी-कभी वहम भी होने लगता है. सुबह समय पर उठी, पढ़ाया, पर पाठ करने बैठी तो एक भी श्लोक ठीक से ग्रहण नहीं कर सकी. कुछ देर फिल्म देखी, ‘अंतरीन’ डिम्पल कपाडिया की बंगाली फिल्म, अच्छी थी. कल शाम वे बाजार गये नन्हे को जन्मदिन में मिली एक टीशर्ट का बड़ा साइज़ लेने, छोटा सा ही बाजार है यहाँ सो आसानी से बदल गयी.

इस समय वर्षा थमी है, हल्की धूप, हल्की ठंडी हवा में आज फिर मन ने एक वादा किया है और अब उसे निभाना है. ब्रह्म मुहूर्त में उठ गयी थी गुलमेहंदी के पौधों की लम्बी कतार में वर्षा या ओस की बूंदें मोती सी चमक रही थीं. एक दूसरी छात्रा को आज आना था, पर वह उठ ही नहीं पाई. कुछ देर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का लेख ‘आत्म निर्भरता’ पढ़ा, फिर ध्यान, पर मन स्थिर नहीं हुआ. अज पत्र लिखने हैं, कितने दिनों से कितने पत्र जवाब की प्रतीक्षा में हैं और उनके पीछे पत्र पाने वाले दिल भी. जून कल शाम अकेले टहलने गये, पर शाम को अकेले रहना उन दोनों को ही पसंद नहीं सो अब केवल सुबह ही पढ़ाएगी.

कल सुबह सिर्फ समय ही लिखा था, याद आया, एक फोन करना है, एक सखी दो-तीन बार फोन कर चुकी थी. उसे नैनी, माली और उस किताब के लिए उसकी सहायता चाहिए थी, अफ़सोस वह  किसी भी मामले में उसकी मदद नहीं कर पाई. सोचा फोन करके इतना तो बता दे कि उसने कोशिश की थी. उसने बताया, ससुर की तबियत ठीक नहीं है, भैया भाभी की बस का एक्सीडेंट हो गया था. समस्याएं कभी कभी एक साथ आकर खड़ी हो जाती हैं. फिर ग्यारह बज गये और उन्होंने फोन रखे. आज सुबह पड़ोसिन के यहाँ हारमोनियम पर अभ्यास करने गयी. कुछ देर बगीचे में काम किया, दोपहर को सिलाई की, पर लगता है लखनवी चिकन का कुरता ज्यादा ही टाइट कर लिया है. जून कल चार पत्रिकाएँ लाये थे, कुछ देर पढ़ीं, अभी सांध्य भ्रमण के लिए जाना है, नन्हे को पढ़ाना है, फिर रात्रि भोजन और एक दिन गुजर जायेगा, भला-भला सा एक दिन, इसी तरह करते-करते इतने साल गुजर गये, नन्हा बड़ा हो गया, वह थोड़ी समझदार हो गयी, जून ने गुस्सा करना छोड़ दिया...उनके पास पहले से ज्यादा सामान हो गया, पर हिसाब लगाने बैठें तो उनकी मुट्ठियों में क्या आयेगा... जिन्दगी एक व्यापर तो नहीं, गाँधी जी कहते हैं और गीता का भी यही उपदेश है. अपनी शक्तिनुसार कर्म करते चलो...फल की कामना मत करो, अंत में अपने पास कुछ भी नहीं रह जाना है.

आज इस वक्त सुबह के छह भी नहीं बजे हैं और उसने अपना मूड या कहें चित्तावस्था बिगाड़ ली है. सुखे-दुखे समेकृत्वा लाभा-लाभौ जया जयौ...यह पढने वाली वह भी छोटी-छोटी बातों से विचलित हो जाती है. कल शाम अपनी की एक गल्ती (सिलाई में) पर तथा नन्हे पर झुंझला उठी थी फिर उसी बातूनी सखी के उस अर्थहीन काम पर भी और आज सुबह-सुबह ही उस नई छात्रा के न आने पर, उसे पढ़ान उसे अच्छा लगा था, वह होशियार है थोड़ी सी लापरवाह है, उसका न आना अच्छा नहीं लगा, पर दुनिया में ऐसी कई बातें हैं जो अच्छी नहीं लगतीं या लगती हैं, सब पर तो किसी का वश नहीं है. फिर बेवजह मस्तिष्क की नसों को क्यों तनावग्रस्त करें. ध्यान करने बैठी तो वही खिंचा-खिंचा सा मस्तिष्क और ऐसे में पीठ में भी हल्का दर्द. शारीरिक लक्षणों का स्रोत तो मन ही है और यदि दिन की शुरुआत ही ऐसी हो तो...गुलाबी फूलों वाला मुसन्डा का पेड़ अभी भी मुरझाया हुआ है. उसको पानी दिया, आधा कप चाय पी, कुछ देर असमिया किताब व health पढ़ी. समाचारों में सुना K R Narayanan नये राष्ट्रपति चुने गये हैं और लालू प्रसाद यादव ने राष्ट्रीय जनता दल को संयुक्त मोर्चा में शामिल न करने का फैसला किया है. and now she is feeling better equipped to face the humdrum of life.

   


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