अपनी पुरानी जगह पर (बगीचे में खुलने वाली बैठक की खिड़की के पास वाली कुर्सी पर)
बैठकर आज हफ्तों बाद डायरी खोली है, पिछले तीन-चार दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं
चला. शनिवार को वे तिनसुकिया गये थे, शुक्र को भी छुट्टी थी, नन्ही मेहमान को यहाँ
के मार्केट ले गये थे. इतवार को उसे OCS दिखाया, नाहरकटिया भी ले गये. चारों तरफ सड़कों
की हालत बहुत बुरी हो गयी है, पहले सी खूबसूरती दिखाई नहीं देती. कल क्लब गये, छत
से सारा क्लब दिखाई देता है, उसने भी पहली बार देखा. भांजी ने दो-तीन उपन्यास खत्म
कर दिए हैं और अब रुमाल बना रही है, उसे अकेले बैठकर चुपचाप काम करना पसंद हैं. इस
मामले में वह उसकी तरह है. seven years in Tibet by Heinrich Harrer उसने ट्रेन में
खत्म की थी, रोचक किताब है, कल लाइब्रेरी से चार किताबें और लायी है.
आज घर पूरी तरह साफ लग रहा है. अभी आलमारियां
सहेजनी शेष हैं, पर वह बाद में ही करेगी. कल उसकी पड़ोसिन ने पुनः पूछा, लेडीज क्लब
के कार्यक्रम में भाग लेने का विचार है या नहीं, सच बात तो यह है कि जो गाना
उन्होंने कोरस के लिए चुना है, उसे जरा भी पसंद नहीं है, पर लोकतंत्र में बहुमत की
विजय होती है, अब सबने मिलकर पसंद किया है तो साथ खड़ा होना ही पड़ेगा. नन्हे का सभी
विषयों का गृहकार्य अभी तक पूरा नहीं हुआ है, कल से उसने नई कक्षा में जाना शुरू
किया है. कल वह भी हिंदी कक्षा के लिए गयी थी.
क्यों बेजार होने पर कलम का सहारा लेता है उसका मन,
मन की पीड़ा हो या तन का दर्द, जैसे की सिर का दर्द तब भी लगता है ऐसा कुछ पन्नों
पर उकरेगा कि...सारा दर्द भी बह जायेगा पर...ऐसा होता कहां है, कुछ पल के लिए
ध्यान जरुर बंट जाता है और तब लगता है मुक्ति का क्षण करीब ही है. नन्हे का
गृहकार्य कल रात साढ़े दस बजे तक चला. आज उसे ‘हिंदी समाचार’ पढ़ने हैं और कल
English में एक स्पीच, उसे सबके सामने बोलने में ज्यादा झिझक नहीं होती.
कल नन्ही मेहमान को वापस जाना है, इतने दिन कितनी
जल्दी बीत गये, परसों से दोपहर को उसकी कमी खलेगी, जब वे दोनों टीवी देखते हुए ‘पारले
जी’ बिस्किटस् के साथ चाय पीते थे. कल शाम
को वही सहयात्री मित्र परिवार मिलने आया, इतने दिनों बाद मिलकर बहुत खुशी हुई, कल
उन्होंने अपनी कुछ घरेलू बातें भी बतायीं, राजस्थान की यात्रा में उनसे दिन-रात का
साथ था, निकटता स्वाभाविक है. उनकी एल्बम से कुछ फोटो जो जून ने नहीं खींचें थे,
बनवाने हैं. उसने आखिर एक साड़ी में फाल लगाने का कार्य भी खत्म कर लिया है, यह
सोचकर कि अपने हाथ से जो काम कर सकें उसे दूसरों पर नहीं डालना चाहिए. पिछले दिनों
वापस आकर एक बार छोटे भाई से बात हुई थी, काफी अरसे से बीमार चल रहे छोटे फूफा जी
का देहांत हो गया है, बुआ से मिले कई वर्ष हो गये हैं, इतना बड़ा आघात वह कैसे सह
पाएंगी, ईश्वर ही उनकी सहायता करेगा. आज भी एक मृत्यु का समाचार मिला है, एक
डॉक्टर जिनको ब्रेन कैंसर था, जिनसे पिछले वर्ष इसी महीने फोन पर बात हुई थी, जो
अपनी नैनी के लिए चिंतित थे, उनकी कल स्थानीय अस्पताल में मृत्यु हो गयी. उनकी
तकलीफों का अंत इसी में था. वे खुशनसीब हैं कि उन्हें ऐसी कोई तकलीफ नहीं है जिससे
मुक्ति मृत्यु में ही नसीब होती हो.
फिर कुछ दिन का अन्तराल, रोज शाम को उसे कोरस के रिहर्सल
के लिए जाना होता था, कल उनकी मीटिंग हो गयी, लेडीज क्लब की मासिक सभा जो इस बार
उनके एरिया की तरफ से थी, पहली बार उसने कुछ कविताएँ पढ़ीं, कइयों ने तारीफ की,
अच्छा लगा अपने पाठकों को स्वयं सुनाने का मौका मिला, पर उसे ज्यादा वक्त देना
चाहिए, कल ढूँढने बैठी तो कोई अच्छी कविता मिल ही नहीं रही थी. परसों दो मित्रों के
यहाँ जाना था, एक के यहाँ नॉनवेज खाने की गंध आ रही थी, दूसरे के यहाँ शेष मेहमान
इतनी देर से आये कि तब तक भूख लग कर समाप्त ही हो गयी थी, बचपन में सुनी दादी के
एक बात याद आई, घर से खाकर जाओ तभी बाहर मिलता है.
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