Wednesday, December 18, 2013

कैंसर का साया


आज का दिन वाकई मनहूस निकला, जून ने दोपहर को दफ्तर जाकर फोन किया कि एक हिला देने वाली खबर है, एक युवा अधिकारी, जो उनके परिचित थे, की मृत्यु हो गयी. सुनकर कैसा अजीब सा लगा और तब से मन में बार-बार वही ख्याल आ रहा है, एक हँसता-खेलता घर उजड़ गया...उनकी पत्नी और छोटा सा पुत्र अकेले हो गये. जीवन का संगीत ही जैसे उनके लिए रूठ गया होगा. उस लड़की का चेहरा याद आते ही मन में एक कचोट सी उठती है, ईश्वर उसे हिम्मत दे..इतनी कम उम्र में इतने लम्बे सफर पर निकल गये हैं जिसके पति जहां से वापस आना कठिन ही नहीं असम्भव है, कैंसर मृत्यु का दूसरा नाम ही है, उस दिन पिछले शनिवार को ही तो किसी मित्र ने कहा कि बीस-पच्चीस दिन पहले मुँह से रक्त आया था, चिकित्सकों ने मद्रास(चेन्नई) जाने के लिए कहा है, इतवार को वे चले गये. तब किसी ने मामले को इतनी गम्भीरता से नहीं लिया अभी शुक्रवार को ही पता चला आपरेशन भी हो गया है, कल शाम ही उन्होंने क्लब में उनके किसी मित्र से पूछा था, वे लोग कब वापस आ रहे हैं..  

कल बहुत दिनों के बाद एक सखी के साथ गेस्ट हाउस तक टहलने गयी, विधवा पत्नी की बातें करके वे दोनों ही उदास थे, वह आगे क्या करेगी, बच्चे पर कितना असर होगा, वापसी में उसने उसे घर आने के लिए कहा पर हमेशा की तरह उसका जवाब था, मन होगा तो आएंगे..और मन कहाँ कभी होता है. खैर.. ईश्वर उनकी भी रक्षा करे जिनका मन अपने वश में है और उनका भी जो मन के वश में हैं.

सुबह के साढ़े आठ बजे हैं, आज धूप तेज है, नया स्वीपर सफाई तो कर रहा है पर इसे ढंग से झाड़ू लगाना भी नहीं आता है, क्या किया जा सकता है सिवाय इसके कि खुद ही थोड़ी बहुत सफाई कर ली जाये, यह इतनी निराशा भरी बातें क्यों कर रही है वह आज, जबकि सुबह जल्दी उठी थी, जून की पसंद का नाश्ता बनाया, ध्यान नहीं हुआ क्यों की एकांत नहीं है अभी. कल रात्रि रसोईघर की खिड़की खुली रह गयी, बिल्ली मौसी दही जूठा कर गयी, अब जून को फिर से जा मन के लिए दही लानी होगी, दही पुल्लिंग है या स्त्रीलिंग ? कल शाम नैनी की बड़ी बेटी को देखा, जिसे भगा कर पिछले साल ही तो विवाह किया था एक व्यक्ति ने, उसकी गोद में स्वस्थ व सुंदर बच्ची थी, कुछ देने का मन हुआ पर..उसकी सखी की छोटी बहन की शादी में भी कुछ देना चाहिए लेकिन...यह पर और लेकिन ही तो....

एक बार किसी पत्रिका में पढ़ा था कि आपके इर्द-गिर्द कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका असर आपके मूड आपके विचारों पर पड़ता है और वह किसी हद तक खतरनाक होता है, वे लोग आपको सम्मोहित कर देते हैं और ज्यादा वक्त आपका उनके बारे में सोचते या उनके कामों में ही गुजरता है, शायद उसके साथ ऐसा ही होता है, दिल पर एक शख्सियत इतनी हावी हो जाती है कि... लिखना शुरू करते ही पहला ख्याल उसी का होता है. it is not a good sign. आज मौसम कल की तुलना में काफी अच्छा है, बदली है, नन्हा कम्प्यूटर क्लास गया है, आज भी ध्यान में मन के उस स्तर तक नहीं पहुंच पाई जहां सब कुछ शांत हो जाता हैं उन पहले दिनों में सहज ही कर  पाती थी और उसका अच्छा असर भी पड़ता था दिन भर के कामों पर. लेकिन पुस्तक में स्पष्ट कहा है किसी अपेक्षा को लेकर ध्यान करने से लाभ नहीं होगा. आज ज्ञान योग पर अध्याय पढ़ा, ‘मैं कौन हूँ’ इस की मीमांसा करने को कहा है, वह क्या मात्र एक शरीर है, या एक मन, या बुद्धि, या उससे भी परे कुछ... उसका व्यक्त्तित्व बचपन से आजतक कितनी सच्ची-झूठी परतों से ढका हुआ है, बचपन में अपने को शेली की नजरों में ऊंचा उठाने के लिए बोला झूठ, लेकिन मासूमियत इतनी की घर में आकर सबको बता दिया पर वे हँसे और मन ने मान लिया कि दूसरों की नजरों में खुद को उठाने के लिये झूठ बोलना गलत नहीं है.






No comments:

Post a Comment