जैसलमेर, सरोज पैलेस – कल सुबह दस बजे वे दर्शनीय स्थान देखने निकले थे. सर्वप्रथम जोधपुर का किला
देखने गये, जो लगभग ५०० वर्ष पुराना है, शानदार किले की दीवारों, छतों और बड़े-बड़े
दालानों में सुंदर काम किया गया है. तोपें, गुम्बद और छतरियां दर्शनीय हैं, किले
की विशालता का अनुमान उसका पूरे शहर से दिखाई दे सकने से लगाया जा सकता है. किले
की छत से पुराना जोधपुर शहर नीले सफेद मकानों से बहुत सुंदर लग रहा था. संग्रहालय
में घोड़े, पालकियां और हथियार थे, पगड़ियाँ, संगीत यंत्र, अनूठी पेंटिग्स, और
पुराने ताले सभी कुछ देखने योग्य था. बाद में वे जसवंत तड़ा देखने गये जो
सफेद संगमरमर का बना है, उमेद पैलस में १९४३ में बना संग्रहालय है, जिसमें
घड़ियों व तस्वीरों का विशाल संग्रह है. आधे हिस्से को पांच सितारा होटल में बदल
दिया गया है. जोधपुर के राजा की ३८वीं पीढ़ी अब भी वहाँ रहती है. शाम को वे नेहरु
उद्यान देखने गये और रात ११ बजे की ट्रेन से चलकर वे सुबह सवा छह बजे जैसलमर पहुंच गये, कल जोधपुर में गर्मी बहुत थी. आज
यहाँ मौसम अच्छा है, बदली बनी हुई है, सो गर्मी कम है. आज वे रेतीले मैदान देखने
जायेंगे.
आज दिन भर मौसम मेहरबान रहा, सो वे राजस्थान की उस
गर्मी से बच गये जिसका जिक्र कई बार सुना था. होटल हवादार है और स्वच्छ भी. शाम
चार बजे वे सैम सैंड ड्युन्स देखने जीप में रवाना हुए. रास्ते में लौद्रवा
मन्दिर देखा जो एक हजार साल पुराने मन्दिर का जीर्णोद्धार करके बनाया गया है.
रानी मूमल की कथा यहाँ से जुडी है. उससे पहले अमर सागर में एक जैन मन्दिर
देखा जिसका जाली का काम अनोखा है. आज भी हमारे देश में ऐसे अद्भुत कारीगर हैं जो
पत्थर में जान डाल सकते हैं. आगे जाकर एक उजड़ा हुआ गाँव मिला जहाँ के निवासी
पालीवाल राजा के डर से सदियों पूर्व रातों-रात गाँव छोड़कर पलायन कर गये थे. यहाँ
से ४५ किमी दूर रेतीले मैदान शुरू हो गये, जहाँ उन्होंने ऊंट की सवारी भी की. रेत
के सुंदर ऊँचे-नीचे पहाड़ों पर जो हवा से बनते बिगड़ते थे ऊंट पर सवार होकर जाना एक
अनोखा अनुभव था. हवा से रेत पर लहरें पैदा हो रही थीं, और नदियों के किनारे देखी
चांदी सी रेत के बजाय यहाँ सुनहरी रेत थी. तभी इस स्थान को ( पूरे जैसलमेर में
पीले पत्थर के मकान बने हैं ) गोल्डेन लैंड कहते हैं. रास्ते में विदेशी
यात्री भी दिखे जो ऊंट पर सवारी करते हैं और तम्बुओं में रहते हैं.
जैसलमेर में आज उनकी दूसरी शाम है. कुछ देर पूर्व
ही वे sunset point से आये हैं. बादलों के कारण सूर्यास्त तो नहीं देख सके
पर उस जगह से किले का दृश्य बहुत भव्य प्रतीत हो रहा था. वे गजरूप सागर
नामक एक स्थान देखने गये जहाँ देवी का एक मन्दिर है. बड़ा बाग़ में कई
छतरियां देखीं जो अब टूटने के कगार पर हैं. सुबह किला देखने गये थे, जो
यहाँ से निकट ही है. किले के प्रथम द्वार पर एक गाइड मिल गया जिसने १२वीं शताब्दी
में बने राजा जैसल के, भारत के दूसरे सबसे बड़े किले के बारे में कई जानकारियां
दीं. मन्दिर में बने सात जैन मन्दिरों में पत्थर पर बनी मूर्तियाँ तथा अन्य
कलाकृतियाँ दर्शनीय हैं. किले में लगभग ४००० हजार लोग रहते हैं. काफी बड़ा भाग टूट
गया है किन्तु जो भी शेष है, भव्य है. वहाँ से निकल कर वे गदीसर झील देखने
गये, जहाँ एक कृत्रिम झील में राजा के निवास के लिए एक छोटा सा कमरा है. आस-पास कई
बुर्ज हैं और द्वार पर सत्य नारायण का एक मन्दिर है, एक संग्रहालय भी था पर वे
बहुत थक गये थे सो नहीं देखा. आटोरिक्शा करके पटवां हवेली गये जो एक सेठ ने
अपने पांच बेटों के लिए बनवाई थी. हवेली के बाहर एक साढ़े चार फीट लम्बी मूंछ वाले
आदमी के साथ बच्चों ने तस्वीर खिंचवायीं. नथमल हवेली बाहर से देखी और बाजार
होते हुए वापस आ गये. कुछ और खरीदारी भी की. उसने नीले हरे रंग का एक गाउन खरीदा
और बड़ी बहन के लिए एक वाल हैंगिंग . सामान बढ़ता ही जा रहा है और जून की झुंझलाहट
भी. अभी उन्हें दो हफ्ते और सफर में रहना है.
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