सुबह के नौ बजे हैं, नाश्ता लेकर वह होटल के अपने कमरे में आ गयी है., जून नन्हे
को लेकर ‘हेयर कट’ कराने गये हैं, आज दोपहर को उन्हें माउंट आबू के लिए
प्रस्थान करना है. बस की यात्रा है और जोधपुर में बस बदलनी भी होगी जो कल सुबह चार
बजे गन्तव्य पर पहुंचा भी देगी. कल शाम उन्होंने स्वेटर्स भी खरीदे, नन्हे की
स्कूल ड्रेस के, माउन्ट आबू में ठंड भी होगी. रात्रि ने सारी थका न को समेट कर मन
को ताजा कर दिया है, जो उत्साह से भरा है यह सोचकर कि माउन्ट आबू में क्या-क्या
देखने को मिलेगा.
माउन्ट आबू-होटल राणा प्रताप सुबह के ११.४० हुये हैं. –
आज उसे घर की बहुत याद आ रही है, कल दोपहर दो बजे उनकी बस जैसलमेर से जोधपुर के
लिए चली थी, मार्ग में कई सुंदर मोर देखे जो सड़क के किनारे तक आ जाते थे. किन्तु RTDC
की बस में सफर करने के बाद प्राइवेट बस का अनुभव अच्छा नहीं रहा. पहली बस से उतर
कर प्रदूषण भरी सडकों पर चलकर वे काफी हाउस गये, दोपहर को उसने केवल ककड़ी खायी थी,
खाली पेट काफी पी ली, शायद उसी का असर रहा हो, रात दो बजे जोधपुर से माउन्ट आबू
आने वाली बस में उसकी तबियत बहुत बिगड़ गयी थी, अभी तक उसका असर बाकी है, बाहर का
खाना, आराम की कमी, धूल-धुआं और बस के यात्रियों की हुड़दंग बाजी सभी का मिला-जुला
असर रहा होगा. खैर, जो भी कारण रहा हो, असुविधा सभी को हुई है. जून उसे बाहर ले
गये और कुछ देर बाद तबियत संभल गयी. सुबह बस स्टैंड के पास ही में एक होटल मिल गया
और आते ही वे सब सो गये. सारी रात शोर के कारण वह एक मिनट भी नहीं सो पायी थी. उसने
सोचा, बस की यात्रा में स्वस्थ रहे ऐसा प्रयास करना है, स्वस्थ मन भी स्वस्थ तन
में निवास करता है, इतने सारे मन्दिरों को देखने के बाद मन में पवित्र भाव जागृत
होने चाहिए, ईश्वर उसकी सहायता करेंगे जैसे कल रात की और उनकी यात्रा यूँ ही जारी
रहेगी.
विश्राम करने के बाद कल दोपहर वे नक्की ताल
व सूर्यास्त देखने निकले. झील बहुत बड़ी है और चारों ओर से चट्टानों से घिरी है,
बीच-बीच में चट्टानें थीं जिनपर पेड़ उगे थे, एक किनारे पर टोड की शक्ल की एक
चट्टान उभरी हुई थी. उन्होंने नौका यात्रा भी की, पर तन व मन दोनों स्वस्थ न हों
तो दृश्य कितने भी सुन्दर क्यों न हों मन पर वह असर नहीं छोड़ पाते. वहाँ से वे जीप
द्वारा हनीमून पॉइंट गये, घाटी के दृश्य ऐसे लग रहे थे जैसे हवाई जहाज से देख रहे
हों. एक टेलिस्कोप से नन्हे ने दूर नीचे एक मन्दिर व एक गाँव देखा. sunset point
पर बहुत से लोगों के बैठने की जगह थी, एक घंटा इंतजार करने के बाद जब सूर्यास्त का
समय आया तो बादलों के पीछे छिप गया वह, और तीसरी बार भी वे सूर्यास्त नहीं देख
पाए. वापस आकर होटल में खाना मंगाया पर खाना बेहद मिर्च-मसाले वाला था. नन्हे की
भी उसे फ़िक्र है, घर पर सादा भोजन खाने का उसे अभ्यास है.
आज माउन्ट आबू में उनका अंतिम व दूसरा दिन है, कल
से बसों की हड़ताल शुरू होने वाली है इसलिए उन्हें आज ही निकलना है. शाम आठ बजे तक
वे उदयपुर पहुंच जायेंगे.
उदयपुर – अप्रैल महीने का प्रथम दिन, यहाँ मौसम काफी गर्म है. माउन्ट
आबू में कल सुबह वे प्रजापति ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय देखने
गये, वहाँ दस मिनट का एक लेजर शो देखा तथा दस मिनट का एक सम्भाषण भी सुना. उसने एक
पुस्तक भी खरीदी. उनके संग्रहालय में सुंदर विशाल मूर्तियाँ थीं, और केंद्र में एक
विशाल हॉल था जिसमें ३५०० व्यक्तियों के बैठने की सुविधा थी, पर जिसमें एक भी
स्तम्भ नहीं था. पूरा वातावरण स्वच्छ, पवित्र व सुंदर था, गमले फूलों से भरे हुए थे.
यहाँ एक शांति पार्क भी है जो बाहर से देखा. उसके स्वास्थ्य पर भी इन सभी का अच्छा
असर पड़ा. इसके बाद वे अर्बुदा देवी का मन्दिर देखने गये जहाँ ३३८ सीढ़ियाँ
चढनी थीं, मन्दिर एक गुफा में था, दोनों तरफ विशाल चट्टानें और बीच में मार्बल का
फर्श, यह अन्य मन्दिरों से अलग लगा. तत्पश्चात वे गुरु शिखर देखने गये जहाँ
१८० सीढ़ियाँ चढनी पड़ीं, आधे रस्ते में वे
सब थक चुके थे सो वापस लौट आये. लौटकर अचलगढ़ गये गये जहाँ भगवान शिव के
दाहिने पैर के अंगूठे के नाख़ून की पूजा की जाती है. मन्दिर के बाहर नंदी की विशाल
प्रतिमा थी, जिसमें अन्य धातुओं के आलावा ८०० किलो स्वर्ण का प्रयोग भी हुआ है.
उनका अंतिम पड़ाव था देलवाड़ा के पांच मन्दिर, जो पत्थर पर महीन काम के लिए
विश्व विख्यात हैं. मुख्य मन्दिर वस्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाइयों ने बनवाया है,
पाँचों मन्दिर बहुत सुंदर हैं. फोटो खींचना वर्जित है, उन्होंने एक गाइड खरीदी
जिसमें सजीव मूर्तियों के चित्र हैं. मन्दिर देखने के बाद वे बस स्टैंड आ गये जहाँ
से उदयपुर आने के लिए बस पकड़ी और रात सवा आठ बजे यहाँ पहुंच गये.
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