कल रात फिर पानी बरसता
रहा पर इस वक्त थमा हुआ है. सुबह ही फोन
करके माँ-पिता को अपनी यात्रा के बारे में बता दिया, वे प्रसन्न हुए. कल शाम क्लब
से वापस आकर वे अपने पड़ोसी के यहाँ गये उन्होंने नया फर्नीचर लिया था, मेज बहुत
सुंदर और भारी थी. वह ट्रेन में पढ़ने के लिए अपने साथ जेन ऑस्टेन की कोई किताब ले
जाना चाहती थी पर नहीं मिली, एम. आर. आनन्द की The Big Heart लायी है कल. seven
summers अब खत्म होने वाली है.
उसकी सखी ने पहले कल सुबह के नाश्ते के लिए फिर रात
के खाने के लिए आमंत्रित किया, उसने मना कर दिया फिर उसके जोर देने पर आज रात भोजन
साथ-साथ खाने के लिए राजी हो गयी. वह सब्जियां बनाकर लाएगी उसे रोटियां बनानी हैं.
अब जून को पता नहीं कैसा लगे क्योंकि वे लोग आठ बजे के बाद ही आएंगे. खैर, दोस्ती
की खातिर थोड़ी असुविधा तो सहनी ही पड़ेगी दोनों परिवारों को ही. सुबह जल्दी ही आँख खुल
गयी और उठने से पहले ही जून से थोड़ी चर्चा भी हो गयी, वह उन्हें अपनी बात समझा
नहीं पायी और वह अपने पुराने ख्यालात वाले मन को लिए रहे कि यात्रा में पति-पत्नी
को एक दूरी बनाये रखनी चाहिए. वे एक अन्य परिवार के साथ राजस्थान घूमने जा रहे हैं,
साथ-साथ यह यात्रा उन तीनों को एक-दूसरे के करीब भी तो लाएगी. इंसानी रिश्ते सही
माहौल, सही अपनाइयत पाकर ही पनपते हैं, वे एक समूह में होंगे फिर भी एक इकाई तो
रहेंगे. उन लोगों को यानि उस परिवार को जानने का मौका भी मिलेगा जरा और करीब से.
नन्हा आजकल कहानी की किताबों में व्यस्त रहता है, वह घर में रहते हुए भी इतना शांत
रहता है कि उसकी उपस्थिति का पता नहीं चलता.
राजमहल होटल गुवाहाटी- आज सुबह सात बजकर दस मिनट पर उनकी बस चली और ठीक
बारह घंटे बाद गोहाटी पहुंच गयी. यात्रा अच्छी रही सिवाय रास्ते में देख तीन
दुर्घटनाओं के दृश्यों के तथा अंतिम एक-दो घंटों के जब बस शहर में प्रवेश कर रही
थी. हवा में इतना प्रदूषण था कि साँस लेने में दिक्कत होने लगी थी, घर की
साफ-सुथरी हवा तब याद आ रही थी. दोपहर का खाना उन्होंने रास्ते में पड़ने वाले होटल
wild grass में खाया. नन्हा बहुत खुश है बस में वह बोर हो रहा था. उसे थकन का जरा
भी अनुभव नहीं हो रहा है, जबकि वह थक गयी है. जून भी बहुत उत्साहित नहीं लग रहे
हैं. सुबह साढ़े चार बजे उन्हें उठना है और छह बजे की ट्रेन से दिल्ली जाना है.
नीलम होटल जयपुर-सुबह चार बजे ही वे उठ गये और छह बजे राजधानी ने प्लेटफार्म
छोड़ दिया. वे चार परिवार थे सो यात्रा आराम से गुजरी. समय समय पर चाय नाश्ता व
खाना खाते तथा बातें करते-करते. अगले दिन सुबह दस बजे दिल्ली पहुंच गये, स्टेशन पर
उतरते ही ठंड लगी, स्वेटर्स तो जून ने गोहाटी से ही वापस भिजवा दिए थे, लेकिन थोड़ी
ही देर में तन उस ठंड का अभ्यस्त होगया. पहले वे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन गये
पर जयपुर के लिये ट्रेन शाम पांच बजे से पहले नहीं थी सो वापस बीकानेर हाउस गये
जहाँ से बस मिल गयी रास्ते में Midway में लंच लिया. जो बहरोड़ में एक बहुत अच्छा
स्टॉप था, उन्होंने वहाँ कुछ ज्यादा ही समय
लगा दिया, बस के ड्राइवर को उनके लिए देर तक बस रोकनी पड़ी. दिल्ली से जयपुर का
रास्ता सुंदर था. बस स्टैंड से कुछ दूरी पर उनका यह होटल है. नहा धोकर रात के खाने
के लिए निकले तो एक मारवाड़ी भोजनालय में चले गये वहाँ बेहद मिर्च-मसाले वाला खाना
मिला, कोई भी ढंग से नहीं खा सका, स्वाद ठीक करने के लिए दही चीनी माँगनी पड़ी. सोने
में बहुत देर होग यी, वे थके हुए भी थे, सो बहुत अच्छी नींद आई.
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