आज भी मौसम मेहरबान
है, उनके उस महान स्वीपर ने आज कुछ ढंग से सफाई की है, नैनी ने किचन में रैक्स साफ
की, उसका काम सुपरविजन का है. आज शाम को एक मित्र परिवार यात्रा पर जा रहा है,
जाने से पहले यहाँ आएंगे, भोजन के लिए और फिर जून उन्हें विदा करने बस स्टैंड भी
जायेंगे, ऐसी परम्परा सी बन गयी है, जो वे सदा निभाते हैं अन्यों की तरह सुविधा का
ख्याल रखकर नहीं. खैर, उसे अपने मन में किसी प्रकार का क्षोभ, झुंझलाहट देखकर
आश्चर्य क्यों नहीं होता, इस बात का दुःख है. बेचैन है यह देखकर बेचैनी भी तो होनी
चाहिये न, अपनी आदत ही बना ली है परेशान होने की और...फिर इन बातों पर बजाय नाराज
होने के मुस्कुराने की, यानि मर्ज हद से आगे बढ़ चुका है.
आज जून का दफ्तर बंद है, अल्फ़ा ने बंद कॉल किया है
बारह घंटों का. सुबह न ही कोई पैदल न साइकिल पर जाता दिखाई दिया. आज यहाँ
प्रधानमन्त्री आ रहे हैं, उनके स्वागत का यह तरीका अजीब है. डिब्रूगढ़ तक रेलवे
लाइन ब्रॉड गेज हो गयी है, उसी का उद्घाटन करेंगे, तथा उत्तर भारत के अन्य
प्रदेशों में भी जायेंगे. देवेगौडा जी भी आये थे, ६००० करोड़ रुपयों की योजनायें
शुरू करने का आश्वासन देकर गये थे, पता नहीं कितनों में काम शुरू हुआ भी है या
नहीं..इन राजनीतिज्ञों पर भरोसा करना बेहद मुश्किल है. कल शाम उसने वर्षों पूर्व
मंगनी के बाद दोनों के लिखे कुछ पत्र पढ़े, आनन्द आया, मन फूल सा हल्का हो गया,
जिन्दगी के तनाव भरे क्षणों में ऐसे पत्र रहबर का काम करते हैं. प्रेम में सराबोर
ऐसे मधुर पत्र...कि पढ़ने के बाद घंटों मन एक खुमारी में डूबा रहा, तब मन कितना
विश्वासपूर्ण था भविष्य के प्रति और वे सारी बातें जो उन्होंने तब सोची थीं सच हुई
हैं. कल इतवार था, इतवार की तरह ही बिताया, सुबह से दोपहर तक स्नान, सफाई, लंच
नन्हे की पसंद का था, जून कस्टर्ड के लिए tinned फ्रूट्स भी लाये थे. नन्हे को रोज
पांच नये शब्द सिखाना भी शुरू किया है कल से.
वर्षा का एक दिन ! कल रात्रि आये तूफान से बंगलादेश
में जान-माल का काफी नुकसान हुआ, उसी का असर है कि यहाँ भी कल से लगातार वर्षा हो
रही है. सुबह पौने छह बजे नींद खुली एक स्वप्न से.. जिसमें देर शाम तक वह घर से
बाहर है एक ऐसी गली में जहां मार-पिटाई रोज का मंजर है. एक बाबा जी भी कुछ दूर पर
रहते हैं, पर लगता है उन्हें अपने शिष्यों से ही फुर्सत नहीं मिलती. नाश्ते में
उसने आज परांठे बनाये पर उसका असर अभी तक है, जून को भी शायद ऐसा लग रहा हो. नैनी
की शक्ल देखकर लग रहा था, जैसे उसके पेट में दर्द है, और स्वीपर का काम तो वैसे ही
माशा अल्लाह ही, न बाहर ड्राइववे पर झाड़ू लगाया है न भीतर कारपेट पर, बाहर तो खैर अब
हवा और पानी ही सफाई करेंगे, भीतर वह खुद कर सकती है. नन्हा एक घंटा टीवी देख चुका
है, आधा घंटा और देखेगा, जब वे छोटे थे तो ज्यादा वक्त घर के बाहर खेलने में
गुजरता था आजकल के बच्चे टीवी के सामने बैठ-बैठे ही बड़े हो जाते हैं. एक परिचिता
का फोन आया, उनका बेटा आज दोपहर फिर पढ़ने आएगा, सो ले देकर बात यहाँ पर अटकी है कि
इतनी सारी बातों के बाद बेचारा...दिल जाये
तो जाये कहां ?
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