Thursday, December 12, 2013

साबरमती आश्रम-बापू की यादें



आज वे साबरमती आश्रम देखने गये, बापू की आवाज भी सुनी और अहमदाबाद में उनके जीवन की घटनाओं पर आधारित एक चित्र प्रदर्शनी भी देखी. बापू के तीन बन्दर दरवाजे पर ही स्वागत करते दिखाई दिए. उनका कमरा, खडाऊं, छड़ी, चश्मा व अन्य सामान भी रखे हुए हैं पर राष्ट्रपिता का स्मारक जैसा होना चाहिए वैसी हालत में नहीं रखा है. इससे पूर्व वे एक अन्य आश्रम में भी गये, वहाँ विशाल मंडप में कुछ लोग ध्यान कर रहे थे, प्रवचन एक बजे शुरू होना था. बाद में वे G-C. रोड गये. विशाल शो रूम और बड़ी बड़ी दुकानें थीं. यहाँ ट्रैफिक बहुत है, आँखों में प्रदूषण से जलन होने लगी थी. यहाँ मिलें भी बहुत हैं, स्थान-स्थान पर चिमनियाँ नजर आ रही थीं. नन्हे के लिए एक जींस खरीदी और वे वापस आ गये.

आज इतवार है, घर पर पाव भाजी का नाश्ता बना है, सभी ने स्नान कर लिया है, गर्मी यहाँ बहुत है, अभी उन्हें तीन दिन और यहाँ रहना है, शाम को छत पर टहलने जाते हैं तो चारों ओर रोशनियों की लम्बी कतारें दिखाई देती हैं. पास ही हवाई अड्डे से उड़ान भरते व उतरते हवाई जहाजों की रोशनियाँ भी उनमें शामिल होती हैं.

आज उसने एक गुजराती साड़ी ली, शाम को वे इण्डिया कालोनी के बाजार में उनकी नैनी के लिए साड़ी लेने गये थे, वहाँ एक पारंपरिक चित्रों से सजी सुंदर सूती साड़ी बहुत अच्छी लगी, जून ने तुरंत हामी भर दी, सामान ज्यादा होते जाने की शिकायत भी नहीं की, साड़ी का प्रिंट वाकई बहुत सुंदर है. राजस्थान के बाद गुजरात की साड़ी और उससे पहले उसने लखनऊ से एक साड़ी मंगवाई थी, इस बार गर्मियों के स्वागत के लिए वह तैयार है. कल शाम को जून बच्चों को पास में घुमाने भी ले गये रेत में स्कूटर फंस गया और बच्चे रेत में गिर गये, बड़ी बिटिया को घटना का विवरण देते हुए बड़ा मजा आ रहा था. बाद में छत पर जाकर पुच्छल तारा देखा, और भोजन के बाद बाहर टहलने गये, सडक पर रोशनियाँ ही रोशनियाँ थीं, मगर उनके पीछे छिपा है प्रदूषण का कड़वा सच. कल उन्हें अक्षर धाम जाना है, जो यहाँ से २० किमी की दूरी पर है. दिन भर इधर-उधर की बातों के बीच ब्रह्मकुमारी आश्रम से लायी वह किताब पना अच्छा लगता है, सरल शब्दों में मन में उठने वाले प्रश्नों का समाधान इस पुस्तक में मिल जाता है. जिन्दगी का सार मूल्यों का निर्वाह करने में है न कि नकली चकाचौन्ध के पीछे भागने में.

जून आधे घंटे में उन्हें कार से अक्षर धाम ले गये. मन्दिर एक विशाल प्रांगण में स्थित है वहाँ चारों ओर सुंदर बाग़-बगीचे, बच्चों के झूले आदि हैं. मन्दिर में श्री स्वामी नरायन जी भगवान की, जो गुजरात के एक सन्त थे, अनेक मूर्तियाँ हैं. मुख्य मूर्ति स्वर्ण के समान चमक रही थी. एक प्रदर्शनी भी थी. वहाँ से वे एक पार्क में गये, लौट कर भोजन किया. शाम को वह पास ही सब्जी लेने गयी, देखकर आश्चर्य हुआ कि वहाँ सभी महिलाएं ही सब्जी खरीद रही थीं, गुजरात में महिलाओं की स्थिति बहुत सशक्त है. कल उन्हें दिल्ली की ट्रेन पकडनी है.

आज बहुत दिनों बाद कुछ लिख रही है. पिछले हफ्ते वे अहमदाबाद में थे, उसके बाद दिल्ली की वापसी यात्रा, फिर देहरादून, घर, वापस गोहाटी, पहली बार उन्होंने इतनी सारी जगहें एक साथ देखीं. कल सुबह ही वे घर लौटे हैं, पड़ोसिन ने नाश्ते पर बुलाया, और एक सखी ने दोपहर को खाने पर, दूसरी सखी ने रात्रि के भोजन पर आमंत्रित किया तो इस बार साथ आयी भांजी को भी सुखद आश्चर्य हुआ. अच्छा ल्ग्यता है यह सोचकर कि वे अकेले नहीं हैं. इस वक्त दोपहर के तीन बजे हैं, बच्चे टीवी देख रहे हैं. उसने सोचा, भांजी को यहाँ उदासी तो महसूस नहीं हो रही है, पहली बार घर से दूर रहने पर भी वह सामान्य है, एक तरह से अच्छा ही है, सबसे जुड़े रहकर भी सबसे अलग, विरक्त ! घर में सफाई का बहुत काम शेष है, जो धीरे-धीरे ही पूरा होगा. आज सुबह अपनी पुरानी दिनचर्या पर लौटने का प्रयास किया, हफ्तों बाद आसन ठीक से नहीं कर पायी. यात्रा की थोड़ी सी थकान शायद अभी तक शेष है.




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